नारद ने मन में सोचा- 'भक्त का चरणोदक भगवान् के श्रीमुख में !' आखिर रुक्मिणी के पास जाकर उन्होंने सारा हाल कह सुनाया | रुक्मिणी भी बोलीं, "नहीं, नहीं! देवर्षि, मैं यह पाप नहीं कर सकती |" नारद ने लौटकर रुक्मिणी की असहमति कृष्ण के पास व्यक्त कर दी | तब कृष्ण ने उन्हें राधा के पास भेजा | राधा ने जो सुना, तो तत्क्षण एक पात्र में जल लाकर उसमें अपने दोनों पैर डुबो दिया और नारद से बोलीं, "देवर्षि, इसे तत्काल कृष्ण के पास ले जाइये | मैं जानती हूँ, इससे मुझे रौरव नर्क मिलेगा, किन्तु अपने प्रियतम के सुख के लिए मैं अनन्त युगों तक यातना भोगने को प्रस्तुत हूँ |" और देवर्षि समझ गये कि तीनों लोकों में राधा के ही प्रेम की स्तुति क्यों हो रहे है |