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" कृतज्ञता एक ऐसा फूल है जो महान आत्माओं में खिलता है " - पोप फ्रांसिस

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प्रेरक प्रसंग:- प्रेम की परीक्षा

Date : 23-Jul-2024

देवर्षि नारद खीझ-से गए थे, तीनों लोकों में राधा की स्तुति जो हो रही थी | वे स्वयं भी कृष्ण से कितना प्रेम करते हैं | इसी मानसिक संताप को मन में छिपाये वे कृष्ण के पास पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि कृष्ण भयंकर सिरदर्द से कराह रहे हैं | देवर्षि के हृदय में तीस उठी | पूछा, "भगवन ! क्या इस वेदना का कोई उपचार नहीं ? क्या मेरे हृदय के रक्त से यह शांत नहीं हो सकती ? " कृष्ण ने उत्तर दिया, "मुझे रक्त की आवश्यकता नहीं | यदि मेरा कोई भक्त अपना चरणोदक पिला दे, तो यह वेदना शांत हो सकती है | यदि रुक्मिणी अपना चरणोदक पिला दे, तो शायद लाभ हो सकता है |"  

 

नारद ने मन में सोचा- 'भक्त का चरणोदक भगवान् के श्रीमुख में !' आखिर रुक्मिणी  के पास जाकर उन्होंने सारा हाल कह सुनाया | रुक्मिणी  भी  बोलीं, "नहीं, नहीं! देवर्षि, मैं यह पाप नहीं कर सकती |" नारद ने लौटकर रुक्मिणी  की असहमति कृष्ण के पास व्यक्त कर दी | तब कृष्ण ने उन्हें राधा के पास भेजा | राधा ने जो सुना, तो तत्क्षण एक पात्र में जल लाकर उसमें अपने दोनों पैर डुबो दिया और नारद से बोलीं, "देवर्षि, इसे तत्काल कृष्ण के पास ले जाइये | मैं जानती हूँ, इससे मुझे रौरव नर्क मिलेगा, किन्तु अपने प्रियतम के सुख के लिए मैं अनन्त युगों तक यातना भोगने को प्रस्तुत हूँ |" और देवर्षि समझ गये कि तीनों लोकों में राधा के ही प्रेम की स्तुति क्यों हो रहे है |  

 
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