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रणभूमि छिंदवाड़ा - अपने ही रचे व्यूह में इसलिए फंसे कमलनाथ

Date : 03-Apr-2024

चार दशकों से कांग्रेस की राजनीति को मेज पर 'पेपरवेट' की तरह खेलने वाले कमलनाथ स्वयं वक्त के हाथों 'पेपरवेट'  बन जाएंगे शाय़द ही उन्हें कभी इसका अंदेशा रहा होगा। लोकसभा चुनाव की छिंदवाड़ा रणभूमि में उनका परिवार कांग्रेस के ही प्रसिद्ध नारे 'करो या मरो' के अंदाज में जूझ रहा है। प्रत्याशी के तौर पर नकुलनाथ निमित्त मात्र हैं वस्तुत: यहां कमलनाथ के राजनीतिक जीवन का उत्तरार्द्ध ही दांव पर लगा है।

छिन्दवाड़ा की अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के कमलेश शाह कांग्रेस की सदस्यता और विधायकी दोनों से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गए। छिन्दवाड़ा के महापौर विक्रम अहाके और सभापति प्रमोद शर्मा उनकी नाक के नीचे से निकलकर कांग्रेस से जा मिले। जिस दीपक सक्सेना ने कमलनाथ की राजनीति के लिए अपनी पूरी जवानी और करियर होम कर दिया वे दोनों बेटों के साथ छिटककर दूर खड़े हो गए। लोकसभा क्षेत्र के कोई 5000 कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने केसरिया दुपट्टा ओढ़े लिया।
आदिवासी नेता कमलेश शाह ने 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की मोनिका बट्टी को 25086 मतों के भारी अंतर से पराजित किया। यहां कांग्रेस के  पक्ष में 109765 वोट पड़े। 2019 के लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ 36000 मतों से जीते  थे जीत के इन मतों में 22502 मत अमरवाड़ा क्षेत्र में मिले थे यानी कि क्षेत्र की शेष छह विधानसभाओं में महज 14000 वोटों की लीड मिली थी। अमरवाड़ा के वहीं कमलेश शाह अब भाजपा के पाले में हैं। महापौर विक्रम अहाके जिनके मुरीद स्वयं राहुल और प्रियंका रहे वे अपने सभापति के साथ कब चुपके से भाजपा की ओर खिसक लिए कमलनाथ को कानों कान खबर तक न लगी।
दीपक सक्सेना मध्यप्रदेश की अल्पकालिक कांग्रेस सरकार में प्रोटेम स्पीकर के तौरपर सदस्यों को शपथ दिलवाई। मुख्यमंत्री बनते ही कमलनाथ को एक रिक्त सीट की तलाश हुई, दीपक सक्सेना ने खुद को होम करके अपनी सीट  'साहब' के लिए दी। सक्सेना की प्रत्याशा थी कि साहब लोकसभा सीट बतौर बख्शीश देंगे। लेकिन दीपक तब ठगे रह गए जब लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ उतार दिए गए। 
अब लौटिए फरवरी के घटनाक्रम पर। इस महीने के आखिरी सप्ताह की कमलनाथ परिवार के भाजपा में शामिल होने की खबर। खिचड़ी पक रही है उनके दिल्ली बंगले से उठा धुंआ यह बता रहा था। नकुल नाथ के सोशल एकाउंट से गायब कांग्रेस यह तस्दीक कर रही थी कि साहब का अगला ठिकाना भाजपा ही है। बंगले की चारदीवारी के बाहर उनके शिष्य सज्जन सिंह वर्मा समर्थकों को ब्रीफ कर रहे थे कि साहब के फैसले का इंतजार करिए और तैयार रहिए। 

कमलनाथ के लिए छिंदवाड़ा वैसे ही जैसे कि कभी गांधी परिवार के लिए अमेठी। कहानी भी उसी तर्ज पर चल रही है। सन् 1977 तक लगातार छिंदवाड़ा की लोकसभा सीट से जीत रहे बुजुर्ग गार्गी शंकर मिश्र के खिलाफ संजय गांधी की युवा कांग्रेस ब्रिगेड ने शिकायत की तो इंदिरा गांधी को विकल्प में कमलनाथ जैसे छबीले और जोशीले जवान को पेश करने में जरा भी वक्त नहीं लगा। 
आपातकाल की मौज और जनताकाल की सजा के संजय गांधी के साथी रहे कमलनाथ की धाक 1980 में मध्यप्रदेश में इसलिए भी जम गई क्योंकि शिवभानु सिंह सोलंकी की जगह अर्जुन सिंह को मुख्यमंत्री बनाने में कमलनाथ की भी भूमिका रही। बस इसके बाद से वे प्रदेश की हर कांग्रेस सरकार में अपना कोटा लेते आए और अंततः मुख्यमंत्री के पद तक पहुंच गए।
नौ बार सांसद रहे कमलनाथ इस बार छिन्दवाड़ा के गढ़ को बचाने में अपना सर्वस्व झोंक दिया। बहूरानी खेतों में गेहूं काटते दिख रहीं तो वे खुद मंचों में भावुक होते। नकुलनाथ के निशाने पर तो बस 'गद्दार' कमलेश शाह हैं जिन्हें सजा देने के लिए वे उसी तरह फरमान जारी कर रहे हैं जैसे कि गुलाम भारत में जागीरदार सामंत अपने कारिंदों को किया करते थे।
 
लेखक - जयराम शुक्ल 
 
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