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" लक्ष्य निर्धारण एक सम्मोहक भविष्य का रहस्य है " -टोनी रॉबिंस

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प्रेरक प्रसंग :- स्वाभिमान

Date : 30-Apr-2024


सुलह न होने के कारण जब युद्ध होना निश्चित हुआ, तो कौरव-पांडवों ने विभिन्न राजाओं को अपनी ओर से लड़ने का निमंत्रण भेजा | कुन्दनपुर के राजा को भी दोनों ओर से निमंत्रण मिला | उसने सोचा कि न्यायपक्ष पांडवों का है, अत: उन्हीं का साथ दिया जाए, किन्तु बहिन के विवाह में कृष्ण ने मेरा अपमान किया था और कृष्ण अर्जुन का साथ दे रहे हैं, अत: पांडवों का साथ देना भी उचित नहीं, तथापि अर्जुन का अपमान करने से अप्रत्यक्ष रूप से कृष्ण का भी अपमान होगा | वह अर्जुन से बोला, “संसार में तीन धनुष प्रसिद्ध हैं – सारंग, गाण्डीव और विजय | ‘सारंग’ कृष्ण के पास है, ‘गाण्डीव’ तुम्हारे पास और ‘विजय’ मेरे पास | कृष्ण द्वारा नि:शस्त्र तुम्हारा साथ देने के कारण ‘सारंग’ का कोई उपयोग न होगा , रहा तुम्हारे पास केवल ‘गाण्डीव’| उसे यदि मेरे ‘विजय’ का साथ मिले, तो तुम्हें भी विजय मिल सकती है, लेकिन एक शर्त है | वह यह कि तुम्हें मेरे चरण छूकर यह कहना होगा कि ‘मैं भयभीत हूँ और तुम्हारी शरण में आया हूं | मेरी रक्षा करो |’ तभी मैं अपनी स्वीकृति दूंगा |”
अर्जुन बोले, “रुक्म!  लगता है, तुम्हें अहंकार हो गया है | तुम्हें यह किसने बताया कि मैं भयभीत हो गया हूँ | अर्जुन को स्वयं पर पूर्ण विश्वास है, वह कायर नहीं | यदि मुझ पर विश्वास न होता, तो मैंने अकेले और वह भी नि:शस्त्र कृष्ण को ही क्यों चुना होता और अक्षोंहिणी सेना को क्यों अस्वीकार किया होता ? याद रखो, अर्जुन कृष्ण के अलावा किसी की भी शरण न जाएगा |”
यह दो-तुक जवाब सुन रुक्म को क्रोध आ गया, बोला, ‘मैंने इतनी विशाल सेना लेकर तुम्हारा साथ देने का सोचा था, किन्तु तुमने मेरी शर्त स्वीकार न कर अपना अहित ही किया है | खैर, मैं अपनी शर्त दुर्योधन से पूरी कराकर उसी का साथ दूंगा |” और यह कह वह घमंडी राजा वहाँ से चला गया, किन्तु स्वाभिमानी अर्जुन को अंत में विजयश्री मिली, यह सर्वविदित ही है | 
 
 
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