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8 मई : दो घटनाओं में चार क्राँतिकारियों का बलिदान दिवस

Date : 08-May-2024

 

 
 1912 में दिल्ली के चांदनी चौक में हुए लॉर्ड हार्डिग बम कांडमें मास्टर अमीर चंद, भाई बालमुकुंद और मास्टर अवध बिहारी को 8 मई 1915 को फांसी दी गयी थी । इनमें भाई बाल मुकुन्द गुरु तेगबहादुर के साथ बलिदान हुये भाई मतिदास के वंशज थे । महान क्रान्तिकारी भाई परमानन्द इनके चचेरे भाई थे । भाई परमानंद के चिरंजीव स्वतंत्रता संग्राम भाई महावीर मध्यप्रदेश में राज्यपाल रहे । इन क्राँतिकारियों पर आरोप था कि इन्होंने 1912 में चांदनी चौक में लार्ड हार्डिग पर बम फेंका था। हालांकि इनके खिलाफ कोई प्रमाण नहीं था । फिर भी अंग्रेजी शासन ने शक के आधार पर इनको फांसी की सजा सुनाई । जिस स्थान पर इन्हें फांसी दी गई, वहां शहीद स्मारक बना दिया गया है जो दिल्ली गेट स्थित मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में स्थित है।
भाई अमीर चंद का जन्म 1869 में हैदराबाद की विधानसभा के सेक्रेटरी के घर हुआ था। उनके मन में देश भक्ति की मान्यता इतनी प्रबल थी कि स्वदेशी आंदोलन के दौरान हैदराबाद के बाजार में उन्होंने स्वदेशी स्टोर खोला जहां वह देशभक्तों की तस्वीरें तथा क्रांतिकारी साहित्य बेचते थे । 1919 में दिल्ली में भी स्वदेशी प्रदर्शनी लगाई । 1912 में दिल्ली में उस समय के वायसरोय लार्ड हार्डिग पर बम फेंकने की घटना में सक्रिय भूमिका निभाई । 1914 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया ।
 क्रान्तिकारी भाई अवध बिहारी
 
इनका जन्म - 14 नवम्बर, सन 1889 को कच्चा कटरा मौहल्ला, चांदनी चौक, दिल्ली में हुआ था । ये भी बहुचर्चित दिल्ली केस में शामिल थे । क्रांतिवीर अवधबिहारी ने केवल 25 वर्ष की अल्पायु में ही अपना शीश मां भारती के चरणों में समर्पित कर दिया ।
अवधबिहारी का जन्म चांदनी चौक दिल्ली के मोहल्ले कच्चा कटरा में 14 नवम्बर सन 1889 को हुआ था. इनके पिता श्री गोविन्द लाल श्रीवास्तव जल्दी ही स्वर्ग सिधार गये, अब परिवार में अवधबिहारी उनकी मां तथा एक बहिन रह गयी । परिवार ने बड़े संघर्ष के दिन देखे । पर अवधबिहारी बहुत मेधावी थे. गणित में सदा उनके सौ प्रतिशत नंबर आते थे । उन्होंने सब परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में  उत्तीर्ण कीं । उन्हें पढ़ने केलिये  छात्रवृत्ति मिली, परिवार चलाने के लिये उन्होंने ट्यूशन की । अवधबिहारी ने 1908 में सेंट स्टीफेंस कालेज से स्वर्ण पदक लेकर बी.ए किया था । दिल्ली में उनकी मित्रता मास्टर अमीरचंद आदि क्रांतिकारियों से हुई । और वे क्राँतिकारी आँदोलन से जुड़ गये । तब मास्टर अमीरचन्द, लाला हनुमन्त सहाय, मास्टर अवध बिहारी, भाई बालमुकुन्द और बसन्त कुमार विश्वास आदि क्राँतिकारियों द्वारा वायसराय हार्डिंग को बम से उड़ाने की योजना बनी । 23 दिसम्बर सन 1912 को दिल्ली के चांदनी चौक स्थित पंजाब नेशनल बैंक की छत से बम फेंका गया । वायसराय हाथी पर बैठा था. निशाना चूक जाने से वह मरा तो नहीं, पर घायल हो गया । शासन ने इसकी जानकारी देने वाले को एक लाख रुपये के पुरस्कार की घोषणा की । शासन ने कुछ लोगों को पकड़ा । जिनमें से दीनानाथ के मुखबिर बन गया और उसने इस विस्फोट में शामिल सभी क्रांतिकारियों के नाम बता दिये । सभी गिरफ्तार कर लिये गये । उन दिनों देश में अनेक विस्फोट हुए थे । अंग्रेजी पुलिस ने उन काँडों में भी अवधबिहारी को शामिल दिखाया । सभी क्राँतिकारियों को फाँसी की सजा सुनाई गई । अवध बिहारी को सजा सुनाते हुए न्यायाधीश ने लिखा - "अवधबिहारी जैसा शिक्षित और मेधावी युवक गौरव हो सकता है, यह साधारण व्यक्ति से हजार दर्जे ऊंचा है, इसे फांसी की सजा देते हुए हमें दुख हो रहा है."
8 मई सन 1915 ई. इनकी फांसी की तिथि निर्धारित की गयी ।
 
वासुदेव हरि चाफेकर का बलिदान 
 
वासुदेव चाफेकर का जन्म 1880 में कोंकण में चित्पावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने मराठी भाषा के माध्यम से शिक्षा ले ली। समय के साथ, वह पुणे में चिंचवड में बस गए। बचपन में, तीनों भाइयों ने पिता की मदद करने के लिए हरि कीर्तन की मदद की। इसने चाफेकर भाइयों की शिक्षाओं में विभाजन किया।
वासुदेव चाफेकर ने अपने भाइयों, दामोदर चाफेकर और बालकृष्ण चाफेकर के साथ राजनीति और क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। उन्होंने हथियारों के साथ भारतीय युवाओं को प्रशिक्षण दिया।
पुणे में राजनीतिक विकास से प्रेरित होकर, ये भाई क्रांतिकारी आंदोलन में बदल गए। अंग्रेजों के ब्रिटिश कानून की पुरानी सहमति के लिए अंग्रेजों का एक मजबूत विरोध था। तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ केसरी पर हमला किया, जिन्होंने भारतीय संस्कृति में हस्तक्षेप किया। तीनों भाई इस कॉल से प्रेरित थे। उन्होंने लोगों का आयोजन किया इसी समय, अंग्रेजों ने पुणे में प्लेग की जगह राक्षस पैटर्न पहन कर वाल्टर चार्ल्स रैंडला को भारत में आमंत्रित किया। रंदन ने उपचारात्मक उपायों के अनिवार्य कार्यान्वयन शुरू किया ऐसा करने में, उन्होंने सामाजिक अशांति को दूर करने की कोशिश की। इससे अंग्रेजों के खिलाफ चाफेकर भाई के नफरत का कारण हुआ। उन्होंने जवाबी कार्रवाई करने के लिए एक योजना तैयार की। भाइयों ने अपने खराब व्यवहार के लिए पुणे में रैंड को मारने की साजिश रची। उस समय, हीराम महोत्सव विक्टोरिया की रानी के शासनकाल के साथ मनाया गया था। सब कुछ प्रकाश हो गया था। एक भोज भी आयोजित किया गया था।
22 जून 1897 को दामोदर चाफेकर, एक जवान आदमी ने गाड़ी छोड़ दी और गणेश ख़िंद में इंतजार कर रहे थे, जो रात के मध्य रैंड पर चक्कर लगाकर घर से बाहर निकल गया। रेंड कुछ समय तक कोमा में बना था और अंततः 3 जुलाई 1897 को मृत्यु हो गई। इसी समय, दामोदर के भाई बालकृष्ण ने लेफ्टिनेंट एरिस्ट पर गोली चलाई जो किरण के साथ बैठे थे।
चाफेकर भाइयों को बचने में सफल होने के बाद, तीन भाइयों को बाद में गिरफ्तार किया गया। दामोदर को मुंबई में गिरफ्तार किया गया था और 18 अप्रैल 18 9 8 को उन्हें यरवदा जेल में फांसी दी गई थी। उसके बाद, वासुदेव को 8 मई 18 99 को फांसी दी गई और बालकृष्ण को 16 मई, 18 99 को फांसी दी गई, और तीन चाफेकर भाई शहीद थे।
 
 
 
लेखक :रमेश शर्मा 
 
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