घटना के बाद राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने मीडिया से बैठकर उपद्रवियों से सम्बंधित कई सबूत मीडिया के सामने रखे। वर्तमान सरकार में खाद्य मंत्री दयालदास बघेल सतनामी समाज से ही आते हैं। वे बताते हैं कि प्रदर्शन में कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री गुरु रुद्र कुमार, कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव और कविता प्राणलहरे समेत कांग्रेस के नेता शामिल हुए। उन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आगजनी और लूट की घटना को बढ़ावा दिया। यह घटना कांग्रेस की सोची-समझी साजिश का नतीजा है। विष्णुदेव साय सरकार को बदनाम करने की नापाक कोशिश की गई।
दयालदास बघेल जो कह रहे हैं, उनकी बात में सत्यता है, क्योंकि घटनास्थल से जो वीडियो सामने आ रहे हैं, उनमें कांग्रेस नेताओं को साफ देखा जा सकता है। ऐसे में कांग्रेस से ये प्रश्न पूछा जाना चाहिए देवेंद्र यादव जैसे नेता सतनामी समाज के आंदोलन में क्या करने पहुंचे थे? ये सामाजिक आंदोलन था या कांग्रेस का राजनीतिक आंदोलन?
दूसरी बात, भीम आर्मी जैसी समाज को तोड़ने वाली विचारधारा की जगह छत्तीसगढ़ जैसे शांत प्रदेश कभी नहीं रही। छत्तीसगढ़ के लोग भोले भाले, शांतिप्रिय, सामाजिक सद्भाव रखने वाले और प्रेम से भरे हुए हैं। यहां कभी जाति, धर्म, समाज के नाम पर दंगे नहीं हुए। भीम आर्मी की स्वीकार्यता छत्तीसगढ़ में कितनी है, ये अभी हाल ही में सम्पन्न लोकसभा चुनाव से पता लगाई जा सकती है। जांजगीर चाम्पा संसदीय सीट से आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रत्याशी दीपक कुमार बुरी तरह हारे। जांजगीर चाम्पा में भाजपा की कमलेश जांगड़े कांग्रेस के शिव डहरिया को पराजित करके जीतीं। जब ये राजनीतिक अप्रोच नहीं बना पाए तो समाज को हिंसा की आग में झोंकने को उतारू हो गए।खुद कांग्रेस सतनामी बहुल जांजगीर चाम्पा समेत छत्तीसगढ़ की 10 लोकसभा सीटों में बुरी तरह हारी है। उससे पहले विधानसभा चुनाव में भी छत्तीसगढ़ की जनता ने कांग्रेस को नकार दिया था। छत्तीसगढ़ को हाथ से जाता देख कांग्रेस क्या छत्तीसगढ़ को हिंसा की आग में झोंकना चाहती है? ये तथ्य जगजाहिर है कि बलौदाबाजार में एकत्रित भीड़ में कांग्रेस के कई छोटे बड़े नेता व कार्यकर्ता नज़र आ रहे हैं। अब कांग्रेस इस बात से पल्ला नहीं झाड़ सकती।
अभी भी भीम आर्मी के सोशल मीडिया पेज पर भड़काउ बातें पोस्ट की जा रही हैं। पूरे छत्तीसगढ़ को आग लगाने की बात की जा रही है। इनके इरादे पूरी तरह राजनीतिक हैं क्योंकि ये दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ जीतने की भी उन्माद भरे स्टेटमेंट अपलोड कर रहे हैं। ये किसी भी समाज से कोई मतलब नहीं है, ये हिंसा की आग भड़काकर केवल राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं।
उधर,विरोध प्रदर्शन के दौरान आगजनी और पथराव होने के बाद बलौदाबाजार-भाटापारा जिला प्रशासन ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 लागू कर दी है, जिसके तहत 16 जून तक बलौदाबाजार शहर में चार या उससे अधिक लोगों के एकत्र होने पर रोक लगा दी गई है। घटना के सिलसिले में अब तक आगजनी करने वाले 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
कुछ लोगों ने सतनामी समाज को बदनाम करने के लिए आगजनी, लूट, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, हत्या के प्रयास जैसे गंभीर अपराध किए, जो निंदनीय है। सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया। असामाजिक तत्वों ने करीब 150 दोपहिया और चार पहिया वाहनों को आग के हवाले कर दिया।’ करीब 40 पुलिसकर्मी घायल हो गए और मीडियाकर्मियों से भी मारपीट की गई। आम लोगों को सड़कों पर दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। संपत्ति की रजिस्ट्री कराने बलौदाबाजार रजिस्ट्री अधिकारी के पास आए लोगों से लाखों रुपए भी लूट लिए गए।
सबसे बड़ी बात यह है कि सतनामी समाज छत्तीसगढ़ का सबसे मजबूत वर्ग है। चाहे राजनीतिक क्षेत्र हो या सामाजिक, इस वर्ग का छत्तीसगढ़ में खासा प्रभाव है। सरकार किसी की बने, पर इस वर्ग को प्रमुखता से स्थान मिलता है। गुरु घासीदास जी को सारा छत्तीसगढ़ मानता है। उनके उच्चतम आदर्शों की बात सतनामियों के साथ साथ हर समाज में उल्लेखनीय रूप से की जाती है। सतनामी कोई जाति नहीं है, बल्कि गुरु घासीदास जी के आदर्शों पर चलने वाला हरेक व्यक्ति सतनामी ही है। गुरु घासीदास की 18 दिसम्बर को मनाई जाने वाली जयंती छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पर्व होता है, जब मुख्यमंत्री से लेकर पूरी सरकार और पूरा विपक्ष भी प्रदेश भर में आयोजित कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं।
कहने का आशय यह कि राजनीतिक/सामाजिक रूप से इतने सुदृढ समाज को क्या कभी अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लेने की जरूरत है?
जिस समाज की स्वीकार्यता छत्तीसगढ़ में इतनी व्यापक है,उसको क्या सरकारी सम्पत्तियों को आग लगाने की जरूरत है? अब सतनामी समाज के वरिष्ठजनों को इस बात का मंथन तो करना ही होगा कि वे राजनीतिक स्वार्थ की बलि कैसे चढ़ गए? कैसे कोई राजनीतिक दल उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए बदनामी का सबब कैसे बन गया? कैसे इतना शक्तिशाली समाज कांग्रेस के हाथ की कठपुतली बन गया? क्यों भीम आर्मी जैसी उधार की विचारधारा को घुन की तरह अपनी महान संत संस्कृति में घुसने का अवसर दिया जा रहा है? क्या छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज में प्रतिनिधित्व करने वालों की कमी हो गईं है, जो चंद्रशेखर आज़ाद जैसे लोग अपने आपको छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज के नेता के रूप में प्रतिस्थापित करने की जुगाड़ लगाने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज का गौरवशाली इतिहास है, उन्होंने संघर्ष भी खुद के दम पर किया है और उपलब्धियां भी खुद के बलबूते हासिल की हैं। अब समय आ गया है कि अपनी शक्ति दूसरे के हाथों इस्तेमाल होने से बचाने का। अपना नेता खुद बनने का। सतनामी समाज के वरिष्ठजनों को आगे आकर नई पीढ़ी यानी युवाओं का मार्गदर्शन करना होगा। नहीं उनकी भावनाओं का दोहन गलत लोग कर जाएंगे। बलौदाबाजार की घटना से सबक लेकर ये आत्ममंथन व चिंतन करने का समय है। याद रखिये ये मिनीमाता की भी विरासत है, इसे मिट्टी में मिलने से बचाना होगा। पलटकर अपनी जड़ों की तरफ देखिए। किसी के हाथ का खिलौना मत बनिये। जय सतनाम।
लेखिका :- प्रियंका कौशल