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संस्कृत को सम्मान दें, दैनिक जीवन में स्थान दें : प्रधानमंत्री मोदी का देश की जनता से विशेष आह्वान

Date : 01-Jul-2024

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्राचीन ज्ञान विज्ञान की समृद्ध भाषा 'संस्कृत' को सम्मान देने और दैनिक जीवन में अपनाने का आह्वान करते हुए आज जो कहा है वह प्रत्येक भारतवासी को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। वास्तव में इस प्राचीनतम एवं वैज्ञानिक भाषा से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, इसीलिए ही उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में संस्कृत में संवाद करते हुए कहा, ''मम प्रिया: देशवासिन: अद्य अहं किञ्चित् चर्चा संस्कृत भाषायां आरभे। यानी मेरे प्रिय देशवासियों आज मैं संस्कृत भाषा पर कुछ चर्चा शुरू करता हूं।'' वस्तुत: इस भाषा की यह विशेषता ही है कि उसके बूते भारत वास्तवित अर्थों में भारत हो सका है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी यहां यही समझाते दिखाई दे रहे हैं , ''साथियों, संस्कृत की प्राचीन भारतीय ज्ञान और विज्ञान की प्रगति में बड़ी भूमिका रही है। आज के समय की मांग है कि हम संस्कृत को सम्मान भी दें, और उसे अपने दैनिक जीवन से भी जोड़ें। आजकल ऐसा ही एक प्रयास बेंगलुरू में कई और लोग कर रहे हैं। बेंगलुरू में एक पार्क है- कब्बन पार्क ! इस पार्क में यहां के लोगों ने एक नई परंपरा शुरू की है। यहां हफ्ते में एक दिन, हर रविवार बच्चे, युवा और बुजुर्ग आपस में संस्कृत में बात करते हैं। इतना ही नहीं, यहाँ वाद- विवाद के कई सत्र भी संस्कृत में ही आयोजित किए जाते हैं। इनकी इस पहल का नाम है – संस्कृत सप्ताहांत ! इसकी शुरुआत एक वेबसाइट के जरिए समष्टि गुब्बी जी ने की है। कुछ दिनों पहले ही शुरू हुआ ये प्रयास बेंगलुरूवासियों के बीच देखते ही देखते काफी लोकप्रिय हो गया है। अगर हम सब इस तरह के प्रयास से जुड़ें तो हमें विश्व की इतनी प्राचीन और वैज्ञानिक भाषा से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।'' यह सच भी है और इसे हमें खुले मन से स्वीकारना भी चाहिए ।


वास्तव में भारत की सांस्कृतिक पहचान अगर आज पूरी दुनिया में है, तो उनमें से एक संस्कृत भाषा भी है। जिसे हम देव भाषा भी कहते हैं। इसके आंचल से ही हिन्दी, पाली, प्राकृत आदि कई भाषाएं विकसित हुईं हैं, यह भाषा संस्कृति की तरह व्यापक है । संस्कृत भाषा हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म में संचार का पारंपरिक साधन रही है। संस्कृत साहित्य को प्राचीन कविता, नाटक और विज्ञान के साथ-साथ धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों में इस्तेमाल होने वाले विशेषाधिकार भी प्राप्त है। हम देखते भी हैं कि इतिहासकार अलब-ए-रूनी ने संस्कृत भाषा की विशेषता पर खूब चार्चा की है।

इतिहासकार विल डूरान्ट लिखते हैं, ''भारत की मातृभूमि कई प्रजातियों की जन्मदात्री रही है और संस्कृत यूरोपीय भाषाओं की जननी थी। इस प्रकार संस्कृत भाषा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। संस्कृत कंप्यूटर की कोडिंग के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है। भारत की अधिकांश साहित्यिक रचनाएं, ग्रंथ, उपनिषद, संस्कृति, इतिहास और परम्परा से संबन्धित बाते संस्कृत में लिखी गईं हैं। इन ग्रंथों का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ है मगर इसकी मौलिकता और जीवंतता संस्कृत भाषा में ही नीहित है। कालिदास की अद्भुत साहित्यिक कृतियां मेघदूतम, कुमारसंभव, बाणभट्ट की कादंबरी, पतंजलि के योग सूत्र, आध्यात्मिक ग्रंथ जैसे भगवद गीता, वेद, उपनिशद और बेशक दुनिया के महानतम महाकाव्य महाभारत और रामायण सभी मूल रूप से संस्कृत में लिखे गए ।''


प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक विलियम कुक टेलर के ये शब्द हैं, ''इस भाषा की महारत हासिल करना लगभग जीवनभर का श्रम है, इसका साहित्य अंतहीन लगता है' जर्मनी जैसे कई देशों में इस विषय को लेगर गहन विचार मंथन हो रहा है। भाषाविद आज भी इसके शोध में लगे हैं।'' महर्षि श्री अरबिंदों के शब्दों में ''अगर मुझसे पूछा जाए कि भारत के पास सबसे बड़ा खजाना क्या है और उसकी सबसे बड़ी विरासत क्या है, तो मैं बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दूंगा कि यह संस्कृत भाषा और साहित्य है और इसमें वह सब कुछ है। यह एक शानदार विरासत है, और जब तक यह हमारे लोगों के जीवन को प्रभावित करती है, तब तक भारत की मूल प्रतिभा बनी रहेगी।''

स्वामी विवेकानंद के अनुसार ''भाषा ही उन्नत्ति का प्रतीक है। संस्कृत ही वह एक मात्र पवित्र भाषा है जिसके अंतस से अन्य भाषाओं का आविर्भाव हुआ है। भाषा शास्त्र में संस्कृत भाषा को एक सार्वभौमिक भाषा तथा सभी यूरोपीय भाषाओं की नींव के रूप में स्वीकार किया गया है।''इस प्रकार संस्कृत का ज्ञान प्राचीन भारत में सामाजिक वर्ग और शैक्षिक उपलब्धि का प्रतीक था। प्रारंभिक संस्कृत शब्दावली, ध्वन्यात्मकता, व्याकरण और वाक्य-विन्यास में काफी समृद्ध है, जो आज भी उसी रूप में विद्यमान है। इसमें कुल 52 अक्षर, 16 स्वर और 36 व्यंजन हैं। इन 52 अक्षरों को कभी भी संशोधित या परिवर्तित नहीं किया गया है और माना जाता है कि यह शुरुआत से ही स्थिर रहे हैं, इस प्रकार यह शब्द निर्माण और उच्चारण के लिए सबसे उत्तम भाषा है।

वर्तमान समय में दुनियाभर में संस्कृत के प्रति बहुत रुचि जगी है। नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने बहुत पहले ही (1985) में अपने पेपर नॉलेज रिप्रेजेनटेशन इन संस्कृत ऐंड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में चर्चा की थी कि संस्कृत कंप्यूटर में उपयोग के लिए सबसे अच्छी भाषा है। उनके अनुसार संस्कृत वह प्राकृतिक भाषा है, जिसमें कम्प्यूटर द्वारा कम से कम शब्दों में संदेश भेजे जा सकते हैं। निश्चित ही कहना होगा कि भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृति को समृद्ध बनाए रखने में इस भाषा का योगदान अतुलनीय है। यह जितनी प्राचीन है उतनी आधुनिक और वैज्ञानिक भी। संस्कृत भाषा के सार्वभौमिक स्वरूप एवं व्यापकता के कारण वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के आम जनमानस से जो अपेक्षा संस्कृत को जानने, सीखने और समझने के संदर्भ में कर रहे हैं, उसे लेकर यही कहना होगा कि देश के प्रत्येक नागरिक को उनकी कही इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए और संस्कृत को जानकर अपने प्राचीन ज्ञान को भी जानने का प्रयत्न करना चाहिए।

लेखक:- 
डॉ. मयंक चतुर्वेदी

 
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