ध्वस्त हो रहा इस्लामिक अजेंडा, ओवैसी के मुंह पर आ गई असलियत !
Date : 11-Oct-2024
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन' (एआईएमआईएम) प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत और प्रधानमंत्री की जिस तरह से आलोचना की है और उन्हें भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा करार दिया है, उससे साफ दिखने लगा है कि देश से इस्लामिक अजेंडा अब ध्वस्त होने लगा है और इसकी अकुलाहट अपने आप को इस्लामिक पैरोकार माननेवालों में इतनी अधिक हो रही है कि वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर वे क्या करें? क्या ओवैसी अकेले हैं, जो इस तरह की बातें बोलते दिखे, इसके पहले के और औवेसी के दिए इस बयान के बाद तत्काल के आप कई वीडियो देख सकते हैं जो विभिन्न मुस्लिम नेताओं के हैं और सोशल मीडिया पर भरे पड़े हैं, उनमें कुछ मुसलमानी जलसों, तकरीर यहां तक कि इमाम बाड़ों और मस्जिदों तक के हैं, जिनमें साफ सुनाई दे रहा है कि कैसे बहु मुस्लिम नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति जहर उगल रहे हैं। अब वही काम संविधानिक पद एवं गरिमा की शपथ लेने के बाद ओवैसी करते दिखे हैं।
वस्तुत: ओवैसी ने तेलंगाना के निजामाबाद में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा है कि देश में न तो हिंदुओं और न ही मुसलमानों को किसी तरह का खतरा है। ‘‘मुसलमानों, हिंदुओं, दलितों, आदिवासियों, सिखों, ईसाइयों को नरेन्द्र मोदी और मोहन भागवत से खतरा है।’’ भाईजान ओवैसी ये बात क्यों कह रहे हैं ? क्योंकि रास्वसंघ हिन्दू समाज को संगठित करने और भारत को विश्व का शक्तिसम्पन्न राष्ट्र बनाने की दिशा में पिछले 99 सालों से काम कर रहा है और इसी का परिणाम है कि हिन्दू समाज समेत भारत के प्रत्येक समाज में जनजागृति आ रही है। ओवैसी और इनसे जुड़े नेता हिन्दुओं को जाति के नाम पर लड़वाना चाहते हैं और उन्हें आपस में बांटकर पूरी तरह कमजोर ही देखना चाहते हैं ताकि वे अपने सेट अजण्डा को पूरा कर पाएं। लेकिन यह संघ और मोदी के रहते संभव नहीं हो पा रहा है।
वास्तव में तकलीफ ही यही है कि यदि आरएसएस नहीं होता तो इतनी जागृति कभी हिन्दू समाज में नहीं आती और ना ही राममंदिर कभी हकीकत रूप ले पाता! इस्लामिक आक्रांताओं और तत्कालीन मुस्लिम बादशाहों ने भारत में 6000 से अधिक हिन्दू आस्था के बड़े केंद्रों को नष्ट किया, जिसके कि सभी साक्ष्य आज भी मौजूद हैं। वहीं, जैन, बौद्ध, सिख समेत हिन्दुओं के मध्यम व छोटे श्रद्धा के केंद्रों, मंदिरों को इस संख्या में मिला लिया जाएगा तो यह संपूर्ण संख्या 10 हजार से भी अधिक है। फिर भी सनातन धर्म हिन्दू एवं उससे निकले अन्य धर्म जैन, सिख और बौद्ध इस्लामवादियों से नहीं मांग रहे हैं कि वे सभी हमारे आस्था केंद्रों को वापिस करें। इस संदर्भ में जो कानून पूर्व कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण करते हुए 'प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट' बना दिया, उसी का पालन किया जा रहा है और अपने आराध्यों से जुड़े सिर्फ दो स्थल काशी एवं मथुरा जिस पर यह कानून लागू नहीं, क्यों कि हिन्दू संघर्ष इन दोनों स्थानों पर कानून बनने से पूर्व से अयोध्या राममंदिर की तरह चल रहा है की मांग की जा रही है, किंतु उस पर भी ये मुसलमान नेता हल्ला इस तरह मचा रहे हैं जैसे भारत में दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या जोकि अंतरराष्ट्रीय मापदण्डों में अब अल्पसंख्यक नहीं रही, वह मुसलमानों का भयंकर उत्पीड़न यहां बहुसंख्यक हिन्दू कर रहे हैं।
उन्होंने यही तो कहा है, ‘‘हिन्दु समाज को अपनी सुरक्षा के लिए भाषा, जाति, प्रांत के भेद व विवाद मिटाकर संगठित होना होगा। समाज ऐसा हो जहां संगठन, सद्भावना एवं आत्मीयता का व्यवहार हो। समाज में आचरण का अनुशासन, राज्य के प्रति कर्तव्य एवं ध्येय निष्ठ होने का गुण आवश्यक है। मैं व मेरा परिवार मात्र से समाज नहीं बनता, बल्कि हमें समाज की सर्वांगीण चिंता से अपने जीवन में भगवान को प्राप्त करना है।’’ उन्होंने यही कहा है, ‘‘संघ कार्य यंत्रवत नहीं, बल्कि विचार आधारित है। संघ कार्य की तुलना योग्य कार्य विश्व में नहीं है। उपमा के तौर पर सागर, सागर जैसा है, गगन, गगन जैसा है, वैसा ही संघ भी संघ जैसा ही है। संघ की किसी से तुलना नहीं हो सकती। संघ से संस्कार गटनायक में जाते हैं, गटनायक से स्वयंसेवक और स्वयंसेवक से परिवार तक जाते हैं। परिवार से मिलकर समाज बनता है। संघ में व्यक्ति निर्माण की यही पद्धति है।’’
लेखक - डॉ. मयंक चतुर्वेदी