आरएसएस को मुसलमान कितना जानते हैं? अम्बरीन जैदी जैसे अनुभव सभी इस्लावादियों को लेने चाहिए !
Date : 11-Oct-2024
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना शतायु वर्ष पूरा करने जा रहा है। 99 साल की इसकी अब तक की अपनी यात्रा रही है । इन वर्षों में सशक्त भारत के लिए जो भी आवश्यक रहा, वह सभी कुछ किया गया और किया जा रहा है। यथा- कुष्ठरोग के क्षेत्र में (चांपा) आज अपने आप में राष्ट्रीय नहीं वैश्विक स्तर पर सफल उदाहरण है। सेवा भारती के कार्यों और अनेक प्रकल्पों में "मातृछाया" उन नवजात शिशुओं के लिए उनका सब कुछ है, जिन्हें किसी भी कारण से ही सही परित्यक्त कर दिया गया था। कई वनवासी प्रकल्प आज संघ की प्रेरणा से चल रहे हैं। गाँव-गाँव शिक्षा की अलख जगा रहे एकल विद्यालय हों या आरोग्य भारती, भारतीय मजदूर संघ, संस्कार भारती जैसे समाज जीवन में काम करने वाले अनेकों संगठन, इन सभी में स्वयंसेवक दिन-रात अपनी सेवाएं दे रहे हैं। आज आप संघ के किसी अधिकारी से बात करेंगे, वह यही कहेगा कि संघ कुछ नहीं करता, स्वयंसेवक सब कुछ करते हैं और यही इस संगठन की हकीकत भी है। देश में हजारों सेवा के कार्य चल रहे हैं, बिना किसी इस भेदभाव के लिए उस सेवा का लाभ किसे मिल रहा है। यह ईसाईयत की तरह मतान्तरण के लिए नहीं हैं और ना ही इस्लाम को माननेवालों की तरह इस जिद पर अड़े रहने की कि मदरसों में हम हिन्दू बच्चों एवं अन्य गैर मुस्लिम बच्चों को न सिर्फ पढ़ाएंगे बल्कि उन्हें पढ़ाई के नाम पर दीनीतालीम भी देंगे। उन्हें ‘तालीमुल इस्लाम’ जैसी इस्लामिक प्रेक्टिसवाली पुस्तकें भी पढ़ाएंगे और उनसे नमाज भी पढ़वाएंगे। जनसंख्या बढ़ाने के लिए लव जिहाद जैसे कई प्रकार के जिहाद (नकारात्मक अर्थों में) करेंगे।
इससे इतर संघ के स्वयंसेवकों के द्वारा संचालित सेवा कार्य किसी के साथ मजहबी, रिलीजन और मत, पंथ के स्तर पर कोई भेद नहीं करते हैं। जिसे सेवा मिलनी चाहिए और जो सेवा का हकदार है, उसे वह शुद्ध सात्विक भाव से मिलना ही चाहिए, यही स्वयंसेवकों की मान्यता है, फिर भी एक बहुत बड़ी जमात है जो लगातार आरएसएस के खिलाफ मुसलमानों में जहर भरने का काम करती है। अब जो संघ से जुड़ा नहीं, कभी सीधे या अप्रत्यक्ष किसी स्वयंसेवक के संपर्क में नहीं आया, उसे तो यही लगता है कि जैसा उनके नेता बता रहे हैं, यही वास्तव में संघ होगा। संघ मुसलमानों का विरोधी है! जबकि इस बात में कुछ भी वास्तविकता नहीं । संघ के स्वयंसेवक की सीधी धारणा है, जो आए देश के काम, वे सभी हमारे अपने, जो भारत को सिर्फ एक भूमि न मानकर जागृत माता के रूप में स्वीकार करें, वे सभी हमारे अपने हैं। जो एक राष्ट्र के रूप में भारत के हर दुख-सुख को अपना मानें वे सभी हमारे आत्मीय जन हैं। उनके हित प्रत्येक स्वयंसेवक का जीवन समर्पित है।
यहाँ अम्बरीन जैदी अपने एक अन्य अनुभव को भी साझा करती हैं, वे लिखती हैं, "जब मैं एक शीर्ष फर्म के लिए काम कर रही थी, …तक उसमें एक युवा लड़का मेरी टीम में शामिल हुआ। उसका नाम शशांक (बदला हुआ नाम) था। वह बहुत अच्छा था, अभी कॉर्पोरेट दुनिया की बारीकियाँ सीख रहा था। कुछ दिनों बाद हमें खबर मिली कि उसके चाचा आरएसएस में बहुत ऊँचे पद पर हैं और अपने खाली समय में वे सेवा भी करते हैं। तुरंत बेचैनी का एहसास हुआ। मैंने उससे बचना शुरू कर दिया। हम बस जल्दी-जल्दी औपचारिक बातें करते थे। यहाँ तक कि दोपहर के भोजन के समय भी, मैं दूर बैठती या अपना दोपहर का भोजन छोड़ देती। उस समय, मैं अपने बच्चों के साथ दिल्ली में अकेली रहता थी, इसलिए डर स्पष्ट था। फिर एक दिन, वह किसी काम से मेरे पास आया और जाते समय उसने मुझसे पूछा, “अम्बरीन मैम, आप मुझे पसंद क्यों नहीं करतीं?” सवाल ने मुझे चौंका दिया, मेरे पास शब्द नहीं थे लेकिन फिर मैंने उसे सच बताने का फैसला किया। मैंने कहा कि मैंने सुना है कि आपका आरएसएस से संबंध है, जिस पर उसने कहा कि हाँ, मेरे चाचा वरिष्ठ पद पर हैं (जिनका मैं यहाँ नाम नहीं ले रही हूँ)। मैंने कहा, शशांक, यह आपको पसंद करने या न करने का मामला नहीं है। मुझे इस बात से असहजता होती है कि आप आरएसएस से जुड़े हैं। मैं एक मुस्लिम महिला हूँ और अपने बच्चों के साथ अकेली रहती हूँ, क्या होगा अगर किसी दिन आप मुझे बता दें कि हम आपको पसंद नहीं करते और मुझे धमकियाँ देने लगें । वह मुस्कुराया।
कुछ दिनों बाद उन्होंने मुझे एक बड़ी फाइल दी, जिसमें कुछ तस्वीरें थीं, ताकि मैं उसे देख सकूं। इसमें आरएसएस द्वारा किए जाने वाले विभिन्न कल्याणकारी कार्यों का विवरण था, उनके पास 3-4 अनाथालय थे, जो आतंकवाद के कारण अनाथ हुए बच्चों की देखभाल करते थे, जिनमें कश्मीर के मुस्लिम बच्चों की अच्छी संख्या थी। फिर सभी धर्मों की अकेली महिलाओं, विधवा या अपने पति द्वारा छोड़ी गई महिलाओं के लिए केंद्र थे, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण देते हैं। यह एक ऐसा पहलू था जिसके बारे में मैं बिल्कुल नहीं जानता थी। मैंने कहा, "क्या आप निश्चित हैं शशांक, यह सब सच है, उन्होंने (शशांक ने ) कहा, मैडम आप मुझे बताएं कि जब भी आप फ्री हों, मैं आपको खुद वहां ले जाऊंगा"। फिर मैंने आरएसएस के बारे में और अधिक पढ़ना शुरू कर दिया।