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भगवान् श्रीकृष्ण ने राधा से कहा-अखिल ब्रम्हांड में शिव - शक्ति ही हैं,प्रेम का आदर्श

Date : 23-Jul-2025
कल्चरल मार्क्सिज्म के शिकार, लैला-मंजनू, शीरी - फरहाद और रोमियो - जूलियट की असफल प्रेम कहानियों में भटकते हुए न केवल भारत वरन् विश्व के स्त्री- पुरुषों को सनातन दृष्टि से प्रेम को समझना होगा तभी प्रेम सफलीभूत होगा।प्रेम यदि दैहिक है तो निश्चित ही असफल होगा परंतु आध्यात्मिक भी है तो अमर रहेगा, सती और शिव का प्रेम इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। 


 शिव-शक्ति ही अखिल ब्रम्हांड में प्रेम की शाश्वतता का प्रतीक हैं। सती और शिव का अमर प्रेम अर्धनारीश्वर होकर प्रेम की पराकाष्ठा का द्योतक है।भावी पीढ़ी के लिए शिव - शक्ति का आदर्श प्रेम मार्गदर्शी है।सावन शिवरात्रि भगवान शिव के भक्तों के लिए महाशिवरात्रि के बाद दूसरा अत्यंत महत्वपूर्ण दिन होता है। यह हर साल सावन महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव की उपासना के लिए मनाया जाता है।

सावन के पवित्र महीने में कृष्ण चतुर्दशी की शिवरात्रि में प्रियजनों से यह बताने का वादा किया था कि अखिल ब्रम्हांड में शिव और सती से बड़े प्रेमी "न भूतो न भविष्यति" आखिर क्यों हैं ? आम - तौर पर राधा-कृष्ण को सर्वोच्च प्रेम का प्रतीक मानते हैं और इसमें कोई प्रश्न चिन्ह भी नहीं है, परंतु स्वयं श्री कृष्ण ने शिव और सती के प्रेम सर्वोच्चता प्रदान की है और यद्किंचित् यह भी कि श्रीकृष्ण, राधा जी को सर्वोच्च प्रेम का अर्थ भी समझाना चाहते थे!!! आईये क्या कथा है? सुनिए!!! 

कृष्ण चतुर्दशी की शिवरात्रि का यह वृतांत है, जब भगवान् श्रीकृष्ण से राधा जी ने प्रेम के वशीभूत होकर कहा कि विश्व में आपसे बड़ा प्रेमी कोई नहीं हो सकता है! तब श्री कृष्ण ने कहा नहीं राधा! इस अखिल ब्रम्हांड में महादेव से बड़ा कोई प्रेमी नहीं हो सकता और ऐंसा कहने के साथ श्रीकृष्ण के आँसू निकलने लगे और उन्होंने राधा को बताना प्रारंभ किया, श्री कृष्ण ने कहा कि राधा, सब रुप बदल- बदल कर नये रूप लेते रहे अलग- अलग रुप लेकर रास लीला करते रहे परंतु महादेव ने कभी अपनी सती (उमा) को नहीं छोड़ा। प्रिय राधा, दक्ष के यहाँ सती जब अग्नि प्रविष्ट हुईं तब महादेव ने उनके उसी शरीर को लिपटाये सदियों विचरण किया और प्रथम एक वर्ष लगातार विलाप किया वही अश्रु रुद्राक्ष बन गये तब महादेव ने वो रुद्राक्ष की माला पहनी और पूरे शरीर में भी रुद्राक्ष धारण कर लिए। 

महादेव ने "राख" तक नहीं छोड़ी पूरे शरीर में राख लपेट ली, वहीं सती के वाहन बाघ (सिंह) ने भी अपने प्राण त्याग दिए थे, तब महादेव ने सती के वाहन का चर्म पहन लिया जिसे आप हम बाघाम्बर के नाम से जानते हैं।  आज भी महाकाल ने सती की राख को अपने शरीर में लपेट कर रखा है। महादेव प्रेम की अतल गहराईयों में थे, तब सभी देवताओं ने चिंतित होकर मुझसे प्रार्थना की तब मैंने (भगवान् विष्णु) सुदर्शन चक्र से सती के 52 टुकड़े कर दिए, जो महान् शक्तिपीठ बने।

 महादेव ने उन टुकड़ों से भी सती की हड्डियाँ निकाल लीं और उनको गले में धारण कर लिया और आज भी धारण किए हुए हैं, उसके उपरांत महादेव योगी हो गये। प्रयोजन हेतु पार्वती के रूप में सती ने महादेव को पाने के लिए पुन:अवतार लिया महादेव ने उन्हें तभी स्वीकार जब मैंने विश्वास दिलाया। अब बताओ राधा क्या महादेव और सती से बड़ा कोई प्रेमी हो सकता है? अब तो राधा की आँसुओं की झड़ी लग गयी थी और श्री कृष्ण ने राधा को शाश्वत प्रेम की परिभाषा भी समझा दी थी। सनातन में प्रेम को "सत्यं शिवम् सुंदरम्" के रुप में शिरोधार्य किया गया है। 


लेखक - डॉ. आनंद सिंह राणा
 
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