संयुक्त राष्ट्र ने खुलासा किया है कि पिछले 30 वर्षों में पृथ्वी की 77 प्रतिशत से अधिक भूमि काफी शुष्क हो गई है। संयुक्त राष्ट्र विज्ञान-नीति इंटरफेस के एक अध्ययन के अनुसार, यह खतरनाक प्रवृत्ति वैश्विक कृषि, जल संसाधनों और जैव विविधता के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है। निष्कर्ष अभिनव जल प्रबंधन और टिकाऊ भूमि-उपयोग प्रथाओं की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। वैज्ञानिक और पर्यावरणविद मरुस्थलीकरण और जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई का आह्वान कर रहे हैं।
आज प्रकाशित रिपोर्ट में पाया गया कि 1990 से 2015 के बीच बढ़ती शुष्कता के कारण अफ्रीका ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 12 प्रतिशत खो दिया। इसने यह भी अनुमान लगाया कि अगले आधे दशक में अफ्रीका अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 16 प्रतिशत और एशिया लगभग 7 प्रतिशत खो देगा। इसने उल्लेख किया कि कुछ फसलें विशेष रूप से जोखिम में होंगी। उदाहरण के लिए, यदि वर्तमान रुझान जारी रहे तो केन्या में मक्का की पैदावार 2050 तक आधी हो जाने का अनुमान है। शुष्क भूमि वे क्षेत्र हैं जहाँ 90 प्रतिशत वर्षा वाष्पीकरण में नष्ट हो जाती है, जिससे वनस्पति के लिए केवल 10 प्रतिशत बचता है। रिपोर्ट के अनुसार, मध्य शताब्दी तक वैश्विक स्तर पर दो-तिहाई भूमि में कम पानी जमा हो जाएगा।