हिंदी रजतपट की स्वप्न सुंदरी हेमा मालिनी 16 अक्टूबर को अपने जीवन के 75वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी हैं । लोकप्रिय और सफल अभिनेत्री के साथ साथ वे एक प्रशिक्षित शास्त्रीय नृत्यांगना भी हैं। कई शास्त्रीय नृत्यों में पारंगत होने के कारण उनके फिल्मी नृत्य भी बहुत गरिमामय और साफ-सुथरे रहे हैं। हेमा एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्होंने अपने व्यस्त फिल्मी करियर के साथ-साथ अपने नृत्य कार्यक्रमों को भी हमेशा जारी रखा है। हेमा मालिनी भरतनाट्यम, मोहिनीअट्टम और कुचिपुड़ी नृत्यों में पूरी तरह से पारंगत नृत्यांगना हैं। पांच साल की उम्र से ही वह भरतनाट्यम सीखने लगी थीं और दस वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने एकल शो भी देने शुरू कर दिए थे।
वर्ष 1987 में जब उनकी गुरुमां ने उन्हें एकल नृत्य शो की बजाए नृत्य नाटिका करने के लिए प्रेरित किया तब से उन्होंने अपने अनेक नृत्य नाटकों से पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान बनाई और एक अलग प्रशंसक वर्ग भी तैयार किया है। उनके द्वारा की गई पहली नृत्य नाटिका "नृत्य मल्लिका" शीर्षक से थी। यह पहला अवसर था कि वह मंच पर दूसरे कलाकारों के साथ नृत्य प्रदर्शन कर रही थीं । इतना ही नहीं यह पहली ऐसी नृत्य प्रस्तुति थी जो पहले से रिकॉर्ड संगीत के आधार पर की जानी थी।
इसके नृत्य निर्देशक भूषण लखंदरी थे और संगीत शैली दत्ता ने तैयार किया था। इसमें मणिपुरी, कत्थक एवं ओडिसी के साथ-साथ भरतनाट्यम , मोहिनीअट्टम कुचिपुड़ी के नृत्यों को भी समायोजित किया गया था। इसके बाद तो उन्होंने भारत के कई पौराणिक स्त्री चरित्रों को बड़ी गरिमा के साथ देश-विदेश में प्रस्तुत किया। इनके लोकप्रिय होने के कारणों पर हेमा मालिनी का कहना है कि शास्त्रीय या एकल नृत्य दर्शकों को पूरी तरह से आकर्षित नहीं कर पाते हैं पर नृत्य नाटिका इसमें सफल रहती है, क्योंकि इसमें तीन विधाओं नृत्य, नाटक और संगीत का मिश्रण होता है। अत: इन्हें छोटे शहरों,कस्बों और ग्रामीण दर्शक भी बहुत उत्सुकता से देख पाते हैं।
इसके बाद उन्होंने मीरा, रामायण, दुर्गा, महालक्ष्मी, सावित्री, राधा कृष्ण, गीत गोविंद,द्रौपदी, परंपरा और यशोदा- कृष्ण जैसी बेहतरीन नृत्य नाटिकाएं तैयार कीं। गीत गोविंद और परंपरा नृत्य नाटकों का निर्देशन दीपक मजूमदार ने किया है बाकी सबके कोरियोग्राफर भूषण लखंदरी हैं। इन सबका संगीत रविंद्र जैन ने बनाया और नृत्य नाटकों के लिए उनका स्वर बनीं कविता कृष्णमूर्ति। इतना ही नहीं उनकी दोनों बेटियां ईशा और आहना भी प्रशिक्षित डांसर हैं और उनके साथ विभिन्न नृत्य नाटकों में भाग लेती रहती हैं।
चलते-चलते-
अपने तीन दशकों से भी लंबे फिल्मी जीवन में हेमा मालिनी को हर प्रकार की मनोदशा और पलों को दर्शाने वाले गीतों पर नृत्य करने का अवसर मिला। 'चरस' फिल्म में उन्होंने क्लियोपेट्रा डांस किया तो 'दस नंबरी' में एक बार बाला बनी थीं। 'जानेमन' में उन्होंने मुजरा किया और 'स्वामी' फिल्म में नौटंकी की प्रस्तुति की। 'मीरा' में वह तानपुरा लेकर मंदिर में झूमती नजर आईं तो 'अली बाबा और चालीस चोर' के लिए उन्होंने पहली बार अरेबियन बैले डांस भी किया। 'द बर्निंग ट्रेन' फिल्म में परवीन बॉबी के साथ पूर्वी और पश्चिमी नृत्य कलाओं के बीच प्रतिस्पर्धा भी की। 'ज्योति' फिल्म में उन्होंने एक बाल कलाकार के साथ डांडिया रास किया। उन्हें आज भी याद है कि 'शरारा' फिल्म में राजकुमार के साथ वाल्त्ज-नृत्य में कदम-ताल का मेल रखना कितना आवश्यक था और कैसे 'नसीब' में एक लोक गायक के रूप में उनके नृत्य में बेलौस अंदाज की आवश्यकता थी।
फिल्मों में नृत्य को लेकर उन्होंने प्रसिद्ध पत्रकार भावना सोमाया द्वारा लिखी आत्मकथा में रोचक जानकारियां साझा की हैं । हेमा जी का मानना है कि अगर आपका शरीर शास्त्रीय नृत्य के लिए प्रशिक्षित हो तो साधारण नृत्य की प्रस्तुति काफी कठिन हो जाती है। हिंदी फिल्मों में उनका पहला नृत्य "सपनों का सौदागर" फिल्म के लिए था और इसका नृत्य निर्देशन जाने-माने नृत्य निर्देशक हीरालाल मास्टर कर रहे थे। उन्होंने एक जोशीले नृत्य को विभिन्न लुभावनी भंगिमाओं और जोरदार ठुमकों के साथ तैयार किया लेकिन हेमा को उन जोशीली ठुमकों से मुश्किल थी और अपने गुरु के लाख चिल्लाने पर भी वह अपनी छाती को झटक नहीं पाती थीं और न ही उनकी खुले तौर पर इशारेबाजी वाली भंगिमाओं जैसे निचले होठों को काटना आदि की नकल करने में सहज नहीं हो पा रही थीं। जब भी कैमरा स्टार्ट होता तो वह उसी तरह ही नृत्य प्रस्तुत करती जैसा कि उन्हें आता था और वे करना चाहती थीं।
क्लोजअप में भी विभिन्न भावों की जगह है वह केवल मुस्कुराकर रह जाती । हीरालाल मास्टर इस बात को लेकर बेहद नाराज थे की एक नया कलाकार उनके निर्देशों को नहीं मान रहा है। लेकिन हेमा मालिनी ने पूरी फिल्में कोई समझौता नहीं किया तो थक हारकर हीरालाल मास्टर ने हेमा की झिझक के आगे अपने हथियार डाल दिए। आने वाले वर्षों में दूसरे नृत्य निर्देशकों के साथ भी हेमा ने अपने घिसे-पिटे नृत्य संयोजनों को अपनाने की बजाय ऐसे संयोजन अपनाए जो उनके व्यक्तित्व को शूट करते थे।