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Art & Music

संगीत के शंहशाह पार्श्व गायक - मुकेश

Date : 11-Nov-2022

 संगीत के शंहशाह पार्श्व गायक मुकेश बेशक हमारे बीच नहीं है, लेकिन संगीत प्रेमियों के दिलों में वह अपने गाये गीतों के जरिये सदैव जीवित रहेंगे। 27 अगस्त को मुकेश की 45वीं पुण्यतिथि है। संगीत के दीवानो के लिए मुकेश एक बेशकीमती तोहफे के समान थे। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि मुकेश कभी भी सिंगर नहीं बनना चाहते थे। वह अभिनेता बनने का सपना लिए मुंबई आये थे,लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था।

22 जुलाई , 1923 को लुधियाना मे जन्में मुकेश का पूरा नाम मुकेश चंद्र माथुर था। मुकेश की बड़ी बहन संगीत की शिक्षा लेती थीं और मुकेश बड़े ध्यान से उन्हें सुना करते थे। बड़ी बहन को गाते देखकर मुकेश के मन में संगीत के प्रति गहरी रुचि पैदा होने लगी। इसके बाद मुकेश ने मोतीलाल से संगीत की पारम्परिक शिक्षा लेनी शुरू कर दी। लेकिन संगीत में रुचि होने के बावजूद मुकेश की ख्वाहिश हिन्दी फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने की थी। मुकेश ने 10वीं के बाद पढाई छोड़ दी और नौकरी करने लगे। लेकिन उनका मन बार-बार बड़े पर्दे की तरफ आकर्षित हो रहा था। अतः वह अभिनेता बनने का सपना लिए काम छोड़कर मुंबई आ गए। यहां उन्होंने फिल्मों मे अभिनय करना शुरू किया लेकिन इसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली। जिसके बाद मुकेश ने गायन के क्षेत्र मे रुख किया।

मुकेश ने 1940 से 1976 के बीच सैकड़ों फिल्मों के लिए गीत गाए जो हिट रहे। इस क्षेत्र मे उन्हें दर्शकों का बेशुमार प्यार मिला और उन्होंने सफलता की ऊंचाइयों को छुआ। मुकेश को 1941 में रिलीज हुई फिल्म 'निर्दोष' मे बतौर सिंगर पहला ब्रेक मिला। उस जमाने के मशहूर गायक-अभिनेता के एल सहगल को मुकेश की आवाज़ बहुत पसंद आयी। 40 के दशक में मुकेश की आवाज में सबसे ज्यादा गीत दिलीप कुमार पर फिल्माएं गये। वहीं 50 के दशक में मुकेश को राजकपूर की आवाज कहा जाने लगा। मुकेश ने राजकपूर की कई फिल्मों में गीत गाये, जिनमें 'मेरा जूता है जापानी'(आवारा),किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार (अन्दाज), दोस्त दोस्त ना रहा ( संगम), जाने कहां गये वो दिन ( मेरा नाम जोकर), कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है ( कभी कभी) जैसे कई मशहूर गीत गाए ,जो आज भी दर्शकों की जुबान पर रहते हैं।

मुकेश को फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक,राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार तथा भारतीय पार्श्वगायक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।मुकेश को चार बार फिल्फेयर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मुकेश ने अपने करियर का आखिरी गाना राज कपूर की फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' के लिए गाया था। लेकिन, 1978 में इस फिल्म की रिलीज से दो साल पहले ही 27 अगस्त ,1976 को मुकेश का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। भारतीय सिनेमा मे अपने दिए गए बहुमूल्य योगदान के लिए वह हमेशा याद किये जायेगे।

हिन्दुस्थान समाचार/सुरभि सिन्हा/कुसुम

 
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