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"लक्ष्य निर्धारित करना अदृश्य को दृश्य में बदलने का पहला कदम है" -टोनी रॉबिंस

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प्रेरक प्रसंग अध्याय 21:- आदमी की कीमत

Date : 27-Feb-2024
 
तैमूरलंग की क्रूरता से सारी प्रजा त्रस्त थी | उस लंगड़े, नाटे, महाकुरूप नरपिशाच ने न जाने कितने देशों को रौंद डाला था, न जाने कितने घरों को उजाड़ दिया था | ऐसे क्रूर कराल के सामने एक बार बंदियों को लाया गया और उनके भाग्य का निर्णय दिया जाने लगा | उन बंदियों में तुर्किस्थान का प्रसिद्ध कवि अहमदी भी था | उसे जब पकड़कर तैमूरलंग के पास लाया गया, तो तैमूर ने दो गुलामों की ओर इंगित करते हुए अहमदी से कहा, “मैंने सुना है, कवि लोग बड़े पारखी होते हैं | भला बताओ तो इन दो गुलामों की क्या कीमत है ?”
 
“इन दोनों में से कोई भी चार सौ अशर्फियों से कम कीमत का नहीं है |”- अहमदी ने जवाब दिया | यह सुन तैमूर को बड़ा ही आश्चर्य हुआ | उसने पुन: प्रश्न किया, “भला मेरी क्या कीमत है ?”
 
अहमदी स्पष्टवादी एवं स्वाभिमानी था| उसने जवाब दिया, “आपकी कीमत सिर्फ चौबीस अशर्फियां हैं |” “क्या, मेरी कीमत सिर्फ चौबीस अशर्फियां हैं ?”- साश्चर्य तैमूर बोला, “इतने मूल्य की तो यह मेरी सदरी ही है |”
“जी हाँ, मैंने उसी की कीमत तो लगायी है |” – स्वाभिमानी कवि ने जवाब दिया | 
“याने मेरी स्वयं की कोई भी कीमत नहीं ?” – तैमूर ने प्रतिप्रश्न किया |
“जी नहीं | जिस व्यक्ति में दया तनिक- मात्र भी नहीं, भला ऐसे दुष्ट को ‘मनुष्य की संज्ञा भी दी जा सकती है ? और फिर उसकी कीमत भी क्या होगी ?”
 
तैमूर के बारे में कही गयी बात सत्य थी, अत: वह चुपचाप सुनता रहा | उसे दंड तो वह दे न सकता था, क्योंकि वैसा करने से अहमदी द्वारा आंकी गयी कीमत सही मानी जा सकती थी, अत: उसने अहमदी को ‘पागल’ करार कर रिहा कर दिया | 
 
 
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