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तुष्टीकरण की दिशा में कर्नाटक सरकार का आश्चर्यजनक निर्णय

Date : 28-Feb-2024

काँग्रेस और उनकी सरकारों पर तुष्टीकरण के आरोप लगते रहे हैं इसका कारण उनकी ऐसी नीतियाँ रहीं हैं जिनसे हिन्दू अधिकार सीमित हुये और अल्पसंख्यक अधिकार बढ़े । इससे आरोप को बल मिला । अब  कर्नाटक सरकार ने अपने बजट में जहाँ अल्पसंख्यक कल्याण केलिये तो धनराशि में वृद्धि की है वहीं मंदिरों के चढ़ावे पर भी टेक्स लगा दिया है । अब कर्नाटक में मंदिर प्रबंध न्यास में गैरहिन्दू भी सदस्य नामांकित हो सकेंगे।

 संभवतः भारत संसार में ऐसा अकेला देश है जहाँ अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकार बहुसंख्यक समाज की तुलना में अधिक होते हैं। चर्च या मस्जिद प्रबंधन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता पर मंदिर प्रबंधन में होता है । दान के रूप में चर्च या मस्जिद के पास जो धन आता है उसका व्यय संबंधित समाज ही अपनी आवश्यकतानुसार करते हैं किन्तु मंदिरों में आने वाले दानधन के व्यय का निर्णय वह न्यास करता है जिसमें शासन द्वारा नामांकित प्रतिनिधि भी होते हैं । मंदिरों पर नियंत्रण करने का यह काम अंग्रेजीकाल में लागू हुआ था जो स्वतंत्रता के बाद भी यथावत रहा । अनेक बार आवाजें उठीं लेकिन सरकारी नियंत्रण से मंदिर मुक्त न हो सके । बल्कि मंदिरों की आय को हथियाने के नये नये तरीके निकाले गये । जबकि अल्पसंख्यक संस्थानों अपेक्षाकृत सुविधायें बढ़ाई गईं। धार्मिक प्रावधानों और पर्सनल लाॅ में अल्पसंख्यकों अपेक्षाकृत अधिक सामाजिक अधिकार देने के कारण ही काँग्रेस पर तुष्टीकरण के आरोप लगते रहे । अब इसी दिशा कर्नाटक सरकार ने दो कदम और आगे बढ़ाये हैं। ऐसा माना जा रहा है कि अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर रामलला के विराजमान होने से हिन्दू समाज में आस्था बढ़ी है और धार्मिक पर्यटन भी बढ़ा है । न केवल अयोध्या अपितु अपने आसपास के मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है । मंदिर में यदि श्रृद्धालु बढ़ेंगे तो चढ़ावा भी बढ़ेगा। संभवतः इसका अनुमान लगाकर ही कर्नाटक सरकार ने एक विधेयक लाकर दो निर्णय लिये हैं। इसके अनुसार अब कर्नाटक में मंदिर प्रबंधन न्यास में गैर हिन्दू भी सदस्य हो सकेंगे और चढ़ावे पर टेक्स लगेगा । 
 
मंदिरों में दान के रूप में भी धन आता है और चढ़ावे से भी । मंदिरों में आने वाली दान राशि पर तो सरकार की नजर रहती थी पर चढ़ावा मुक्त था । सामान्यता चढ़ावे की यह राशि पुजारी या वहाँ कार्यरत सेवादारों में वितरित हो जाती है और मंदिर के रखरखाव पर भी । कर्नाटक की काँग्रेस सरकार ने अब चढ़ावे पर भी टेक्स लगा दिया है । मंदिरों के चढ़ावे पर टेक्स बसूलने वाला विधयक कर्नाटक विधानसभा में इसी सप्ताह बुधवार को आया । इससे चार दिन पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री सिद्धारमैय्या ने पिछले सप्ताह शुक्रवार को अपने बजट संबोधन में अल्पसंख्यक कल्याण के लिये राशि वृद्धि की घोषणा की थी । 

चढ़ावे पर टेक्स वृद्धि विधेयक 

कर्नाटक विधानसभा में भाजपा सहित विपक्षी दलों के भारी विरोध के बावजूद पारित इस विधेयक का पूरा नाम  'कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक 2024 (Karnataka Hindu Religious Institutions and Charitable Endowments Bill 2024) है । इसमें प्रावधान किया गया है कि कर्नाटक के जिन हिंदू मंदिरों में चढ़ावे के रूप में एक करोड़ रुपये या इससे अधिक की आय होती है। वहाँ दस प्रतिशत टेक्स लगेगा । जबकि एक करोड़ से कम और दस लाख से अधिक वार्षिक चढ़ावा प्राप्त करने वाले मंदिरों को पाँच प्रतिशत टैक्स देना होगा । अभी तक मंदिर परिसर की दुकानों के किराये, मंदिर से संबंधित कृषि भूमि अथवा अन्य प्रतिष्ठानों संचालन से होने वाली  की आय पर ही टैक्स लगता था पर चढ़ावा मुक्त था । लेकिन अब कर्नाटक सरकार ने चढ़ावे को भी टेक्स में शामिल कर लिया है । इस विधेयक में चढ़ावे पर टेक्स के अतिरिक्त एक और प्रावधान है । अब कर्नाटक सरकार मंदिर प्रबंध न्यास में हिन्दू या अन्य धर्मों के सदस्य को भी मनोनीत कर सकेगी। यनि अब गैर हिन्दू भी मंदिर प्रबंधन का अंग हो सकेंगे। चर्च में गैर ईसाई या वक्फ बोर्ड अथवा मस्जिद इंतजामिया कमेटी में गैर इस्लामिक कोई सदस्य नहीं हो सकता । लेकिन कर्नाटक सरकार ने मंदिर प्रबंधन में गैर हिन्दू को सदस्य बनाने का मार्ग बना लिया है । यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि भले हिन्दू समाज के लोग अन्य धर्म स्थलों में श्रृद्धा के साथ भले चले जांये पर ईसाई अथवा इस्लामिक समाज के लोग सनातनी आस्था में विश्वास नहीं करते । वे भी नहीं जिनकी आजीविका का साधन हिन्दू धर्मस्थलों अथवा हिन्दू तीर्थ यात्री होते हैं। इस हिन्दू मंदिरों के आसपास गैर हिन्दुओं के कारोबार से समझा जा सकता है। हिन्दू तीर्थस्थलों पर बड़ी संख्या में  गैर हिन्दुओं की दुकानें हैं। इनमें अन्य सामग्री के साथ फूल, प्रसाद, चुनरी एवं चढ़ावे की अन्य सामग्री भी है। गैर हिन्दुओं की ऐसी दुकाने अयोध्या, मथुरा, काशी, द्वारिका, उज्जैन, औंकारेश्वर सहित देशभर के  अधिकांश हिन्दू तीर्थ स्थानों पर देखीं जा सकतीं हैं । अन्य प्रांतों में तो हिन्दू तीर्थस्थलों के आसपास गैर हिन्दुओं की दुकाने ही होती हैं।  लेकिन कर्नाटक सरकार ने यह विधेयक लाकर इससे एक कदम आगे मंदिर प्रबंधन में भी गैरहिन्दुओं को शामिल करने का मार्ग बना दिया है ।

कर्नाटक में अल्पसंख्यक कल्याण राशि बढ़ी 

कर्नाटक सरकार ने एक ओर मंदिरों के चढ़ावे पर तो टेक्स लगाया है लेकिन दूसरी ओर अपने बजट में अल्पसंख्यक कल्याण राशि में बढ़ोत्तरी की है । यह वृद्धि दोनों प्रकार की है । चर्च और वक्फ बोर्ड को दिये जाने वाले अनुदान में भी और अल्पसंख्यक कल्याण केलिये अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अंतर्गत चलने वाले योजनागत कार्यों के प्रावधान में भी ।कर्नाटक सरकार ने वर्ष 2024-25 के अपने बजट में मुस्लिम समाज के वक्फ बोर्ड को 100 करोड़ रुपये और ईसाई समुदाय को 200 करोड़ रुपये अनुदान देने का प्रावधान किया है । वहीं अल्पसंख्यक विकास निगम के माध्यम से 393 करोड़ रुपये की लागत से अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रम चलाने की घोषणा भी की है । कर्नाटक में सरकार द्वारा अनुदान के रूप में वक्फ बोर्ड को जो राशि दी जाती है वह मस्जिद के इमामों के वेतन और मस्जिद के रखरखाव पर व्यय होती है । इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री श्री सिद्धारमैय्या ने यह घोषणा भी की है कि 'मौलवियों' और 'मुत्तवल्लियों' के वर्कशॉप कर्नाटक वक्फ बोर्ड के साथ पंजीकृत भी किए जाएंगे । अल्पसंख्यक कल्याण के लिये योजनाएँ चलाने और बजट वृद्धि की यह घोषणा पिछले सप्ताह शुक्रवार को मुख्यमंत्री श्री सिद्धारमैय्या ने स्वयं की । 

मंदिरों से सरकार को आय 

सरकार मंदिरों के रखरखाव या मंदिर विकास पर धर्मस्व विभाग के माध्यम से राशि व्यय करती है । पर सरकार का धर्मस्व विभाग मंदिरों के रखरखाव या अन्य विकास पर जितनी राशि व्यय करती है सरकार को उससे कहीं अधिक राशि मंदिरों से प्राप्त होती है । कर्नाटक सरकार को वर्ष 2023-24 में मंदिरों से 445 करोड़ रुपया प्राप्त हुआ था । जबकि इसमें से मंदिरों के विकास पर केवल सौ करोड़ रुपया ही व्यय हुआ था । इस प्रकार कर्नाटक सरकार को मंदिरों से 345 करोड़ की आय हुई थी । अब आगामी वर्ष कर्नाटक सरकार की आय में इस नये विधेयक से और वृद्धि होगी मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या से भी और चढ़ावे पर लगाये गये टैक्स से भी । वह भी अल्पसंख्यक कल्याण के लिये अपेक्षाकृत अधिक राशि का प्रावधान करके ।
 
लेखक - रमेश शर्मा 
 
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