चाणक्य नीति:- गुणवान एक भी पर्याप्त है Date : 01-May-2024 एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगंधिना | वसिन तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा || आचार्य चाणक्य कहते हैं कि गुणवान एक भी अपने गुणों का विस्तार करके नाम कमा लेता है| उनका कहना है कि वन में सुंदर खिले हुए फूलोंवाला एक ही वृक्ष अपनी सुगंध से सारे वन को सुगन्धित कर देता है| इसी प्रकार एक सुपुत्र सारे कुल का नाम ऊँचा कर देता है| आशय यह है कि यदि वन में कहीं पर एक ही वृक्ष में भी सुंदर फुल खिले हों, तो उसकी सुगंध से सारा वन महक उठता है| इसी तरह एक ही सपूत सारे वंश का नाम अपने गुणों से उज्ज्वल कर देता है| क्योंकि कोई भी वंश गुणी पुत्रों से ही ऊँचा उठता है इसलिए अनेक गुणहीन पुत्रों की अपेक्षा एक गुणवान पुत्र ही पर्याप्त है इसीलिए आज के परिवार नियोजन के संदर्भ में अनेक बच्चों की जगह एक ही अच्छे बच्चे का होना अधिक सुखकर माना जाता है|