हिंदू कैलेंडर में यशोदा जयंती का खास महत्व है। पूरे उत्तर भारत में हर साल फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। हालांकि महाराष्ट्र, गुजरात और साउथ के कई राज्यों में यशोदा जयंती को माघ महीने में इसी तिथि के दिन मनाया जाता है। यह व्रत संतान के प्रति माता के प्रेम का प्रतीक है|
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब भगवान विष्णु ने धरती पर कृष्ण के रूप में अवतार लिया था, तो उनका जन्म देवकी माता की कोख से हुआ था, लेकिन भगवान कृष्ण का पालन-पोषण माता यशोदा ने किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन माता यशोदा के साथ भगवान कृष्ण की पूजा- अर्चना करने से सारे दुख दूर होते हैं और संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है। और घर-परिवार में खुशी- शांति और धन्य-धान्य की वृद्धि होती है |
यशोदा जयंती का समय
यशोदा जयंती 2024 में फाल्गुन महीने में 1 मार्च 2024 दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन षष्ठी तिथि है जो सुबह 6 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी और 2 मार्च 2024 को सुबह 7 बजकर 53 मिनट तक रहेगी।
धार्मिक महत्व
एक कथाओं के अनुसार, धरती पर अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु जी को कृष्ण के रूप में अवतार लेना पड़ा था। भगवान विष्णु समय-समय पर दुष्टों का विनाश करने के लिए धरती पर अवतरित होते रहे हैं। द्वापर युग में जब मथुरा नरेश कंस का अत्याचार बढ़ गया और लोग उससे परेशान होने लगे तो कंस के अंत के लिए भगवान कृष्ण ने जन्म लिया। भगवान कृष्ण ने कंस की ही बहन देवकी के गर्भ से जन्म लिया। पुत्र के प्राणों की रक्षा करने के लिए भगवान कृष्ण के पिता वसुदेव उन्हें अपने मित्र नंद के पास छोड़ आए थे। जहां कृष्ण के लालन-पालन का सौभाग्य नंद बाबा की पत्नी माता यशोदा को मिला था।
यशोदा माता कृष्ण से इतना प्रेम करती थीं कि उन्हें उनकी लीलाएं सिर्फ लल्ला का बाल रूप ही नजऱ आती थीं। यशोदा के कृष्ण प्रेम से पूरे ब्रजवासी भलीभांति परिचित थे। कृष्ण भी अपनी मैय्या यशोदा से बेहद लगाव रखते थे। यही वजह है कि भगवान कृष्ण को यशोदानंदन भी कहते हैं।
यशोदा जयंती की पूजा विधि
- यशोदा जयंती पर भगवान कृष्ण के बाल रूप जिसमें मां यशोदा की गोद में कान्हा हों ऐसी तस्वीर की पूजा करने का विधान है।
- जो लोग इस दिन पूजा करते हैं उन्हें प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। साफ कपड़े पहनकर ही पूजा करनी चाहिए।
- इसके बाद माता यशोदा और कान्हा की गोल की हुई तस्वीर या फोटो पूजा स्थल पर लगाएं।
- पूजा में धूप-दीप जलाकर, रोली-चावल से उनकी टीका करें और पुष्प अर्पित करें।
- इसके बाद कृष्ण भगवान और माता को चंदन और रोली लगाएं और पान-सुपारी चढ़ाएं।
- कान्हा का पसंदीदा भोगा पेड़ा, माखन और मिश्री चढ़ाकर आरती जाएं और पूजा संपन्न करें।