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संघ चाहता है भारत में रामराज्‍य और कांग्रेस दे रही हिन्‍दू धर्म की शक्‍ति को चुनौति

Date : 19-Mar-2024

 

देश में घटे इस संयोग को देखिए; अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा नागपुर में   सम्‍पन्‍न हुई। जब यह अपनी पूर्णता को प्राप्‍त कर रही थी, उसी समय  मुंबई के शिवाजी पार्क में एक घटना घट रही थी, यहां कांग्रेस के मुखियाओं में से एक राहुल गांधी मंच से बोल रहे थे ''हम न बीजेपी और न ही एक व्यक्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं। एक व्यक्ति को चेहरा बनाकर ऊपर कर रखा है। हिंदू धर्म में एक शब्द शक्ति होता है। हम शक्ति से लड़ रहे हैं।'' राहुल गांधी के बाद जब कांग्रेस अध्‍यक्ष  मल्‍ल‍िकार्जुन खड़गे बोलने खड़े हुए तो वे भी अपने अंदर के सच को बाहर निकलने से नहीं रोक पाए । उन्‍होंने भाजपा के पास आरएसएस की शक्‍ति और उसकी विचारधारा के होने का आरोप लगाया और कहा कि इस आइडियोलॉजी को हमें समाप्‍त कर देना है । 

कुल मिलाकर, पहले राहुल गांधी घोषणा करते हैं कि उनकी लड़ाई हिन्‍दू धर्म की शक्‍ति से हैं । वे उस शक्‍ति को समाप्‍त कर देना चाहते हैं। वहीं उनकी पार्टी के अध्‍यक्ष एक कदम ओर आगे बढ़ जाते हैं, जिसका निष्‍कर्ष है; भारत भर से राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की विचारधारा को मिटा देना है। क्‍योंकि उनकी लड़ाई इसी आइडियोलॉजी से है। देखा जाए तो राहुल और खड़गे दोनों एक ही बात अपने-अपने तरीके से कह रहे हैं । दोनों के लक्ष्‍य स्‍पष्‍ट हैं। उद्देश्‍य यही है कि संघ की विचारधारा जोकि सनातन धर्म के जयघोष की आइडियोलॉजी है। विश्‍व बन्‍धुत्‍व और सभी के सुखी रहने की कामना की है। लोककल्‍याण के लिए रामराज्‍य की स्‍थापना की है। कांग्रेस उस विचारधारा को संपूर्ण भारत से समाप्‍त कर देना चाहती है । 
यह भी एक संयोग ही है कि जब राहुल और खड़गे इस तरह से संघ विचार और हिन्‍दू धर्म की शक्‍ति को समाप्‍त करने की बात कह रहे थे, उसी समय राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बैठक की  पूर्णाहुति हो रही थी। इस बैठक में जो विचार हुआ, उसकी एक झलक इस बैठक मे आए प्रस्‍ताव '' श्रीराममंदिर से राष्‍ट्रीय पुनरुत्‍थान की ओर '' में देखी जा सकती है। इस प्रस्‍ताव में कहा गया '' श्री अयोध्याधाम में प्राणप्रतिष्ठा...इस बात की द्योतक है कि श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप समरस, सुगठित राष्ट्रजीवन खड़ा करने का वातावरण बन गया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारंभ का संकेत भी है।...मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन हमें सामाजिक दायित्वों के प्रति प्रतिबद्ध रहते हुए समाज व राष्ट्र के लिए त्याग करने की प्रेरणा देता है। उनकी शासन पद्धति “रामराज्य” के नाम से विश्व इतिहास में प्रतिष्ठित हुई, जिसके आदर्श सार्वभौमिक व सार्वकालिक हैं।...श्रीराम के जीवन मे परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है।''

फिर इसमें आगे कहा गया कि '' सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा समस्त भारतीयों का आवाहन करती है कि बंधुत्व भाव से युक्त, कर्तव्यनिष्ठ, मूल्याधारित और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता करनेवाले समर्थ भारत का निर्माण करें।'' 

वस्‍तुत: इस संपूर्ण प्रस्‍ताव का जो निष्‍कर्ष निकलता है, वह है भारत में सभी वर्ग, समुदायों, मत, पंथ, विचारधाराओं के बीच के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त करते हुए समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज खड़ा कर देना। ताकि भविष्‍य का भारत, श्रीराम के आदर्श को स्‍थापित करते हुए विश्‍व कल्‍याण को धरातल पर उतार पाए । अब आप ही बताए; इसमें क्‍या अनुचित कामना राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ द्वारा की जा रही है ? जो इस संपूर्ण संगठन को मिटाने के लिए राहुल गांधी, उनकी पार्टी के अध्‍यक्ष मल्‍ल‍िकार्जुन खड़गे समेत उन जैसे तमाम नेता आज इच्‍छा रखते हैं । क्‍या कोई भी भारतीय नहीं चाहेगा कि भारत शक्‍ति सम्‍पन्‍न देश बने ?  देश में जितनी भी आपसी कलह हैं, वे पूरी तरह से समाप्‍त हो जाएं ? विश्‍व बन्‍धुत्‍व की कामना से ओतप्रोत भारत आनेवाले समय में दुनिया का नेतृत्‍व करे ? निश्‍चित ही यह कामना हर देश भक्‍त भारतीय की है। 

वस्‍तुत: आज हमें यह स्‍वीकार्य करना होगा कि दुनिया में हर देश और समाज के अपने प्राणतत्‍व हैं। भारत का प्राण तत्‍व  सनातन धर्म (हिन्‍दुत्‍व) यानी कि हिन्‍दू धर्म में है, जिसके प्रमुख आदर्श पुरुषों में एक श्रीराम हैं। श्री राम का आदर्श सिर्फ सज्‍जनता तक सीमित नहीं, वह तो सर्वसमावेशी है।  जहां दुष्‍टों के दमन की आवश्‍यकता है, वहां दुष्‍टों का नाश किया जाएगा और जहां ज्ञान यज्ञ करना है, वहां उसे भी भव्‍यता के साथ पूरा किया जाएगा। स्‍त्री स्‍वरूपा शक्‍ति के मान के लिए फिर रावण जैसे दुराचारी से भी क्‍यों न लड़ना पड़े, उसे जड़ से समाप्‍त कर देना ही राम का आदर्श है । 

कहना होगा कि श्रीराम की शक्‍ति ही हिन्‍दू धर्म का प्राण तत्‍व है। राम के बिना शक्‍ति और शक्‍ति के बिना राम अधुरे हैं, इसलिए दुष्‍ट रावण के संधान के लिए राम शक्‍ति का आह्वान करते हैं । ''साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम ! कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।'' ...'''होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन। कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।''  इन पंक्तियों का निष्‍कर्ष या कुल अर्थ है कि महाशक्ति, अर्थात्  माँ भगवती श्रीराम के शरीर में उनकी ऊर्जा बन कर लीन हो गई।  (राम की शक्‍ति पूजा, सूर्यकान्त त्रिपाठी) 

ऐसे में कांग्रेस आज जिस हिन्‍दू धर्म की जिस शक्‍ति को समाप्‍त करने की बात कह रही है, कहीं यह न हो जाए कि हिन्‍दू धर्म में श्रीराम के चरित्र में आबद्ध यह शक्‍ति उसी (कांग्रेस) का नाश कर देवे। क्‍योंकि यह शक्‍ति भारत के कण-कण में व्‍याप्‍त है। वस्‍तुत: किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब तक हिन्‍दू धर्म में शक्‍ति शेष है, तभी तक भारत वर्ष का भी    अस्‍तित्‍व है। और फिर भारत का यह अस्‍तित्‍व तमाम संकटों के बाद भी बचा हुआ है तो कुछ तो बात यहां की सभ्‍यता और   संस्‍कृति में होगी ही। जिसकी समाप्‍ति की कामना करते-करते कई लोग मिट गए, पर इसे नहीं मिटा सके। अब उसे मिटा देने का सपना आज कांग्रेस पाल बैठी है! अच्‍छा तो यही होगा कि कांग्रेस भी आज हिन्‍दू धर्म की शक्‍ति और राष्‍ट्रीय    स्‍वयंसेवक संघ के 'स्‍व' को समझे, जिसका कि मूल उद्देश्‍य सफल राष्ट्र का अनुपम वैभव सभी भांति से है लाना। सब समाज को लिए साथ में आगे ही बढ़ते जाना है।
 
 
 
लेखक : डॉ. मयंक चतुर्वेदी 
 
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