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भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति और बिड़ला समूह के संस्थापक- घनश्यामदास बिड़ला

Date : 10-Apr-2024

 

जयंती विशेष :- घनश्यामदास बिड़ला भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति और बिड़ला समूह के संस्थापक थे। उनके द्वारा स्थापित बी. के. के. एम. बिड़ला समूह की परिसंपत्तियाँ लगभग 195 अरब रुपये से अधिक है। स्वाधीनता आन्दोलन के समय भी उनका अमूल्य योगदान रहा। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान उन्होंने पूंजीपतियों से राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन करने एवं कांग्रेस को मज़बूत करने की गुज़ारिश की। घनश्याम दास ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का समर्थन किया और राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए अनेक मौकों पर आर्थिक सहायता भी दी। इसके साथ- साथ उन्होंने सामाजिक कुरीतियों का भी विरोध किया और सन 1932 में गांधीजी के नेतृत्व में हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष बने। वे महात्मा गाँधी के करीबी मित्र, सलाहकार एवं सहयोगी थे। उनके द्वारा स्थापित बिड़ला समूह का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, विस्कट फ़िलामेंट यार्न, सीमेंट, रासायनिक पदार्थ, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम जैसे क्षेत्रों में फैला है। देश के प्रति उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए भारत सरकार ने सन् 1957 में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। वे भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ के भी सह-संस्थापक थे। यह संस्था भारत के व्यापारिक संगठनों का संघ है।
 
घनश्यामदास बिड़ला का जन्म 10 अप्रैल, 1894 में राजस्थान के पिलानी गाँव में एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उनके दादा शिव नारायण बिड़ला ने मारवाड़ी समुदाय के पारंपरिक व्यवसाय ‘साहूकारी/गिरवी’ से हटकर अलग क्षेत्रों में व्यापार का विकास किया था। घनश्यामदास के पिता बलदेवदास जो नवलगढ़ बिरला परिवार से गोद लिए हुए दत्तक पुत्र थे ने अपने भतीजे फूलचंद सोधानी के साथ मिलकर अफीम के व्यवसाय में पैसा कमाया था। इसी व्यवसाय में घनश्यामदास के बड़े भाई जुगल किशोर ने भी नाम कमाया।
घनश्यामदास का विवाह सन 1905 में दुर्गा देवी के साथ करा दिया गया। दुर्गा देवी महादेव सोमानी की पुत्री थीं जो पिलानी के पास के चिरावा गांव के निवासी थे। बिड़ला परिवार की भांति घनश्यामदास के ससुर महादेव सोमानी भी व्यवसाय के लिए कोलकाता चले गए थे। सन 1909 में दुर्गा देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम लक्ष्मी निवास रखा गया। लगभग इसी समय दुर्गा देवी टी.बी. से पीड़ित हो चुकी थीं और सन 1910 में इस रोग से उनकी मृत्यु हो गयी। सन 1912 में घनश्याम दास बिड़ला ने अपने ससुर एम. सोमानी की मदद से दलाली का व्यवसाय शुरू कर दिया।
सन 1912 में घनश्यामदास ने महेश्वरी देवी से पुनर्विवाह कर लिया। इस विवाह से बिड़ला दंपत्ति के पांच संताने (दो पुत्र – कृष्ण कुमार और बसंत कुमार – और तीन पुत्रियाँ – चन्द्रकला देवी दागा, अनसुइया देवी तपुरिया और शांति देवी महेश्वरी) हुईं। दुर्भाग्यवस महेश्वरी देवी को भी क्षय रोग हो गया। घनश्यामदास ने अपनी पत्नी सहित सभी बच्चों को स्वास्थ्य लाभ के लिए एक निजी चिकित्सक की देख-रेख में हिमाचल प्रदेश स्थित सोलन भेज दिया पर महेश्वरी देवी बच नहीं पायीं और 6 जनवरी 1926 को परलोक सिधार गयीं। हालाँकि घनश्यामदास की उम्र इस समय महज 32 साल थी पर उन्होंने दोबारा विवाह नहीं किया और लालन-पालन के लिए अपने चार बच्चों को छोटे भाई ब्रिज मोहन बिड़ला के पास भेज दिया और दो पुत्रियों को अपने बड़े भाई रामेश्वर दास बिड़ला के पास भेजा।
व्यापार और उद्योग का विस्तार
घनश्यामदास को पारिवारिक व्यापार और उद्योग विरासत में मिला जिसका विस्तार उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में किया। वे परिवार के परंपरागत ‘साहूकारी’ व्यवसाय को निर्माण के क्षेत्र में मोड़ना चाहते थे इसलिए वे कोलकाता चले गए। वहां जाकर उन्होंने एक जूट कंपनी की स्थापना की क्योंकि बंगाल जूट का सबसे बड़ा उत्पादक था। वहां पहले से ही स्थापित यूरोपियन और ब्रिटिश व्यापारियों को घनश्याम दास से घबराहट हुई और उन्होंने अनैतिक तरीके से उनका व्यापार बंद कराने की कोशिश की पर घनश्याम दास भी धुन के पक्के थे और दांते रहे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब समूचे ब्रिटिश साम्राज्य में आपूर्ति की कमी होने लगी तब बिड़ला का व्यापार खूब फला-फूला।
 
सन 1919 में उन्होंने 50 लाख की पूँजी से ‘बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड’ की स्थापना की और उसी साल ग्वालियर में एक मिल की भी स्थापना की गयी।
सन 1926 में उन्हें ब्रिटिश इंडिया के केन्द्रीय विधान सभा के लिए चुना गया। सन 1932 में उन्होंने महात्मा गाँधी के साथ मिलकर दिल्ली में हरिजन सेवक संघ की स्थापना की।
 
1940 के दशक में उन्होंने ‘हिंदुस्तान मोटर्स’ की स्थापना कर कार उद्योग में कदम रखा। देश की आजादी के बाद घनश्याम दास बिड़ला ने कई पूर्ववत यूरोपियन कंपनियों को खरीदकर चाय और टेक्सटाइल उद्योग में निवेश किया। उन्होंने कंपनी का विस्तार सीमेंट, रसायन, रेयान, स्टील पाइप जैसे क्षेत्रों में भी किया। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान घनश्याम दास को एक ऐसा व्यावसायिक बैंक स्थापित करने का विचार आया जो पूर्णतः भारतीय पूँजी और प्रबंधन से बना हो। इस प्रकार यूनाइटेड कमर्शियल बैंक की स्थापना सन 1943 में कोलकाता में की गयी। यह भारत के सबसे पुराने व्यावसायिक बैंकों में से एक है और इसका नाम अब यूको बैंक हो गया है।

सन 1943 में घनश्याम दास बिड़ला ने पिलानी में ‘बिड़ला इंजीनियरिंग कॉलेज’ (सन 1964 में इसका नाम ‘बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस हो गया) और भिवानी में ‘टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्सटाइल एंड साइंसेज’ की स्थापना की। ये दोनों संस्थान भारत के सर्वोच्च इंजीनियरिंग संस्थानों की श्रेणी में आते हैं। पिलानी में ‘सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट’ की एक शाखा, एक आवासीय विद्यालय (जिसका नाम बिड़ला परिवार के ऊपर रखा गया है) और कई पॉलिटेक्निक कॉलेज हैं। जी. डी बिड़ला मेमोरियल स्कूल रानीखेत (जो देश के सर्वश्रेष्ठ आवासीय विद्यालयों में एक है) भी उनकी याद में स्थापित किया गया था।

महात्मा गाँधी और घनश्याम दास बिड़ला
घनश्याम दास बिड़ला राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के करीबी मित्र, सलाहकार एवं सहयोगी थे और स्वाधीनता आन्दोलन में बढ़-चड़कर भाग लिया था। पहली बार वे महात्मा गाँधी से सन 1916 में मिले थे। जब बापू की हत्या हुई उस दौरान उनका प्रवास बिड़ला के दिल्ली निवास पर ही था और पिछले 4 महीने से वे वहीँ रह रहे थे।
कई मौकों पर उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए धन इकठ्ठा करने में मदद भी की और साथ ही दूसरे पूंजीपतियों से भी राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन करने की अपील भी करते थे।

बिड़ला अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए पिलानी छोड़कर कलकत्ता चले गए क्योंकि वह खुद को साबित करना चाहते थे। उन्होंने सफलतापूर्वक कपास की एक डीलरशिप स्थापित की और जैसे-जैसे उनका व्यवसाय बढ़ता गया, वे फिर से पिलानी वापस आ गए और परिवार के लिए एक हवेली का निर्माण करवाया।
बाद में, बिड़ला ने पारिवारिक व्यवसाय संभाला और इसे विस्तारित करने का निर्णय लिया - उन्होंने धन उधार व्यवसाय को विनिर्माण में बदल दिया। उन्होंने इस तथ्य की परवाह किए बिना जूट उद्यम शुरू किया कि ब्रिटिश नीतियों और शासन ने उस समय भारतीय व्यापारियों की तुलना में यूरोपीय व्यापारियों को अधिक समर्थन दिया था।
 
उन्होंने कई बार अपने व्यवसाय को ब्रिटिश और स्कॉटिश व्यापारियों द्वारा बंद होने से बचाया। उन्होंने उसे परेशान करने और उसकी जूट फर्म को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करके अपने एकाधिकारवादी तरीके स्थापित करने की कोशिश की। यह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान था जब पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में आपूर्ति की समस्या थी, बिड़ला का व्यवसाय बड़ी सफलता बन गया।
 
यह इतनी सफलता थी कि बिड़ला ने अपने व्यवसाय में और विविधता लाने का फैसला किया और 5 मिलियन भारतीय रुपये के निवेश के साथ उन्होंने 1919 में औपचारिक रूप से बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड की स्थापना की। उन्होंने उसी वर्ष मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक कारखाना स्थापित किया।
एक सफल व्यवसायी होने के साथ-साथ वह राजनीति और समाज सेवा में भी सक्रिय थे। 1926 में वे केन्द्रीय विधान सभा के लिए चुने गये। वह महात्मा गांधी द्वारा स्थापित संगठन हरिजन सेवक संघ के संस्थापक अध्यक्ष थे।
 
इतनी सफलता के साथ, बिड़ला व्यवसाय में अपने निर्णयों को लेकर थोड़े साहसी हो गए और 1940 में हिंदुस्तान मोटर्स की स्थापना का जोखिम उठाने का फैसला किया। स्वतंत्रता के बाद बिड़ला चाय व्यवसाय में आ गए और अपना कपड़ा उद्योग शुरू किया।
1943 में उन्होंने भारतीय पूंजी एवं प्रबंधन से एक वाणिज्यिक बैंक की स्थापना की, जिसका नाम यूनाइटेड कमर्शियल बैंक रखा गया। अब, इसे यूको बैंक के नाम से जाना जाता है और यह भारत के सबसे पुराने और प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों में से एक है।
उन्होंने बिड़ला इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की, जिसे अब अन्य शैक्षणिक संस्थानों के बीच पिलानी में बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस और भिवानी में टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्सटाइल एंड साइंसेज के रूप में जाना जाता है।
1. 1948 में अपनी हत्या के समय महात्मा गांधी अपने घर में ही रह रहे थे। उनकी गांधी जी से पहली मुलाकात 1916 में हुई थी।
2. सेठ भूधरमल के पोते सेठ शोभाराम, जो 19 वीं सदी की शुरुआत में रहते थे, बिड़ला परिवार के पहले व्यक्ति थे जो व्यापार और व्यवसाय में आए। वह एक स्थानीय व्यापारी था. यह उनके बेटे, सेठ शिव नारायण थे, जिन्होंने 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में अपने गृहनगर पिलानी, जो अब राजस्थान का एक हिस्सा है, के बाहर व्यापार शुरू किया। तभी से बिड़ला औद्योगिक घराना फला-फूला।
3. उनके दादा, शिव नारायण बिड़ला, प्रतिष्ठित बिड़ला परिवार के पहले सदस्य थे, जिनका धन उधार देने का व्यवसाय था, जिन्होंने बिड़ला हवेली का निर्माण किया था। वह कपास के व्यवसाय में लग गए, जो 1950 के दशक के उत्तरार्ध में फला-फूला।
4. उनके पिता बलदेवदास बिड़ला परिवार के दत्तक सदस्य थे, जिन्हें पारिवारिक संपत्ति और व्यवसाय विरासत में मिला और बाद में उन्होंने व्यावसायिक योजनाओं का विस्तार किया।
5. रामेश्वर दास बिड़ला, कृष्ण कुमार बिड़ला, गंगा प्रसाद बिड़ला, चंद्रकांत बिड़ला, यशोवर्धन बिड़ला, बसंत कुमार बिड़ला और कुमार मंगलम बिड़ला विभिन्न पीढ़ियों से संबंधित बिड़ला परिवार की कुछ अन्य प्रमुख हस्तियां हैं। इनमें से ज्यादातर बिजनेस और जाने-माने उद्योगपतियों से जुड़े थे।
6. बसंत कुमार बिड़ला उनके बेटे और लेखक बृजलाल बियानी की बेटी और शिक्षाविद् थीं, सरला बिड़ला उनकी बहू थीं।
7. उनके बेटे कृष्ण कुमार बिड़ला अपनी दूसरी पत्नी के साथ
8. आदित्य विक्रम बिड़ला उनके पोते थे और पद्म भूषण प्राप्तकर्ता राजश्री बिड़ला उनकी पोती थीं।
9. कुमार मंगलम बिड़ला, उनके परपोते वर्तमान में बिड़ला व्यवसाय साम्राज्य के प्रमुख हैं।
10. उनके परिवार के सदस्यों की वर्तमान पीढ़ी ( छठी ) में अनन्या बिड़ला - एक पॉप गायिका और आर्यमान बिड़ला - एक क्रिकेटर शामिल हैं, और दोनों पारिवारिक व्यवसाय से दूर रहते हैं।
11. अपनी पहली पत्नी दुर्गा देवी बिड़ला की मृत्यु के बाद उन्होंने महादेवी बिड़ला से शादी की। पहली शादी से उनका एक बेटा श्रीनिवास बिड़ला और दूसरी शादी से दो बेटे और तीन बेटियां हैं। हालाँकि बसंत और कृष्ण कुमार बिड़ला, दोनों ने दूसरी शादी से व्यवसायिक विरासत को आगे बढ़ाया।
12. उनकी दोनों पत्नियाँ कम उम्र में ही तपेदिक के कारण मर गईं। 
13. उनकी पोती शोभना भरतिया (कृष्ण कुमार बिड़ला की बेटी) शायद बिड़ला परिवार की सबसे प्रमुख महिला सदस्य हैं (राजश्री बिड़ला और सरला बिड़ला बहू हैं)। वह अपने पिता से विरासत में मिली हिंदुस्तान टाइम्स समूह की अध्यक्ष और संपादकीय निदेशक हैं।
14. उन्हें व्यवसाय और उद्यमिता को सक्रियता और स्वतंत्रता आंदोलन के साथ सफलतापूर्वक मिश्रित करने और बेटों को फिजूलखर्ची से बचते हुए सरल जीवन जीने की शिक्षा देने के लिए भी जाना जाता है।  
15. उनके परपोते शमित भरतिया (शोभना भरतिया के बेटे) की शादी धीरूभाई अंबानी की पोती से हुई है। इस प्रकार यह भारत के दो महान प्रतिष्ठित व्यापारिक परिवारों को जोड़ता है।
16. पारिवारिक फर्म को शुरू में बलदेवदास जुगलकिशोर के नाम से जाना जाता था, जिसका नाम बदलकर वर्ष 1918 में बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड कर दिया गया। 
17. उन्होंने लंदन में आयोजित प्रथम और द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
 
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