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"लक्ष्य निर्धारित करना अदृश्य को दृश्य में बदलने का पहला कदम है" -टोनी रॉबिंस

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चैत्र नवरात्र का चौथा दिन - मां कुष्मांडा को समर्पित

Date : 12-Apr-2024

 

 देवी कूष्मांडा का निवास स्थान सूर्यमंडल के बीच में माना जाता है। देवी का तेज ही इस संसार को तेज बल और प्रकाश प्रदान करता है। देवी कूष्मांडा मूल प्रकृति और आदिशक्ति हैं। जब सृष्टि में चारों तरफ अंधकार फैला था। उस समय देवी ने जगत की उत्पत्ति की इच्छा से मंद मुस्कान किया इस सृष्टि में अंधकार का नाश और सृष्टि में प्रकाश फैल गया। कहते हैं कि देवी के इस तेजोमय रूप की जो भक्त श्रद्धा भाव से भक्ति करते हैं और नवरात्रि के चौथे दिन इनका ध्यान करते हुए पूजन करते हैं उनके लिए इस संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है। माता अपने भक्त की हर चाहत को पूरी करती हैं और भोग एवं मोक्ष प्रदान करती हैं। मान्‍यता है कि जो मनुष्‍य सच्‍चे मन से और संपूर्ण विधिविधान से मां की पूजा करते हैं, उन्‍हें आसानी से अपने जीवन में परम पद की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि मां की पूजा से भक्‍तों के समस्‍त रोग नष्‍ट हो जाते हैं।
इस दिन उपासक का मन अनाहत चक्र में उपस्थित रहता है जो हृदय के मध्य स्थित होता है। इस देवी की उपासना के लिए भक्तों को हल्के नीले रंग के वस्त्रों को धारण करना चाहिए। जो इस चक्र को जागृत करने में सहायक होता है। मां कूष्मांडा के स्वरूप के बारे में कहा जाता है कि यह अष्ट भुजाओं वाली देवी हैं। इनकी भुजाओं में बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल शोभा पाते हैं। वहीं दूसरी भुजा में वह सिद्धियों और निधियों से युक्‍त माला धारण करती हैं। मां कूष्‍मांडा की सवारी सिंह है।
 
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