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22 अप्रैल 2001 : परमार राज परिवार के कुँवर मेहमूद अली का निधन

Date : 22-Apr-2024

मध्यप्रदेश में राज्यपालरहे : हिन्दू पूर्वजों पर गर्व था

अपने समय चर्चित राजनेता और मध्यप्रदेश में राज्यपाल रहे कुँअर मेहमूदअली खान मध्यप्रदेश में ही धार नगरी के परमार राज परिवार में जन्में थे । वे अपना जीवन इस्लाम के नियमों के अनुसार तो जीते थे । पर उन्हें अपने पूर्वजों का हिन्दु होने पर गर्व था और कहते थे कि भारत पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान के अधिकांश मुसलमानों के पूर्वज हिन्दु थे ।
 
 कुँअर मेहमूद अली खान जब राज्यपाल के रूप में मध्यप्रदेश आए तो उन्होंने अतिरिक्त प्रसन्नता व्यक्त की थी । राज्यपाल पद की प्रतिष्ठा तो अपनी जगह थी । पर यह उनके पूर्वजों की धरती थी । मध्यप्रदेश में मालवा क्षेत्र की धार नगरी का परमार राज परिवार उनके पूर्वज थे । इसीलिए प्रतीक के रूप में वे अपने नाम के आगे "कुँअर" लगाते थे । मध्यप्रदेश में  राज्यपाल के रूप में पदभार ग्रहण करके कुँअर मेहमूद अली खान ने धार नगरी की यात्राएँ भी की और अपने वंश वृक्ष के उत्तराधिकारियों का पता भी लगाया । उन्होंने यह बात सार्वजनिक रूप से भी स्वीकार की कि उनके पूर्वज परमार थे । और कहते थे कि भारत पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान आदि देशों में रहने वाले अधिकांश मुसलमानोंके पूर्वज हिन्दू ही रहें हैं । उन्होंने अपनी वंश परंपरा एक शोध कराया तथा वंशावली तैयार कराई । इस वंशावली में उनके हिन्दु पूर्वजों के नामों की सूची तो है ही साथ उस सन् संवत् का विवरण भी दिया जिस काल-खंड में परिवार की एक शाखा ने मतान्तरण किया था । इस वंशावली पुस्तिका का संपादन वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहे डा मोहन गुप्त ने किया था । डा मोहन गुप्त प्रशासनिक अधिकारी के साथ एक अच्छे विचारक भी रहे और उड़ीसा स्थित गोवर्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य भगवान स्वामी निश्चलानंद जी भी जुड़े थे । कुँअर मेहमूद अली खान की वंशवृक्ष सूची वाली इस पुस्तिका के अनुसार धार नगरी के परमार शासक उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे । और कल्याण सिंह धार नगरी आये थे । जहाँ अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की । इसी वंश शाखा में सुप्रसिद्ध भोजराज का जन्म हुआ जो अपनी सांस्कृतिक, साहित्यिक, शैक्षणिक और निर्माण के लिये इतिहास में अमर हैं। इसी शाखा में जन्में राव भोजीसिंह ने 1411 मतान्तरण करके इस्लाम ग्रहण किया था । इस मतान्तरण के बाद उनके पूर्वज सल्तनत की सेना में रहे और खान की उपाधि मिली । विक्रम संवत 1815 में उनके एक पूर्वज मेरठ के ग्राम जोगीपुरा आये और यहीं के निवासी हो गये और इसी जोगीपुरा गांव में 16 जून 1920 को कुँअर मेहमूद अली का जन्म हुआ । उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव जोगीपुरा में ही हुई । छठी कक्षा के बाद मेरठ पढ़ने भेजे गये । मेरठ से 1940 में इंटरमीडिएट एवं 1943 में बी.ए. परीक्षा उत्तीर्ण की । स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करके वकालत पढ़ने आगरा आये । 1946 में'आगरा विश्वविद्यालय' से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की । मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त रहना परिवार की विशेषता थी । इसलिए पढ़ने और कुश्ती लड़ने का शौक बचपन से था । विद्यालय आकर जिमनास्टिक खेल का भी शौक । और अपने महाविद्यालय की जिमनास्टिक टीम के कप्तान रहे । छात्र जीवन में सामाजिक कार्यों में जुड़े और 1943 से कांग्रेस के विधिवत सदस्य बने । स्वतंत्रता के बाद 1953 में पहला चुनाव मेरठ नगरपालिका के लिये लड़ा और विजयी हुये । 1957 में कांग्रेस टिकट पर मेरठ जिला अंतर्गत दासना विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और विधायक बने । समय के साथ वे चौधरी चरण सिंह के विश्वस्त बने और उन्हीं के साथ 1967 में कांग्रेस छोड़ दी । 1968 में उत्तर प्रदेश राज्य लोकसेवा में रहे । 1973 में स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण द्वारा आरंभ किये गये  मँहगाई विरोधी आँदोलन में सक्रिय हुये और बंदी बनाये गये । आपातकाल लागू हुआ तो पुनः बंदी बनाये गये और लगभग पूरे आपातकाल में जेल में रहे । 1977 में  लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते । पर 1980 में चुनाव हार गये । इसके बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक सक्रियता कम करके सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों जुड़ गये । चन्द्रशेखर के नेतृत्व वाली 'जनता पार्टी' के सदस्य बने रहे। महमूद अली खाँ की 6 फरवरी 1990 में मध्य प्रदेश में राज्यपाल के रूप में पदस्थापना हुई । वे 23 जून 1993 तक मध्यप्रदेश के राज्यपाल रहे । उन्हें सभी धर्मों के धर्म ग्रंथ पढ़ने का शौक था । वे किसी धर्म के आधारभूत सिद्धांतों पर अधिकार पूर्वक चर्चा कर सकते थे । वे भारत में सामाजिक सद्भाव और साम्प्रदायिक एकता के पक्षधर थे और कहते थे कि पूजा उपासना पद्धति बदल जाने से न पूर्वज बदलते हैं और न राष्ट्रीयता । भारत में इन दिनों हिन्दुओं और मुसलमानों की एक डीएनए होने की बात उठती है, यह बात वे सदैव दोहराते थे । पर उनके अपने शब्द थे । वे अतीत में घटी घटनाओं को समय का प्रवाह मानते थे इसमें उनके पूर्वजों द्वारा मतान्तरण भी और भारत पाकिस्तान विभाजन भी था । उनकी दृष्टि में संपूर्ण भारतीय समाज एक परिवार है । इस सत्य को स्वीकार भारत देश को मजबूत बनाना चाहिए चूँकि सबके पूर्वज एक हैं।
 
अपने पूर्वज हिन्दू होने की बात स्वीकार करने वाले कुँअर मेहमूद अली खान अकेले नहीं थे । भारतीय उपमहाद्वीप के हजारों लाखों लोगों ने इस सत्य को स्वीकार किया है । कुँअर मेहमूद अली से पहले भी अनेक प्रमुख राजनेताओं ने अपने पूर्वजों के हिन्दु होने का सत्य स्वीकारा और कुछ ने घर वापसी भी की । ऐसी घर वापसी हरेक दौर में हुई है । आर्यसमाज ने तो अभियान भी चलाया । किन्तु अनेक प्रमुख व्यक्तित्व ऐसे हुये जिन्होंने भले घर वापसी नहीं की । पर साहस के साथ अपने पूर्वजों के सत्य को स्वीकारा और विवरण दिया । इनमें भारत विभाजन का अभियान चलाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना, सुप्रसिद्ध शायर अल्लामा इकबाल, कश्मीर के चर्चित नेता शेख अब्दुल्ला, वर्तमान राजनेता गुलामनबी आजाद और सुप्रसिद्ध टीवी एंकर रूबिका लियाकत जैसी प्रमुख हस्तियाँ रहीं हैं। इनमें मोहम्मद अली जिन्ना के पूर्वज का नाम पूँजा भाई ठक्कर था । सुप्रसिद्ध शायर और पाकिस्तान की योजना का प्रारूप प्रस्तुत करने वाले इकबाल मशहूर के पूर्वज का नाम कन्हैयालाल सप्रू था । कश्मीर के प्रमुख अलगाव वादी नेता रहे शेख अब्दुल्ला के पूर्वज रघुराम कौल थे यह बात स्वयं उन्होंने अपनी जीवनी पर पुस्तक "आतिशे कश्मीर में कही है । वर्तमान चर्चित नेता ओबेसुद्दीन उबैसी के पूर्वज तुलसीराम थे । कांग्रेस नेता रहे गुलाम नबी आजाद ने पिछले दिनों मीडिया के समक्ष यह स्वीकार किया था कि उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे और छै सौ वर्ष पहले मतान्तरित हुये थे । भारत में चले मतान्तरण अभियान के बिबरण समय समय पर आने वाले वक्तव्यों अथवा उनके परिवार की पृष्ठभूमि पर आधारित पुस्तकों में आते रहें है । ऐसी स्वीकारोक्तियों के अतिरिक्त भारत में ऐसे उपनाम प्रचलित हैं जो हिन्दु और मुसलमान दोनों में समान हैं। जैसे चौधरी, पटेल, देशमुख, शाह, भट्ट या भट्टी ही नहीं राणा और राठौर उपनाम मुस्लिम समाज में भी होते हैं और हिन्दू समाज में भी । महाराष्ट्र में एक चर्चित नाम युसुफ पंडित भी रहा है । 
 
। ऐसे परिवार गुजरात, राजस्थान,पश्चिमी उत्तर प्रदेश और गौंडवांना में मिलते हैं। भारत की कुछ रियासतों नव मतान्तरित लोगों को इस्लाम के रीति रिवाज सिखाने के अतिरिक्त प्रबंध करने के विवरण मिलते हैं। जैसे भोपाल रियासत की तत्कालीन नबाब बेगम सिकन्दर जहाँ ने इस कार्य के लिये सिद्दीक हसन खाँ को भोपाल बुलाया था । बाद में जिन्होंने उनकी बेटी शाहजहाँ बेगम से निकाह किया और नबाब की उपाधि मिली । 
समय के साथ अनेक लोग भले भूल गये पर कुँअर मेहमूद अली खान जैसे परिवार इस तथ्य को सदैव स्मरण रखते हैं और समाज में सद्भाव का संदेश देते हैं । वे कहते थे कि पूजा उपासना पद्धति बदल जाने से न पूर्वज बदलते हैं और न राष्ट्रीयता । धर्म किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत मान्यता होती है और राष्ट्र इससे ऊपर होता है । भारत राष्ट्र और भारत की परंपराओं पर हमें गर्व करना चाहिए और उनका अनुसरण भी करना चाहिए। 
उनके परिवार की एक शाखा नोयडा में भी रहती है । कुँअर मेहमूद अली ने अपने जीवन का अंतिम समय मेरठ में और कुछ समय दिल्ली और नोयडा में बीता । 22 अप्रैल 2001 को उन्होंने अपने जीवन की अंतिम श्वाँस ली।  समय के साथ उन्होंने भले राजनैतिक धाराएँ बदलीं। पर उनकी प्राथमिकता में भारत राष्ट्र और परंपराएँ रहीं हैं । वे सभी धर्मों का आद  करते थे और अपने समकालीन सभी राजनेताओ के सम्मानीय भी रहे ।
 
लेखक : रमेश शर्मा 

 

 
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