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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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प्रेरक प्रसंग :- नकलचियों की दशा

Date : 04-Jun-2024

स्वामी दयानन्द के पाखंड - खंडन से चिढ़कर पूना  के पोंगापंथी पाखंडियों ने उन्हें अपमानित करने तथा चिढ़ाने के लिए एक जुलुस निकाला  | उन्होंने एक नकली दयानन्द बनाकर चूना और कालिख से उसका मुँह  रंगकर गधे पर बिठाकर जुलूस के आगे  रखा था और लोग पीछे- पीछे उस पर दयानन्द के नाम से तरह-तरह की व्यंग्य बौछार करते तथा तालियाँ  बजाते चल रहे थे |

 दयानन्द के शिष्यों से न रहा गया | वे स्वामीजी के पास गए और कहने लगे कि यदि अनुमति मिले, तो इन पाखंडियों को उचित सजा वे दे सकते हैं |

इस पर स्वामीजी बड़े ही सहज भाव से समझाते हुए बोले, "इसमें सजा देने की क्या बात ? दूसरे की नकल करनेवालों की जो दशा होती है, वह बेचारे नकली दयानन्द की हो रही है | यह क्रोध करने का नहीं, शिक्षा लेने का विषय है | "

 
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