स्वामी रामदास 'रामायण' लिखते जाते और अपने शिष्यों को सुनाया करते | हनुमानजी को जब यह बात मालूम हुई, तो वे भी गुप्त रूप से राम -कथा का श्रवण करने के लिए शिष्यों के मध्य आकर बैठ जाते | स्वामी रामदास ने अशोकवाटिका के प्रसंग में जब यह वाक्य लिखा- "हनुमान अशोक- वन में गए, तो वहां उन्हें सफ़ेद फूल दिखाई दिए, " आखिर हनुमानजी से न रहा गया | वे अपने असली रूप में प्रकट हो गए और रामदास से बोले, "मैंने सफ़ेद नहीं, लाल फूल देखे थे | कृपया उसे सुधार लें |"
किन्तु रामदास न माने | वे बोले कि उन्होंने ठीक ही लिखा है | हनुमानजी बोले, मैं स्वयं वहां गया हुआ था, अत: आपको मेरी बात माननी ही चाहिए | " तब रामदास ने सही बात मालूम करने के लिए प्रभु रामचन्द्रजी के पास चलने को कहा | दोनों ने प्रभु रामचंद्र के पास जाकर अपना - अपना पक्ष रखा | रामचंद्र जी ने बताया कि रामदास ने सही ही लिखा है | किन्तु हनुमानजी को बात जची नहीं | रामचन्द्रजी ने खुलासा किया कि फूल वास्तव में सफ़ेद थे, किन्तु हनुमानजी के उस समय क्रोधित होने के कारण उनकी आँखें लाल थी, फलस्वरूप वे सफ़ेद फूल उन्हें रक्त वर्ण के दिखाई दिए |