अंग्रेजों से भारत की मुक्ति के सैन्य अभियान आरंभ
इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष का पद नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने संभाला । वित्त विभाग एस.सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया। इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता देने की घोषणा कर दी । जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। नेताजी ने अंडमान का नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा । 30 दिसम्बर 1943 को इन द्वीपों पर स्वतन्त्र भारत का ध्वज फहराया और आगे बढ़े । 4 फ़रवरी 1944 को आजाद हिन्द फौज धावा बोला और कोहिमा, पलेल आदि क्षेत्र अंग्रेजों से मुक्त करा लिया। 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम जारी एक प्रसारण में अपनी स्थिति स्पष्ठ की और आज़ाद हिन्द फौज द्वारा लड़ी जा रही इस निर्णायक लड़ाई की जीत के लिये सहयोग मांगा। अपने संदेश में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने कहा "मैं जानता हूँ कि ब्रिटिश सरकार भारत की स्वाधीनता की माँग कभी स्वीकार नहीं करेगी। मैं इस बात का कायल हो चुका हूँ कि यदि हमें आज़ादी चाहिये तो हमें खून के दरिया से गुजरने को तैयार रहना चाहिये। अगर मुझे उम्मीद होती कि आज़ादी पाने का एक और सुनहरा मौका अपनी जिन्दगी में हमें मिलेगा तो मैं शायद घर छोड़ता ही नहीं। मैंने जो कुछ किया है अपने देश के लिये किया है। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने और भारत की स्वाधीनता के लक्ष्य के निकट पहुँचने के लिये किया है। भारत की स्वाधीनता की आखिरी लड़ाई शुरू हो चुकी है। आज़ाद हिन्द फौज के सैनिक भारत की भूमि पर सफलतापूर्वक लड़ रहे हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की स्वाधीनता के इस पावन युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभ कामनायें चाहते हैं।
आजाद हिन्द फौज के सेनानियों की संख्या के बारे में लेखकों में मतभेद हैं फिर भी आजाद हिन्द फौज में सैनिकों की संख्या लगभग चालीस हजार मानी जाती है । यह संख्या ब्रिटिश गुप्तचर रहे कर्नल जीडी एण्डरसन ने लिखी है। 18 अगस्त 1945 को हुई विमान दुर्घटना के बाद नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज पर विराम लगा । द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद रंगून और सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज के अधिकांश सेनानियों को मौत के घाट उतार दिया गया था । उनके नाम तक नहीं हैं । इतिहास लेखक केवल उन सेनानियों के नाम खोज सके जो भारत में बंदी बनाये गये थे ।
लेखक:- रमेश शर्मा