प्रेरक प्रसंग:- भगवान् की थाती
Date : 24-Sep-2024
एक बार नारदजी जब वैकुण्ठ आये, तो उन्होंने देखा कि महाविष्णु चित्र बनाने में मग्न हैं और आसपास शिव, ब्रम्हा इत्यादि अगणित देवता विष्णु का कृपाकटाक्ष पाने के लिए लालायित खड़े हैं किन्तु विष्णु को उनकी ओर देखने का भी अवकाश नहीं | चित्रलीन विष्णु ने नारदजी को भी नहीं देखा | विष्णु का यह व्यवहार नारद को बड़ा अपमानजनक प्रतीत हुआ | वे आवेश में विष्णु के समीप गये और पास ही खड़ी लक्ष्मी जी से उन्होंने पूछा, “आज इतनी तन्मयता के साथ भगवान् किसका चित्र बना रहे हैं ?” लक्ष्मी ने अपने स्वाभाविक भृकुटि- चांचल्य के साथ कहा, “अपने सबसे बड़े भक्त का- आपसे भी बड़े भक्त का !” दोहरे अपमानित नारदजी ने पास जाकर देखा, तो आश्चर्य से स्तब्ध हो गये- अचल ध्यानावस्थित विष्णु एक मैले- कुचैले अर्धनग्न मनुष्य का चित्र बना रहे थे | नारदजी का चेहरा क्रोध से तमतमा गया वे उल्टे पाँव भूलोक की ओर चल पड़े | कई दिनों के भ्रमण के बाद उन्हें एक अत्यंत घिनौनी जगह पर पशु- चर्मों से घिरा एक चमार दिखाई दिया, जो गंदगी और पसीने से लथपथ चमड़ों के ढेर को साफ कर रहे थे| पहली दृष्टि में ही नारदजी ने पहचान लिया कि विष्णु इसी का चित्र बना रहे थे | दुर्गंध के करण नारदजी उसके पास न जा सके | अदृश्य होकर वे दूर से ही उसकी दिनचर्या का निरीक्षण करने लगे |
संध्या होने को आयी, किंतु वह चमार न तो मंदिर में गया और न आँख मूंदकर उसने क्षण भर के लिए हरिस्मरण किया | नारदजी के क्रोध कि सीमा न रही | एक अधमाधम चमार को श्रेष्ठ बताकर विष्णु ने उनका कितना घोर अपमान किया है | अंधेरा बढ़ने के साथ-साथ उनके मन की अस्थिरता भी गहरी होने लगी | आवेशान्ध हो विष्णु को श्राप देने के लिए उन्होंने अपनी तेजस्वी बाहु उपर उठायी थी कि लक्ष्मी ने प्रकट होकर उनका हाथ पकड़ लिया और कहा, “देव! भक्त की उपासना का उपसंहार तो देख लीजिए, फिर जो करना हो, कीजिए |”
उस चमार ने चमड़ों के ढेर को समेटा | सबको एक गठरी में बांधा | फिर एक मैले कपड़े से सिर से पैर तक शरीर को पोछा और गठरी के सामने झुककर विनय-विव्हल वाणी में कहने लगा, “प्रभो ! दया करना | कल भी मुझे ऐसे ही सुमति देना कि आज कि तरह ही पसीना बहाकर तेरी दी हुई इस चाकरी में सारा दिन गुजार दूँ |” और नारदजी को विश्वास हो गया कि वह चमार विष्णु को क्यों सर्वाधिक प्रिय है |