शब्दों का संसार : हवस का मौलवी, नए शब्द का नया संवाद
Date : 03-Oct-2024
यह शब्द “हवस का मौलवी” आज के जमाने को दर्शा रहा है! वैसे, जब कोई भी शब्द प्रचलन में आता है, तब तक वह एक लंबी यात्रा कर परिष्कृत और परिमार्जित होकर अपने ठेट पन में बहुत कुछ सुधार कर चुका होता है, फिर जो शेष होता है, उस रूप में वह शब्द अपने अर्थ को बहुत अच्छे से व्याख्यायित करता हुआ मिल जाता है। अभी पिछले दिनों इससे जुड़ा शब्द प्रचलन में था “हवस का पुजारी” यह विचार करने योग्य है कि यह वाक्य गढ़ा किसने होगा ? और क्यों निर्माण किया होगा? क्या वास्तव में ‘पुजारी’ हवस के भूखे या हवसी होते हैं ?
अब हवस के भी मायने कई हैं । इसके अर्थ में जाएं तो वह इच्छा जिसकी संतुष्टि बार-बार की जाती हो, पर फिर भी जो और अधिक संतुष्टि के लिए उत्कट रूप धारण किये रहती हो अथवा हवस का अर्थ वासना से है। अधिक से अधिक पाने की चाहत, उत्कंठा, लालसा, बढ़ा हुआ शौक़, लोभ, लालच कामना, तीव्र इच्छा, कामवासना से है। यह एक मानसिक विकार की तरह है। अक्सर इसे यौन इच्छाओं से जोड़कर देखा जाता है और जब सोच विकृत होकर इंसान के वश से बाहर हो जाये, तो उसे हवस कहते हैं। कुल मिलाकर हवस किसी की भी हो सकती है, यह एक ऐसी इच्छा है जिसकी कभी पूर्ति नहीं होती और जो पास है उससे कभी संतुष्टि नहीं। नकारात्मक अर्थों में एक स्त्री के प्रति पुरुष की बुरी दृष्टि भी हवस है जो एक स्त्री से नहीं, कई स्त्रियों के होने से भी नहीं भरती, तो यह अवगुण हवस के पुजारी में ही होना चाहिए ? किसी मुल्ला, मौलवी या चर्च पादरी में नहीं हो सकती है! अब आस सोच सकते हैं कि जो हिन्दू विरोधी हैं, उनकी इस संबंध में नैरेटिव गढ़ने की कितनी अधिक गहरी सोच है।
गजब हाल है साहब; ‘सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी’ हिंदू धर्म के धर्माचार्यों के प्रति आम जनमानस में संदेह का भी बीज बो दिया गया और किसी ने इस शब्द रचना का गहराई से आकलन तक नहीं किया । किसी को अंदाजा भी नहीं लगा कि आखिर हुआ क्या है, जबकि पुजारी की हकीकत यह है कि यदि वह होगा तो मंदिर का होगा, किसी देवता के प्रति पूर्ण समर्पण करने वाला होगा, किंतु वह ‘हवस का पुजारी’ तो बिल्कुल भी नहीं होगा, परंतु वर्षों से यह शब्द चल रहा है और हिन्दू हैं जोकि गजब किए दे रहे हैं; इस शब्द को चलाए जा रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक शब्द चला दिया गया, “गणपति बप्पा मोरिया, आधा लड्डू चोरिया” बचपन में सुनते-सुनते कब बढ़े हो गए और अब भी अपने जीवन की एक लम्बी यात्रा में, हिन्दू गणेश जी के आगमन और विसर्जन के समय यही नारा लगा रहे हैं कि “गणपति बप्पा आधा लड्डू चोरिया हैं” जैसे गणेश जी को लड्डुओं की कमी है, माता पार्वती एवं पिता शिव उन्हें लड्डू खाने से रोकते हैं, जैसे कि उन्हें इंसानों में होनेवाली शुगर की बीमारी हो गई हो, या यह कि वे इतने गरीब हैं जोकि लड़डू खरीद नहीं सकते ।
जिन श्री गणेश को हिंदू अपने प्रथम देवता के रूप में घर-घर पूज रहा है, फिर हिंदुओं में कब, कहां, कौन चोरी करने लग जाता है, पता ही नहीं चलता ! वह भक्त पूजा का घी और घर में अपने बच्चों एवं अन्य परिवार सदस्यों के उपयोग का घी बाजार से कब अलग-अलग लाने लग जाता है, पता ही नहीं चलता और कब यह एक छोटा सा शब्द हमारे मस्तिष्क में अनेक रूपों में अपने को विस्तारित कर लेता है, पता ही नहीं चलता । वास्तव में हिन्दू समाज ऐसे ना जाने कितने शब्दों के नैरेटिव में स्वयं को उलझाए हुए हैं, कभी पता ही नहीं चलता। जबकि इस शब्द की हकीकत यह है कि “गणपति बप्पा मोरया, मंगळमूर्ती मोरया, पुढ़च्यावर्षी लवकरया” अर्थात हे मंगलकारी पिता, अगली बार और जल्दी आना। वस्तुत: मराठी भाषा में जो यह जल्दी आने के लिए ‘पुढ़च्यावर्षी लवकरया’ शब्द का उपयोग हुआ है , उसे बिगाड़कर हिन्दू विरोध का नैरेटिव रचनेवालों ने ‘चोरिया’ कर दिया और इस तरह से हिन्दू अपने देवता को बरसों बरस से चोरिया, चुनानेवाले के रूप में संबोधित कर रहे हैं और अप्रत्यक्ष रूप में अपने आचरण में, अपने चरित्र में इस गलत नैरेटिव को सेट किए हुए हैं। यहां मोरया शब्द की भी अपनी एक अलग कहानी है, जिसका जिक्र आगे कभी किया जाएगा।
खैर, इसके चक्कर में हमें नहीं पड़ना, इसकी पड़ताल करना कानून विज्ञों एवं पुलिस का काम है। लेकिन यहां कहना यही है कि घटना, चाहे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई या किसी भी मत, मंथ, रिलीजन में ‘हवस’ शब्द के संदर्भ में घटे, वह कभी सही नहीं ठहराई जा सकती है। हां, इतना हो सकता है, जैसे हर कार्य का तुलनात्मक अध्ययन होता है तब इसका भी किया ही जा सकता है, सच्चर कमेटी का बहुत हल्ला हुआ । नियोगी कमीशन की रिपोर्ट हलांकि दबा दी गई, कभी सच बाहर ही नहीं आ सका कि मिशनरी का भारत को लेकर क्या दूरगामी प्लान चल रहा है । चर्च की कितनी बड़ी और वर्षों तक की योजना भारत को कन्वर्ट कर देने की है, और भी न जाने कितनी रिपोर्ट्स हैं जो आज इस शब्द के अवसर पर बहुत कुछ तुलना करने का अवसर देती हैं। ठीक वैसे ही हिंदू-मुस्लिम-ईसाई यहां तीनों की जनसंख्या का अनुपात निकाल लिया जाए और फिर उस तुलना में ‘हवस के मौलवी, पादरी, और पुजारी की गणना कर ली जाए, सच आपके सामने आ ही जाएगा ! किंतु बात अभी समाप्त नहीं हुई है, आगे भी इसका एक और पक्ष है जिस पर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए ।