शिक्षाप्रद कहानी:- स्वावलंबन का महत्त्व Date : 05-Oct-2024 बहुत पुराने जमाने की बात है | हातिमताई के किस्से बड़े प्रसिद्ध हैं | वे यूनानी थे | कहते हैं कि हातिमताई बड़े ही स्वाभिमानी थे और इसके साथ ही वे स्वावलम्बी भी कहे जाते थे | एक बार किसी ने हातिमताई से पूछा-“ क्या आपने किसी को अपने से भी अधिक स्वात्माभिमानी और स्वावलंबी देखा है ?” हातिमताई बोले-“ हाँ देखा है | एक दिन की बात है कि हमारे यहां एक बहुत बड़े भोज का आयोजन था | हमारे सामने की सड़क पर मैंने उस समय एक लकड़हारे को अपनी पीठ पर लकडियों का गट्ठर लिए उधर से निकलते हुए देखा | सायंकाल का समय था | लकड़हारा शायद अपने घर जा रहा था | मैं उसके पार चला गया और पूछा-“ भाई आज हातिमताई ने सबको बड़ी दावत दी हुई है, तुम उसमें क्यों नहीं गए ?” वह बोला-“देखो! जो आदमी अपनी कमाई से अपना पेट पलता है, वह हातिमताई की दावत में मुफ्त का माल खाने के लिए क्यों जाये ? दूसरों का मुफ्त का अन्न खाने की प्रवृत्ति मनुष्य को आलसी बना देती है | मैं आलसी बनना नहीं चाहता | इस प्रकार की दावतों पर जाने पर तो मैं धीरे-धीरे परावलंबी बनता चला जाऊंगा | तब स्वयं श्रम न करके दूसरों के यहां दावत खाने की मेरी नियत बन जाएगी |” हातिमताई ने कहा-“उस व्यक्ति को मैंने आत्मगौरव और हृदय की शुद्धता में अपने से बढ़कर पाया | मैं उसके सम्मुख नत मस्तक हो गया और उससे अधिक आग्रह करने का साहस नहीं कर सका |”