जयंती विशेष:- लड़कियों को शिक्षित व सशक्त बनाने पर जोर देने वाली रानी दुर्गावती
Date : 05-Oct-2024
मृत्यु तो सभी को आती है परंतु इतिहास उन्हें ही याद रखता है जो स्वाभिमान के साथ जिए और प्राण त्यागे। यह वो वाक्य है जिसे गोंड रानी वीरांगना रानी दुर्गावती ने अपने सेनापति आधार सिंह से आत्मोसर्ग के समय कहा था।
वीरांगना का जन्म पांच अक्टूबर, 1524 को कलिंजर के राजा कीरत सिंह के यहां दुर्गाष्टमी के दिन हुआ था। राजकुमारी दुर्गावती की वीरता, रूप और बुद्धि कौशल से प्रभावित गोंडवाना साम्राज्य के राजा ने अपने पुत्र के साथ विवाह प्रस्ताव रखा। 1542 में दुर्गावती व दलपतिशाह का विवाह हुआ। 1548 में दलपति शाह की मृत्यु भी हो गई। इसके बाद रानी ने पांच वर्षीय पुत्र वीर नारायण की ओर से गोंडवाना साम्राज्य की सत्ता संभाली और मरते दम तक उसकी रक्षा की। रानी के शासनकाल में गोंडवाना साम्राज्य राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व साहित्य के क्षेत्र में पल्लवित होकर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा।
रानी दुर्गावती ने शुरुआत से ही लड़कियों को शिक्षित व सशक्त करने पर जोर दिया। उन्होंने अपनी सेना में एक महिला दस्ता बनाया था। जिसमें लड़कियों को युद्ध कौशल सिखाकर पूरी तरह तैयार करके शामिल किया गया था। रानी के साथ इसी महिला दस्ते की वीरांगनाएं रहा करती थीं। उनका मानना था कि यदि महिला सशक्त होगी तो पूरा परिवार व समाज सशक्त होगा। वीरांगना की योजनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस काल में थीं। गोंडवाना साम्राज्य तत्कालीन प्रथम साम्राज्य था जहां महिला सेना भी थी। रानी की बहन कमलावती व पुरागढ़ की राजकुमारी इस दस्ते की कमान संभालती थीं। वीरांगना ने अपने जीवनकाल में सोलह युद्ध लड़ी । अस्सी हजार गांवों, 57 परगनों से युक्त राज्य को संभालने का प्रबंधन, राजनीति, कूटनीति, सहृदयता, प्रजा का हित सोचने वाली, वीरता जैसे गुणों के कारण ही रानी का साम्राज्य गोंडवाना का स्वर्ण युग माना जाता है। मध्यप्रदेश के जबलपुर में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी है |
गढ़-कटंगा की बहादुर रानी दुर्गावती ने 16 वीं शताब्दी के मध्य में मुगल साम्राज्य के विस्तार का विरोध किया। रानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ खान और पड़ोसी मालवा के सुल्तान बाज बहादुर के विरुद्ध लड़ाई में मज़बूत नेतृत्व का प्रदर्शन किया। प्रारंभ में अपने राज्य पर आसफ खान के हमले के विरुद्ध लड़ाई में जीत हासिल की।
मुगलों के साथ मुठभेड़ में रानी दुर्गावती के शरीर पर कई तीर लगे थे और वह गंभीर रूप से घायल हो गई थी। उन्हें ये संदेह हो गया था कि वह अब जिंदा नहीं बच पाएगी। इसी दौरान उन्होंने अपने एक सैनिक को उन्हें मार देने का आदेश दिया, लेकिन सैनिक ने उनकी यह बात स्वीकार नहीं की। रानी ने दुश्मनों के हाथों मरने से पहले खुद को ही मारना बेहतर समझा। उन्होंने बहादुरी से अपनी तलवार खुद ही सीने में मार ली और शहीद हो गई। जबलपुर में बरेला के निकट जबलपुर-मंडला मार्ग पर रानी दुर्गावती का स्मारक नरिया नाला में ठीक उसी स्थान पर बनाया गया है, जहाँ उनकी शहादत हुई थी। यहाँ हर साल 24 जून को एक समारोह आयोजित किया जाता है, जिसे रानी के सम्मान में 'बलिदान दिवस' कहा जाता है। रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर भारत सरकार द्वारा 24 जून 1988 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया था |