प्रेरक प्रसंग:- आराधना का तरीका Date : 12-Nov-2024 श्रीरामकृष्ण परमहंस से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया, “महाराज, क्या संसार के कार्यों में व्यस्त रहते हुए ईश्वर की आराधना संभव है ?” “क्यों नहीं !” परमहंसदेव ने हँसते हुए उत्तर दिया, “ग्रामीण स्त्री को तो तुमने ढेंकी से चूड़ा बनाते हुए देखा ही होगा | वह अपने एक हाथ से चूड़ा पलटती जाती है तथा दूसरे हाथ से बच्चे को गोदी में लेकर दूध पिलाती रहती है | यदि कोई पड़ोसिन या अन्य व्यक्ति उस समय उसके पास आ जाता है, तब वह उससे बातें भी करती जाती है | ग्राहक आने पर वह उससे हिसाब भी करती है किन्तु उसका कार्य पूर्ववत् चलता रहता है | इन सब कामों के करते रहने पर भी उसका मन हर समय ओखली और मुसल में ही लगा रहता है | वह जानती है कि यदि थोड़ी सी भी असवधानी बरती गयी, तो मूसल हाथ पर गिरेगा और हाथ टूट जायेगा|” “इसी तरह मनुष्य को अपने काम करने चाहिए, पर अपना मन हर समय भगवान् में लगाकर रखना चाहिए | यही आराधना का सच्चा तरीका है |”