"हिंदुत्व की रक्षा के लिए पूर्णाहुति : हिंद दी चादर गुरु तेग बहादुर" Date : 24-Nov-2024 ( गुरु तेग बहादुर के शहीदी - बलिदान दिवस 24 नवम्बर पर सादर समर्पित) "ये तिलक और जनेऊ कायम है, रहमते कादर का सदका.. ये बातें और पर्दे कायम हैं, हिंद की चादर का सदका... कोई माने या न माने, ये मंदिरों पर जो झंडे झूल रहे हैं, गुरु तेग बहादुर का सदका.. ओह ये दिल्ली जो अब तक बोल रही है, गुरु तेग बहादुर का सदका" "सिखों (सिक्खों) के नौवें गुरु तेग बहादुर सिंह का आज शहीदी दिवस है, गुरु तेगबहादुर सिंह के पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह था। उनके बचपन का नाम त्यागमल था। गुरु तेग बहादुर बचपन से ही संत, विचारवान, उदार प्रकृति, निर्भीक स्वभाव के थे। वह 24 नवंबर, 1675 को शहीद हुए थे। आइए जानते हैं देश की अस्मिता के लिए उनके बलिदान के बारे में-"झुके नहीं, बलिदान किया स्वीकार"। गुरु तेग बहादुर औरंगजेब के सामने झुके नहीं, इसका नतीजा यह हुआ कि उनका सिर कलम करवा दिया गया। औरंगजेब ने उन्हें जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने को कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से भरी सभा में साफ मना कर दिया। गुरु तेग बहादुर के बलिदान के चलते उन्हें 'हिंद दी चादर' के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि दिल्ली का 'शीशंगज गुरुद्वारा' वही जगह है जहां औरंगजेब ने लालकिले के प्राचीर पर बैठ उनका सिर कलम करवाया था। गुरु तेग बहादुर की औरंगजेब से जंग तब हुई जब वह कश्मीरी पंडितों को जबरन मुसलमान बनाने पर तुला हुआ था। कश्मीरी पंडित इसका विरोध कर रहे थे, इसके लिए उन्होंने गुरु तेग बहादुर की मदद ली, इसके बाद गुरु तेग बहादुर ने उनकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व अपने सिर से ले लिया।उनके इस कदम से औरंगजेब गुस्से से भर गया, वहीं गुरु तेग बहादुर अपने तीन शिष्यों के साथ मिलकर आनंदपुर से दिल्ली के लिए चल पड़े। इतिहासकारों का मानना है कि मुगल बादशाह ने उन्हें गिरफ्तार करवा कर तीन-चार महीने तक कैद करके रखा और पिजड़े में बंद करके उन्हें सल्तनत की राजधानी दिल्ली लाया गया। औरंगजेब के आगे नहीं झुके गुरु तेग बहादुर। औरंगजेब की सभा में गुरु तेग बहादुर और उनके शिष्यों को पेश किया गया। जहां उनके ही सामने उनके शिष्यों के सिर कलम कर दिये गए लेकिन उनकी आंखों में डर का तिनका तक नहीं था। वहीं उनके भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर डाले, भाई दयाल सिंह और तीसरे भाई सति दास को भी दर्दनाक अंत दिया गया, लेकिन उन्होंने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए इस्लाम धर्म कबूल करने से इंकार कर दिया। ज्ञातव्य हो कि अपनी शहादत से पहले ही गुरु तेग बहादुर ने 8 जुलाई, 1675 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का 10वां गुरु घोषित कर दिया था। विदित हो कि अप्रैल 1621 में जन्मे तेग बहादुर करतारपुर की जंग में मुगल सेना के खिलाफ लोहा लेने के बाद उनका नाम गुरु तेग बहादुर पड़ा। वहीं 16 अप्रैल 1664 में उन्हें सिखों के नौवें गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उनके जीवन का प्रथम और आखिरी उपदेश यही था कि 'धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग़ बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। यह कितना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिन्दू धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने महान् सिख गुरुओं के त्याग और बलिदान की विरासत को सिख समाज के कतिपय भटके ख़ालिस्तानी सिख जन धूमिल कर रहे हैं। खालिस्तान की मांग करने वाले मतांतरित सिक्ख,ईसाइयों और मुसलमानों से मिलकर हिंदुत्व को नष्ट करने के लिए आक्रमण कर रहे हैं, इसका ज्वलंत उदाहरण कनाडा से मिलता है जहां हाल ही में खालिस्तानी सिखों ने हिंदू मंदिर पर आक्रमण कर, हिंदुओं को मारा। खालिस्तानी चरमपंथी पन्नू ने अयोध्या में स्थित श्री राम मंदिर को उड़ाने की धमकी दी है। ये ख़ालिस्तानी चरमपंथी,उन्हीं मुसलमानों की गोद में जाकर बैठ रहे हैं, जिन्होंने 3 सिख गुरुओं क्रमशः गुरु अर्जन देव, गुरु तेग बहादुर,गुरु गोविंद सिंह की हत्या की और सिखों के सर्वनाश के लिए तत्पर रहे। इसलिए गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस की मार्मिक किंतु वीरोचित गाथा का लोकव्यापीकरण होना ही चाहिए,तभी भटके हुए खालिस्तानी सिख भी अपने घर लौटेंगे और कतिपय सिखों का भटकना बंद होगा। भगवान इन्हें सद्बुद्धि दे। गुरु तेग बहादुर कहते थे, कि "हार और जीत आपकी सोच पर निर्भर है..मान लो तो हार है, ठान लो तो जीत है।" लेखक:- डॉ आनंद सिंह राणा