"कविराज राजशेखर : भारत के अनमोल रत्न थे, " | The Voice TV

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"कविराज राजशेखर : भारत के अनमोल रत्न थे, "

Date : 04-Mar-2025

"महाकौशल के कालिदास थे, कविराज राजशेखर "

मां नर्मदा के पवित्र जल और संस्कारधानी की पवित्र मिट्टी से धर्म, अध्यात्म, साहित्य, दर्शन सहित विविध विधाओं के दुर्लभ रंग-बिरंगे खूबसूरत और सुगंधित अमर पुष्प विकसित हुए हैं। कभी महर्षि गौतम के रूप में कभी महर्षि जाबालि के रूप में, कभी भृगु के रूप में कभी महाकवि राज शेखर के रूप में, कभी महर्षि महेश योगी के रुप में तो कभी आचार्य रजनीश के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। इनमें राजशेखर पारिजात पुष्प हैं। 
परंतु गुर्जर प्रतिहार राष्ट्रकूट से पराजित हो गए और कन्नौज श्री विहीन हो गया, तब राजशेखर अपने पूर्व आश्रयदाता त्रिपुरी नरेश युवराज देव  की सभा में फिर आ गए और कई वर्षों तक उन्होंने साहित्य सृजन किया। त्रिपुरी (जबलपुर)में ही महाकवि राजशेखर ने सन् 935 में विद्धशाल भंजिका और काव्य मीमांसा पूर्ण की। अनेक कलचुरि राजाओं की सभाओं को गौरवान्वित किया और नरेश युवराज देव द्वितीय के समय तक सक्रिय रहे I 
बाल रामायण भगवान श्रीराम की कथाओं से संबंधित  है। यद्यपि राम कथा साहित्य का पर्यवेक्षण राम युग के संबंध में जानकारी का अधिकारिक स्रोत बाल्मीकि रामायण है तथापि राम कथा का वर्णन न केवल संस्कृत साहित्य में वरन् भारत की अन्य भाषाओं के साहित्य में भी हुआ है। साथ ही अन्य देशों में भी रामकथा का विस्तार मिलता है। राजशेखर द्वारा रचित बाल रामायण नामक ग्रंथ में दस अंक हैं, जिसमें सीता के स्वयंवर से लेकर अयोध्या लौटने तक की राम कथा का नाटकीय वर्णन प्रस्तुत किया गया है। 
विद्धशाल भंजिका का प्रणयन जबलपुर में हुआ था। संस्कृत कवि राजशेखर द्वारा रचित विद्धशाल भंजिका चार अंकों का नाटक है जिसमें राजकुमार विद्याधर मल्ल  तथा मृगांकावली एवं कुवलयमाला नामक राजकुमारियों की प्रेम कथा वर्णित है। इस नाटक का मंचन सर्वप्रथम युवराजदेव के समय किया गया था। त्रिपुरी की दृष्टि से महाकवि राजशेखर की सर्वश्रेष्ठ रचना काव्यमीमांसा है। 
 काव्यमीमांसा प्रीति, रस, और अलंकार आदि किसी एक विषय को लेकर नहीं लिखी गई है, किंतु अपनी नवीन प्रतिभा जन्य शैली द्वारा काव्य एवं कवि के समग्र प्रयोजनीय विषयों का एक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी संकलन है। इस ग्रंथ का प्रथम अधिकरण ही उपलब्ध है जिसमें अठारह अध्याय हैं, इसका नाम 'कवि रहस्य' है जो वस्तुतः कवि के रहस्य को प्रकट करता है। इसमें कवियों का  श्रेणी निर्धारण, कवियों के बैठने का क्रम, वेशभूषा आदि का वर्णन है, अतः इसमें प्रधान विषय कवि शिक्षा का ही है। 
इस प्रकार प्रवृति अर्थात् वेशविन्यासक्रम, वृति अर्थात विलासविन्यासक्रम और रीति अर्थात् वचनविन्यासक्रम के आधार को लेकर भारत के विभिन्न अंचलों की विशेषकर बुंदेलखंड की साहित्यिक संपदा एवं काव्यगत सौंदर्य की समीक्षा के विवेक पर राजशेखर ने विभिन्न प्रदेशों के नाम से विभिन्न काव्य शैलियों का तथ्यमूलक विषयों का नामकरण किया है। राजशेखर की दो रचनाएं क्रमशः भुवनकोश और हरिविलास अप्राप्त हैं। 
 कविराज राजशेखर अपने युग के संस्कृत और प्राकृत भाषा के सर्वोत्कृष्ट कवि ही नहीं वरन् नाटककार और इतिहासविद् भी थे। महाकवि राजशेखर की सात रचनाएं हैं जिसमें से पांच ही आंशिक रूप से उपलब्ध हुई हैं, क्योंकि मुस्लिम आक्रांताओं ने विपुल साहित्य को नष्ट कर दिया है, फिर भी जितना प्राप्त है उतना पर्याप्त है। त्रिपुरी कवि राजशेखर की कर्मभूमि रही है।
 भारत की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करने में उनका अतुलनीय योगदान है। राजशेखर ने ही कलचुरि काल में दीपावली को दीपमालिका के उत्सव के रुप में रेखांकित कर राज्योत्सव के रुप मनाने की प्रथा को समृद्ध किया। होली को त्रिपुरी में मदनोत्सव का स्वरुप देते हुए, राज उत्सव के रूप में प्रचलित किया। गौरतलब है कि कलचुरि काल में उनकी बाल रामायण का नाटकीय मंचन प्रारंभ हुआ, आज विविध कालों विकसित  रामलीला भारत की धरोहर है। 
 
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