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चाणक्य नीति: समय की शक्ति अपरिमेय है

Date : 26-Mar-2025

 कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः ।

कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः।।

 

आचार्य चाणक्य यहां काल के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहते हैं कि काल ही प्राणियों को निगल जाता है। काल सृष्टि का विनाश कर देता है। यह प्राणियों के सो जाने पर भी उनमें विद्यमान रहता है। इसका कोई भी अतिक्रमण नहीं कर सकता।

 

भाव यह है कि काल या समय सबसे बलवान है। समय धीरे-धीरे सभी प्राणियों और सारे संसार को भी निगल जाता है। प्राणियों के सो जाने पर भी समय चलता रहता है। प्रतिपल उनकी उम्र कम होती रहती है। इसे कोई नहीं टाल सकता क्योंकि काल के प्रभाव से बचना व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। चाहे योग-साधन किए जाएँ अथवा वैज्ञानिक उपायों का सहारा लिया जाए तो भी काल के प्रभाव को हटाया नहीं जा सकता। समय का प्रभाव तो हर वस्तु पर पड़ता ही है। शरीर निर्बल हो जाता है, वस्तुएँ जीर्ण और क्षरित हो जाती हैं। सभी देखते हैं और जानते हैं कि व्यक्ति यौवन में जिस प्रकार साहसपूर्ण कार्य कर सकता था वृद्धावस्था में ऐसा कुछ नहीं कर पाता। बुढ़ापे के चिह्न व्यक्ति के शरीर पर काल के पग-चिह्न ही तो हैं। काल को मोड़कर पीछे नहीं घुमाया जा सकता, यानि गया समय कभी नहीं लौटता।

 

यह बात बिलकुल सत्य है कि काल की गति को रोकना देवताओं के लिए भी संभव नहीं। अनेक कवियों ने भी काल की महिमा का वर्णन किया है। भतृहरि ने भी कहा है कि काल समाप्त नहीं होता वरन् मनुष्य का शरीर ही काल का ग्रास बन जाता है। यही प्रकृति का नियम है। अतः समय के महत्त्व को जानकर आचरण करना चाहिए।

 

 

 
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