राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एक ऐसा संगठन है जिसने अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्र निर्माण की विचारधारा के बल पर देश ही नहीं, दुनिया में भी एक विशेष पहचान बनाई है। यह संगठन सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का रक्षक बनकर उभरा है और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में अपने विशेष कार्यशैली के लिए जाना जाता है। वर्ष 2025 में संघ अपने स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है, जिसे बड़े उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। इस अवसर पर संघ यह संदेश दे रहा है कि वह आज भी अपने मूल सिद्धांतों और विचारधारा पर पूरी मजबूती से कायम है।
संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में की थी। उस समय भारत स्वतंत्रता संग्राम के दौर से गुजर रहा था, और हेडगेवार जी ने यह संगठन देश, समाज और संस्कृति की सेवा के लिए शुरू किया। तभी से संघ लगातार भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय ढांचे को मजबूत करने के कार्य में लगा हुआ है। संघ के कार्यों का प्रभाव देश के हर कोने में देखा जा सकता है – चाहे वह समाज की एकता हो, युवाओं में अनुशासन और नेतृत्व की भावना हो या फिर आपदा के समय सेवा कार्य।
संघ ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रभक्ति की भावना जाग्रत करने में अहम भूमिका निभाई। आज़ादी के बाद भी, जब देश विभाजन के संकट से गुजर रहा था, संघ के स्वयंसेवकों ने पाकिस्तान से आए लाखों विस्थापितों की मदद की और उनकी जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित की। समय-समय पर जब देश प्राकृतिक आपदाओं से जूझा – जैसे भूकंप, बाढ़, तूफान – तब संघ और उसके स्वयंसेवक राहत और बचाव कार्यों में सबसे आगे रहे।
संघ के कार्य केवल सेवा तक सीमित नहीं हैं। इसने शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान दिया है। विद्या भारती जैसे संगठन ने पूरे देश में हजारों स्कूलों के माध्यम से लाखों बच्चों को भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर आधारित शिक्षा दी है। विद्या भारती से जुड़ी 86 क्षेत्रीय समितियों के अंतर्गत 30,000 शिक्षण संस्थान कार्य कर रहे हैं, जिनमें 9 लाख से अधिक शिक्षक 45 लाख छात्रों को शिक्षा व संस्कार दे रहे हैं। इन स्कूलों में बच्चों को न केवल पढ़ाई करवाई जाती है, बल्कि उन्हें नैतिकता, देशभक्ति और सामाजिक समरसता की भी शिक्षा दी जाती है।
देश के आदिवासी और वंचित वर्ग के उत्थान में भी संघ का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की दिशा में काम कर रहे हैं। साथ ही, संघ ने समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को खत्म करने और सामाजिक समरसता को बढ़ाने के लिए कई अभियान चलाए हैं। संघ धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं को रोकने में भी सक्रिय रहा है, और इसने उन क्षेत्रों में काम किया है जहाँ ईसाई मिशनरियों और अन्य संस्थाओं ने धर्मांतरण का जाल फैलाया हुआ था।
संघ के स्वयंसेवकों ने कई ऐतिहासिक आंदोलनों में हिस्सा लिया है। 1954 में दादरा नगर हवेली को पुर्तगालियों से मुक्त कराकर भारत में मिलाने में संघ की भूमिका रही। गोवा मुक्ति संग्राम में भी संघ के कार्यकर्ता अग्रिम पंक्ति में थे। 1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ ने सैनिकों की मदद की और राष्ट्र के साथ खड़ा रहा। इसी योगदान के कारण प्रधानमंत्री नेहरू ने 1963 में संघ को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया।
संघ ने आपातकाल के दौरान भी लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेपी आंदोलन में हिस्सा लिया। राम जन्मभूमि आंदोलन में संघ के स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति तक दी, जिससे आंदोलन को गति मिली। भ्रष्टाचार, सामाजिक बुराइयों और राजनीतिक चुनौतियों के बीच संघ ने कभी हार नहीं मानी। कुछ राजनेताओं द्वारा संघ को बदनाम करने की कोशिशें की गईं, लेकिन संघ ने हमेशा निस्वार्थ सेवा को ही प्राथमिकता दी और अपने कार्यों का श्रेय लेने की कभी कोशिश नहीं की।
आज संघ देश भर में 55,000 से अधिक शाखाओं और करोड़ों स्वयंसेवकों के माध्यम से कार्य कर रहा है। ये स्वयंसेवक देश के युवाओं को अनुशासन, नेतृत्व और सामाजिक जिम्मेदारी का पाठ पढ़ा रहे हैं। संघ का उद्देश्य एक समरस, संगठित और शक्तिशाली भारत का निर्माण है और वह इस दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है।
संघ के 100 वर्षों की यह यात्रा केवल संगठन का इतिहास नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा, समाज सुधार और संस्कृति की रक्षा का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। यह एक ऐसी विचारधारा का प्रतीक है, जो भारत को एकजुट रखने और आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है।