यह किंवदन्ति प्रचलित है कि भगवान बुद्ध किसी जन्म में जंगली भैंसे की योनि में थे। जंगली भैंसा होने पर भी बोधिसत्व अत्यंत शांत थे। उनके सीधेपन का लाभ उठाकर एक बंदर उन्हें उस जन्म में बहुत तंग करता था। वह कभी उनकी पीठ पर चढ़कर कूदता, कभी उनके सींग पकड़कर हिलाता और कभी पूँछ खींचता था। कभी-कभी तो आँखों में अंगुली भी डाल देता था।
यह सब होने पर भी बोधिसत्व सदा शांत ही रहते थे। यह देखकर एक दिन देवताओं ने उनसे कहा- "ओ शांतमूर्ति ! इस दुष्ट बंदर को दण्ड क्यों नहीं देते? इसने क्या तुमको खरीद लिया है या तुम इससे डरते हो?"
बौधिसत्व बोले-"देवगण ! न इस बंदर ने मुझे खरीदा है, न मैं इससे डरता हूँ। इसकी दुष्टता भी मैं समझता हूँ और केवल सिर के एक झटके से अपने सींग द्वारा फाड़ डालने जितना बल भी मुझमें है।
"परंतु मैं इसके अपराध क्षमा करता हूँ। अपने से बलवान के अपराध तो सभी विवश होकर करते हैं। सहनशीलता तो वह है, जब अपने से निर्बल के अपराध क्षमा किये जाँए।"
देवगण मौन होकर लौट गये |