गोवा मुक्ति दिवसः राष्ट्रवादी विचारों का संकल्प | The Voice TV

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गोवा मुक्ति दिवसः राष्ट्रवादी विचारों का संकल्प

Date : 18-Dec-2025

गोवा को आजाद हुए आज 64 वर्ष पूरे हो गए। इसे हर वर्ष 19 दिसंबर को ‘गोवा मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। ‘मुक्ति दिवस’ एक ऐसा राष्ट्रवादी विचारों वाला अहसास है जो प्रत्येक भारतीयों में अपने अधिकारों के लिए लड़ने को न सिर्फ प्रेरित करता है बल्कि सहासिक संबल भी प्रदान करता है। 15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश स्वतंत्रता का उत्सव मना रहा था, तब गोवा पुर्तगाली शासन की जंजीरों में जकड़ा था। गोवा मुक्ति दिवस इसी अन्याय के अंत और गोवा की वास्तविक आजादी का जश्न है। भारत की आजादी के 14 वर्षों बाद गोवा मुक्त हुआ। इसे ‘गोवा क्रांति’ के नाम से जाना जाता है जिसकी आज 64 वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है।

गोवा की आजादी के लिए सैन्य बलों और क्रांतिकारियों ने 19 दिसंबर की तारीख तय की थी। यह गोवा में पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के अंत और हिंदुस्तानी सशस्त्र बलों के साहसिक अभियान का प्रतीक है।

गौरतलब है कि 16वीं शताब्दी से पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा करना आरंभ कर दिया था। साल 1498 में ‘वास्कोडिगामा’ समुद्री मार्ग से भारत पहुंच कर पुर्तगालियों को धीरे-धीरे भारत के तटीय क्षेत्रों में बसाना शुरू कर दिया था। उसके बाद उन्होंने अपने व्यापारिक और राजनीतिक किले बनाने आरंभ किए। धीरे-धीरे उन्होंने वर्चस्व स्थापित कर लिया। उनके साम्राज्य का 1961 में अंत कर दिया गया। गोवा को आजाद कराने के लिए भारतीय सैन्य अभियान इतना तेज शुरू हुआ कि उसके सामने पुर्तगाली सेना महज कुछ घंटे टिक सकी। अभियान के बीच में ही करीब 10 हजार पुर्तगाली सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर हथियार जमीन पर डाल दिए। वर्ष 1961 में भारतीय सेना ने अपने अदम्य शौर्य से ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत गोवा को करीब 450 साल के पुर्तगाली शासन से मुक्त कराया। भारतीय सेना ने लगभग 36 से 40 घंटे बिना रूके सैन्य अभियान चलाकर गोवा, दमन और दीव को पुर्तगालियों के चुंगल से छुड़वाने में सफलता हासिल की थी।

पुर्तगाली शासन से

मुक्ति के बाद साल 1987 में गोवा को भारत का 25वां राज्य घोषित किया गया।

गोवा सन् 1510 से लेकर 1961 तक पुर्तगालियों के कब्जे में रहा। पुर्तगाली किसी भी स्थिति में गोवा छोड़ना नहीं चाहते थे। गोवा की प्राकृतिक सुंदरता और कुदरती संपदा पर वे कब्जा बनाए रखना चाहते थे। भारत को अंग्रेजों से 1947 में आजादी मिल गई लेकिन गोवा तब भी पुर्तगालियों का गुलाम रहा। इसलिए उस समय भारत को पूर्ण आजाद नहीं माना जा रहा था क्योंकि देश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पर्तगालियों के शासन में था। गोवा की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम 1940 के दशक में शुरू हुआ। साल 1946 में डॉ. राममनोहर लोहिया ने पुर्तगालियों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए भारतीयों को प्रेरित किया। उनके आह्वान को स्वीकारते हुए गोवा मुक्ति की लड़ाई राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित लोगों ने सामूहिक रूप से लड़ी, जिसका नजीता ये निकला कि गोवा मुक्त हुआ।

गोवा को मुक्त करवाने के लिए क्रांतिकारियों ने सबसे पहले अहिंसा, शांति पाठ और कूटनीतिक रास्ता अपनाया। लेकिन उनकी उदारता का पुर्तगाल सेना ने नाजायज फायदा उठाकर अपना दमन जारी रखा। आखिरकार आंदोलनकारियों ने भी हथियार उठाए।

साल 1947 के बाद गोवा में स्वतंत्रता की भावना और तेज हुई। गोवा मुक्ति को लेकर आंदोलन न सिर्फ गोवा में हुए बल्कि पूरे देश में यह अभियान तेज हुआ। डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने गोवा आकर आंदोलन की दिशा को धार दी। कई गुमनाम क्रांतिकारी भी कूदे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने भी मोर्चा संभाला। सत्याग्रह, विरोध प्रदर्शन और जनसभाओं के जरिए पुर्तगाली शासन के खिलाफ आवाज उठाई। पुर्तगाली सरकार ने आंदोलन को कठोरता से दबाने का प्रयास किए, कई स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डाल कर उनपर अत्याचार और जुल्म किए।

इसके बाद भारत सरकार ने सेना को लगाया। सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ चलाकर पुर्तगालियों की कमर तोड़ दी। गोवा की आजादी के लिए यह ऑपरेशन निर्णायक साबित हुआ। 17 दिसंबर 1961 को ऑपरेशन आरंभ हुआ था। जिसमें भारतीय थल सेना, नौसेना और वायु सेना के लगभग 30,000 सैनिक शामिल थे। भारतीय सेना ने रणनीति के तहत पुर्तगालियों के मुख्य मार्गों पर सबसे पहले नियंत्रण किया। गोवा में प्रवेश करने वाले मुख्य मार्ग को पुर्तगालियों ने धमाके से उड़ा दिया था, ताकि वह घुस न पाएं लेकिन भारतीय सैनिक नहीं रूके। उसके बाद भारतीय वायु सेना ने भी पुर्तगालियों के ठिकानों पर जमकर बमबारी की और थल सेना ने चारों ओर से मोर्चा संभाला। तब पुर्तगालियों ने महसूस किया कि अब वो टिक नहीं पांएगे। तभी पुर्तगाली गवर्नर मेन्यू वासलो डी सिल्वा ने औपचारिक रूप से घुटने टेक कर समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और गोवा से पुर्तगालियों की वापसी शुरू हो गई।

- डॉ. रमेश ठाकुर


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