याद बॉलीवुड की पहली पिन-अप गर्ल बेगम पारा की
अमेरिकी पत्रिका 'लाइफ' ने 1951 में एशिया के बारे में एक विशेषांक निकाला था, जिसके कवर पेज के लिए कई भारतीय सुंदरियों में से बेगम पारा की फोटो चुनी गई थी। इस बोल्ड फोटो शूट को प्रख्यात फोटोग्राफर जेम्स बुर्के ने शूट किया था। इन तस्वीरों में बेगम पारा ने सफेद साड़ी के साथ खुले कंधोंवाला ब्लाउज पहना था और उनके हाथों में सिगरेट थी। यह तस्वीर कोरिया में युद्धरत अमेरिकी सैनिकों को बहुत भाई और उन्होंने उसे लगभग हर बैरक में चिपका दिया था। इसलिए गुजरे जमाने की मुंबइया अभिनेत्री बेगम पारा को भारत की पहली पिन-अप गर्ल कहा गया और पुराने लोगों को अब भी यह बात याद है।
उस जमाने में अभिनेत्रियां अच्छे घरों से नहीं आती थीं, लेकिन इसका अपवाद थीं बेगम पारा। उनके पिता जालंधर के मूल निवासी थे और अविभाजित भारत की रियासतों में न्यायाधीश के रूप में अनेक नगरों में रहे। बेगम पारा का जन्म 25 दिसंबर, 1927 को झेलम (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनका मूल नाम पारा था और बेगम उन्होंने खुद ही जोड़ लिया था। अलीगढ़ में हॉस्टल में रहकर उनकी पढ़ाई हुई। किशोरावस्था में बेगम पारा फिल्में देखने की शौकीन थीं और मोतीलाल उनके आदर्श थे।
इसी दौरान उनके भाई मंसूर उल हक नौकरी के लिए कलकत्ता गए और वहां उन्होंने प्रख्यात बांग्ला फिल्म अभिनेत्री प्रोतिमा दासगुप्ता से शादी कर ली। बाद में वे मुम्बई आ गए। बेगम पारा 1942 की छुट्टियों में भाई-भाभी के पास आई और फिल्म की शूटिंग देखने गईं, तब वहीं प्रभात फिल्म कंपनी के प्रख्यात निर्देशक डीडी कश्यप द्वारा फिल्म में काम करने का पहला प्रस्ताव मिला। यह फिल्म चांद थी जिसमे उनके हीरो प्रेम अदीब थे और उनकी उम्र तब मात्र सोलह साल की थी । भारत की पहली संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल भगतराम की भी यह पहली ही फिल्म थी और उन्होंने बेगम पारा के प्ले बैक के लिए उस समय की अति लोकप्रिय गायिका जीनत बेगम की आवाज इस्तेमाल की थी।
फिल्म सफल रही और बेगम पारा 1940-50 के दौर की सबसे बोल्ड एक्ट्रेस के रूप में उभरीं। उन्होंने कई यादगार फिल्में की। वे सोहनी महिवाल (1946), जंजीर (1947), मेहंदी (1947) जैसी फिल्मों में नर्गिस के साथ दिखाई दीं। नील कमल (1947) में उन्होंने राजकपूर और मधुबाला के साथ स्क्रीन शेयर किया। इसके अलावा लैला मजनूं (1953), नया घर (1953) और पहली झलक (1955) में भी उन्होंने काम किया। छमिया', 'झरना' और 'पगले' प्रोतिमा दासगुप्ता द्वारा निर्मित निर्देशित फिल्में थी। बेगम पारा इनकी सह-निर्माता थीं।
अपने समय में बेगम पारा के सभी शौक पुरुषों जैसे थे। घुड़सवारी, शिकार, निशानेबाजी तथा तैराकी में वे पारंगत थीं। फिल्मी सितारों के क्रिकेट मैचों में वे सबसे अधिक रन बनाकर नायकों को चौंका देती थीं। कर भला (1956) फिल्म में उनके हीरो दिलीप कुमार के छोटे भाई नसीर खान थे जिनसे उन्होंने विवाह कर लिया। तब तक 28 फिल्में कर चुकी बेगम ने खुद ही फिल्में करना छोड़ दिया, क्योंकि उन्हें लगता था कि वे पति और फिल्म दोनों के साथ न्याय नहीं कर पा रही हैं।
1974 में दोनों ने एक भव्य फिल्म बनानी शुरू की। फिल्म का नाम था- ज़िद। इसकी नायिका सायरा बानू और नायक संजय खान थे। इसी फिल्म के लिए लोकेशन देखने मियां-बीवी डलहौजी गए। वापसी में अमृतसर के एक होटल में नसीर खान को दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसे। फिल्म अधूरी रह गई। उनके पास जो कुछ भी था, सब चला गया। उनके अधिकतर सगे-संबंधी पाकिस्तान में थे, इसलिए इस त्रासदी के बाद बेगम पारा अपने बच्चों को लेकर वहां चली गई। लेकिन वहां के दकियानूसी माहौल में वे ज्यादा समय नहीं रह सकीं और भारत लौट आईं। उनके तीन बच्चे थे। बेटा अयूब खान फिल्मों और टीवी में सक्रिय हैं। दो बेटियां हैं। दो मस्ताने (1958) उनकी अंतिम फिल्म थी जिसमें उनके प्रिय हीरो मोतीलाल उनके साथ थे। अपने समय की बोल्ड और ब्यूटीफुल अभिनेत्री रहीं बेगम पारा का निधन 11 दिसंबर, 2008 को मुंबई में हुआ।
चलते-चलते
सन 2007 में संजय लीला भंसाली की फिल्म सांवरिया में वे अतिथि- कलाकार की हैसियत से परदे पर आईं। वे फिल्म में सोनम कपूर की दादी बनीं और व्हील चेयर पर दिखाई दी थीं। उनसठ साल बाद बेगम पारा ने एक बार फिर कैमरे की आंख से आंख मिलाई थी।
अजय कुमार शर्मा
(लेखक, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)