स्वाधीनता सेनानी - अमतृ लाल फणीन्द्र
अमतृ लाल फणीन्द्र का जन्म दिनांक 2 अक्टूबर सन् 1917 ई को ग्राम-बड़ागाँव धसान, जिला टीकमगढ़ (म.प्र.) में हुआ था। आपके पिता का नाम स्व. श्री खुमान था। आपका विवाह इसी गाँव के श्री देशराज जी की बड़ी पुत्री श्रीमति पुष्पा देवी के साथ हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमति पुष्पा देवी को भी कठोर कष्टों का समाना करना पड़ा।
फणीन्द्र का वास्तविक नाम उदयचन्द्र था। इनके ऊपर क्रांतिकारियों का जबररदस्त प्रभाव था। टीकमगढ़ जिले के बाहर क्रांतिकारियों से अच्छे संबंध थे। यह राजा सामंतवादियांे और अग्रंेजी साम्राज्य के कट्टर विरोधी थे। इनके भाषण और कविता जनता में ज्वालामुखी का काम करती थी। इन्होने उदयचन्द्र के नाम से टीकमगढ़ राज्य में के विरोध मंे विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया था। जगह.जगह राजशाही शासन की बुराई होने लगी इनको गिरफ्तार करने अथवा जान से मारने के लिए ओरछा राज्य की ओर से आज्ञा जारी हुई। उदयचन्द्र छद्म वेश में जगह.जगह जाकर राजाशाही के विरूद्ध अलख जगा रहा था। जग संगठन निर्मित कर गुप्त जगह निर्मित कर छापामार युद्ध की विस्तृत आंदोलन की तैयारियाँ की जा रही थी। ऐसी तैयारियो में ही अंग्रेजी शासन के नौगाँव पोलिटिकल एजनेट साहब बहादुर पर गोली बारूद व खतरनाक हथियारो से व बम तक से हमला करनेए बंगला उड़ाने की तैयारी की गई थी। इस हेतु गुप्त रास्ते निर्मित कर वेश बदलकर श्री उदयचन्द्र उपचार के बहाने जायजा लेने नौगाँव पहुँचे। लौटकर योजना को कार्यरूप में परिणित करने के लिए साथियों द्वारा धन की आवश्यकता महसूस की गई।
धन संग्रह के लिए राज्य खजाने पर डकैती डालने की योजना बनाई गई। जिसे अपने साथी की सूचना पर बलदेवगढ़ के निकट जगदम्बा विन्ध के गिरि मंदिर के पास खजाना ले जा रही गाड़ियों पर योजना-बद्ध डकैती डालकर असली जामा पहनाया गया। इस डकैती में पूरे सोलह हजार कलदार चार हजार पाँच सौ गजाशाही लूटे गये, साथ चल रहे सिपाहियो को शस्त्रहीन कर उन्हें व गाड़ियो को जंगल में दूर ले जाकर बाँध दिया गया। यही धन बाद में बुन्देलखण्ड में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन में काम आया। उदयचन्द्र के ऐसे ही कारनामे के कारण दूसरा इनामी इश्तहार जारी किया जो निम्न प्रकार से है तारीख 21 जनवरी वर्ष 1935 ई. सवाई महेंद्र महाराजाधिराज वीरसिंह जूदेव बहादुर के सी आई. ऑफ ओरछा स्टेट की अनुमति से जारी किया गया। गृह सचिव ओरछा राज्य टीकमगढ़ (सी.आई.) फिर भी पुलिस और फौज को पूरी ताकत लगाने के बाद भी पकड़ने में सफलता नहीं मिली। वे भूमिगत रहकर परूी सक्रियता से स्वतंत्रता आंदोलन में लगे हुए थे। इसी भूमिगत के दौर में उन्होंने जबलपुर प्रवास के दौरान अपना नाम उदय चन्द्र से अमृतलाल फणीन्द्र रख लिया था। जब आपने देखा कि मूल उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो रही तो आपने जबलपुर छोड़ दिया और म.प्र. के सागर आ गये वही ं अकोला अनाथालय के प्रचार-प्रसार एवं धन संग्रह हेतु दिये गये अपने भाषणों ंमंे सामन्तों और अंग्रेजो का विरोध किया व जन क्रांति का शंख फूँका जिसके परिणामस्वरूप मोरा जी सांगा पर छापा पड़ा वहाँ से साधु वेष बनाकर अपने क्षेत्र वापस आ गये और अमृतलाल फणीन्द्र नाम से काम करने लगे। अमृत लाल फणीन्द्र के ही नाम से आप कई बार जेल गये यातनाएँ सही मारपीट सही।
फणीन्द्र जी में झरमर आंदोलन, महुआ आंदोलन, जागीर प्रथा का विरोध, पड़ती भूिम अधिकार आंदोलन, बेगार मिटाआंे आंदोलन , हरिजन हड़ताल झंड़ा सत्याग्रह सुधार,सागर विद्रोह आदि आंदोलन के उत्पादक व संचालक रहे। इन्होंने अपनी कुशलता व संगठन की दृढ़ता के कारण सफलताएँ प्राप्त की। जिले की जनता में इनकी बड़ी गहरी जड़े थी। सन् 1945 में ओरछा राज्य की धारा सभा में एम.एल.ए. चुने गये थे। फणीन्द्र कवि, लेखक, पत्रकार साहितयकार इतिहासकार भी थे। उन्होंने अनेक ओजस्वी काव्य पुस्तकें लिखी है। उन्होंने सम्पूर्ण बुंदेलखण्ड के स्वाधीनता आंदोलन का एक इतिहास लिखा है जिसका नाम दिया है ‘इतिहास के बरबस ओझल पन्ने’। किन्तु धनाभाव के कारण इतिहास अप्रकाशित हैं। फणीन्द्र जी ने अनेक संस्मरण भी लिखे है जिनमें ‘मौत का खेल , ‘सरगुजा रियासत की नश्ृांस लीला’, गुहावासी उत्पीड़न’, बस्तर राज्य में गाँधी के अवज्ञा आंदोलन’, मिर्च की बुकनी’ आदि कुछ ऐतिहासिक संस्म्रण सन् 1857 के आसपास के भी लिखे हैं। आपके अनके संस्मरण दैनिक ओरछा (टीकमगढ़), दैनिक जागरण (झाँसी), दैनिक भास्कर (भोपाल), जनयुग (दिल्ली) आदि में प्रकाशित हुए है।
फणीन्द्र जी का निधन 8 मार्च सन् 1980ई. को हुआ था।