हिंदी सिनेमा के इतिहास में नैसर्गिक अभिनय यानी स्वाभाविक अभिनय के लिए सबसे पहले याद किए जाने वाले अभिनेता मोतीलाल हैं। इसके बाद की कड़ी में अशोक कुमार, बलराज साहनी और संजीव कुमार के नाम लिए जाते हैं। मोतीलाल की विशेष पहचान फेल्ट हैट, भड़कीले कपड़े,चमचमाते जूते, मस्त चाल-ढाल, शाही अंदाज, नफासत से भरे हाव-भाव आदि थे। मोतीलाल ने अस्सी से अधिक फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शुरू में नायक और फिर चरित्र अभिनेता के रूप में उनकी यादगार फिल्में हैं- अनाड़ी, पैगाम, लीडर,परख और जागते रहो।
चार दिसंबर, 1910 को शिमला में जन्मे मोतीलाल का परिवार दिल्ली का रहने वाला था। वह एक साल के थे, जब उनके पिता का निधन हो गया। उनके पिता शिक्षा विभाग में थे। उनका पालन-पोषण उनके चाचा ने किया । उनकी प्रारंभिक शिक्षा शिमला, उत्तर प्रदेश और आगे की पढ़ाई दिल्ली में हुई। अपनी जवानी के दिनों में वे नेवी में नौकरी करने के इरादे से बंबई आए, लेकिन ठीक परीक्षा के दिन बीमार हो गए और परीक्षा नहीं दे पाए। इसी दौरान एक दिन वे सज-धज कर शूटिंग देखने सागर स्टूडियो जा पहुंचे। वहां निर्देशक काली प्रसाद घोष किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। युवा मोतीलाल को देखकर वे चौंक गए, क्योंकि उन्हें अपनी फिल्म के लिए ऐसे ही हीरो की तलाश थी। इस तरह बिल्कुल फिल्मी अंदाज में वे सागर मूवीटोन की फिल्म शहर का बाबू (1934) के हीरो चुन लिए गए। उनकी नायिका थी सवितादेवी।
सागर मूवीटोन उस समय का प्रसिद्ध स्टूडियो था। वहां सुरेंद्र, बिब्बो,याकूब, जद्दनबाई, कुमार जैसे श्रेष्ठ कलाकार महबूब खान, सर्वोत्तम बादामी और चिमन लाल लोहार जैसे निर्देशक और केसी डे, प्राणसुख नायक तथा अनिल विश्वास जैसे संगीतकार काम करते थे। तब तक फिल्मों में पार्श्व गायन की शुरुआत नहीं हुई थी। इसलिए यहां मोतीलाल को अपने गाने खुद गाने पड़े थे।साल 1937 में सागर मूवीटोन छोड़ने से पहले उन्होंने वहां के लिए दस फिल्में कीं और संवाद बोलने के स्वाभाविक ढंग, साफ सुंदर कॉमेडी से दर्शकों के बीच अपनी शानदार पहचान बनाई। सन 1937 में उन्होंने चंदूलाल शाह के रणजीत स्टूडियो में काम करना आरंभ किया। यहां उनकी कई फिल्में शादी, (1941) परदेसी, अरमान ससुराल और मूर्ति आदि बेहद सफल रहीं। बॉम्बे टॉकीज की तर्ज पर रणजीत ने 1940 में फिल्म अछूत बनाई थी जिसमें मोतीलाल के साथ गौहर नायिका थीं । पहली नजर (1945) में मोती लाल के लिए गायक मुकेश ने पार्श्व गायन किया- जब दिल ही टूट गया तो...। मुकेश उनके चचेरे भाई थे।
संगीतकार अनिल विश्वास के इस गीत ने मुकेश को नई पहचान दी। मोतीलाल के अभिनय में कॉमेडी का भी पुट रहता था । इसके लिए उनकी फिल्म मिस्टर संपत (1952) की मिसाल दी जा सकती है, जिसे दक्षिण भारत के जैमिनी स्टूडियो ने बनाया था। आरके नारायण के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म के निर्देशक थे एसएस वासन। 1950 के बाद वे चरित्र अभिनेता के रूप में आने लगे थे। 1950 में उन्होंने बिमल रॉय की देवदास में दिलीप कुमार के दोस्त चुन्नी बाबू का यादगार रोल किया था। इसके बाद जागते रहो (1956) और परख (1960) के रोल भी चर्चित रहे।
परख के लिए उन्हें फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का अवार्ड भी प्रदान किया गया। अभिनेत्री नूतन और तनूजा की मां, जानी-मानी अभिनेत्री शोभना समर्थ के साथ उनके नजदीकी रिश्ते थे । बाद में उन्होंने राजवंश प्रोडक्शन की स्थापना कर एक फिल्म छोटी-छोटी बातें (1965) बनाई जिसके लेखक, निर्माता, निर्देशक और नायक वे स्वयं ही थे । इस फिल्म को बनाते-बनाते उनकी सारी जमा पूंजी खत्म हो गई। वे दिवालिया होकर बीमार पड़ गए और 17 जून 1965 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। विडंबना देखिए की उनकी इस फिल्म को राष्ट्रपति का सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट मिला मगर वे इसे लेने के लिए दुनिया में मौजूद नहीं थे।
चलते-चलते-
मोतीलाल अपने निजी जीवन में भी पूरे रईसी अंदाज के लिए जाने जाते थे। वह दोस्तों के लिए शानदार शराब की पार्टियां आयोजित करते थे। घुड़दौड़ में भी हिस्सा लेते। अच्छे पायलट होने के कारण विमान भी उड़ाते। इतना ही नहीं क्रिकेट भी बहुत अच्छा खेलते थे। एक बार क्रिकेट खेलते हुए विजय मर्चेंट की गेंद से वह घायल भी हो गए थे। उनकी आंख में चोट लगी थी। इस गलती के लिए विजय मर्चेंट ने उनसे वादा किया था कि वह उनकी हर फिल्म फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखेंगे और उन्होंने यह कसम अंत तक निभाई।
अजय कुमार शर्मा
(लेखक, वरिष्ठ कला एवं संस्कृति समीक्षक।)
