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पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने छेड़े सुरों के तार तो बरसी स्वर लहरियों की फुहार

Date : 17-Jul-2023

 योगीराज भर्तृहरि की नगरी चुनार के गौरवशाली इतिहास के जीवंत प्रमाण चुनार दुर्ग के आंगन में रविवार की सांझ सांस्कृतिक सुरों की शाम सजी। ख्यातिलब्ध लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने शिष्यों के साथ लोकगायन के माध्यम से सदियों पुराने लोक संगीत ’कजरी’ के इंद्रधनुषी रंग बिखेरे। तीन दिवसीय कजरी कार्यशाला रिमझिम बरसे बदरिया... का शानदार समापन हुआ।

सावन के महीने में लोक गायन के साथ अवधी, भोजपुरी और पारंपरिक गीतों के स्वर लहरियों की फुहारों से हर श्रोता भीगा नजर आया। शानदार प्रस्तुतियों की लय के साथ दर्शक दीर्घा में बैठे-बैठे हर आमो खास झूमते हुए ताल मिलाता नजर आया। मात्र तीन दिनों की कार्यशाला के बाद स्वर साधकों ने हर विधा से परिपूर्ण कजरी गीतों की प्रस्तुति दी और रविवार की शाम को हसीन कर दिया।

मालिनी अवस्थी व देश भर से आए कजरी विधा के 20 साधकों ने ठुमरी सुनाया- सूनो लागे मेरो गांव, बैठी सोचें बृजभान, नहीं आये घनश्याम, आई सावन की बहार...। जैसे ही बरसन लागी बदरिया रूम झूम के, बादल गरजे, बिजुरी चमके, मोरवा नाचत अंगनवा झूम झूम के... सुर गूंजी, वैसे ही आकाश से भी सावनी फुहारों की बरसात हो गई। इसके बाद तो एक से बढ़कर एक कजरी गीतों ने समां बांधा। पिया मेंहदी लिया द मोती झील से जाके साइकिल से, ई ह सावनी बहार, माना बतिया हमार, कौनो फायदा नाहीं दलील से...। मालिनी अवस्थी ने शिष्यों के साथ चिरपरिचत अंदाज में सिया संग झूले बगिया में रामललना सुनाया तो पूरी सांस्कृतिक विरासत उनके साथ खड़ी नजर आई।

सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का प्रयास

सोन चिरैया और नार्दन कोल फील्ड लिमिटेड की ओर से आयोजित सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ पद्मश्री मालिनी अवस्थी, जिलाधिकारी दिव्या मित्तल, पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार मिश्र, सोन चिरैया की अध्यक्ष पद्मश्री डा. विद्याबिंदु सिंह व एनसीएल के सीएमडी भोला सिंह ने किया। जिलाधिकारी ने इसे सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का प्रयास बताया। इस दौरान पद्मश्री अजीता श्रीवास्तव, कजरी गायिका उर्मिला श्रीवास्तव, अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व शिवप्रताप शुक्ला आदि थे।

विश्व की ऐतिहासिक धरोहर है कजरी

पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक धरोहर कजरी को संजोने और इसको गाने वाले कलाकारों को संवारने के लिए रिमझिम बरसे बदरिया जैसी इस कार्यशाला का आयोजन किया गया। कजरी सीखने के लिए प्राकृतिक परिवेश की आवश्यकता है और इसीलिए जिस मिट्टी में कजरी जन्मी है वहां कजरी का ओज, कजरी का लालित्य सीखने के लिए देश भर से 20 कलाकारों ने तीन दिन तक स्वर साधना की।

 
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