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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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शिक्षाप्रद कहानी:- माँ का हृदय

Date : 25-May-2024

महाभारत  युद्ध के अन्तिम दिन श्रीकृष्ण सभी पांडवों को लेकर उस शिविर में चले गए, जहाँ युद्ध के दिनों में पांडवों की रानियां निवास कर रही थी|

द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को इसकी सुचना मिल गयी और इसको बदला लेने का उपयुक्त अवसर जानकार उसने पांडवों के शिविर में आग लगा दी|

उस शिविर में जितने भी पांडव तथा सैनिक बचे हुए थे, वे सबके सब भस्म हो गए | उन भस्म होने वालों में द्रोपदी के पुत्र भी थे|

प्रात: काल जब इस दुष्कृत्य की सुचना मिली और शिविर की दशा देखी तो सबके दिल दहल गएपांडव महिलाएं करुण क्रंदन करने लगीं|  महारानी द्रोपदी की व्यथा का तो पार ही नहीं था| छानबीन करने पर पता चला कि इस दुष्कृत्य का कर्त्ता अश्वत्थामा है |

अर्जुन ने द्रोपदी को सांत्वना देते हुए कहा - '' मैं हत्यारे अश्वत्थामा को दंड दूंगा | उसका कटा हुआ मस्तक देखकर तुम अपना शोक दूर करना|"

अर्जुन अश्वत्थामा को खोजने लगे और जब वह सामने दिखाई दिया तो उसे पकड़ने के लिए वे लपके ही थे कि उसने अपना ब्रम्हास्त्र चला दिया | किन्तु वह निष्फल सिद्ध हुआ| आखिर में वह पकड़ा गया| न जाने क्यों अर्जुन ने उसका मस्तक छिन्न नहीं किया|

अर्जुन उसे बांधकर द्रोपदी के सम्मुख ले आये|

 

अश्वत्थामा को देखते ही भीम ने दांत पीसते हुए कहा "इस दुष्ट का मस्तक छिन्न क्यों नहीं किया| यह अभी तक जीवित क्यों है? "

किन्तु उस समय द्रोपदी की दशा कुछ और ही थी| दु:शासन के रक्त से अपने बालों को सींचनेवाली रणचंडी द्रोपदी इस समय दया की मूर्ति बन गयी थी|

पुत्रों के शव इस समय उसके सम्मुख पड़े हुए थे| हत्यारा सामने खड़ा हुआ था| पशु के समान बंधे हुए और लज्जा से मुख नीचे किये हुए अश्वत्थामा को देखकर द्रोपदी के मुख से निकल गया- "हाय, हाय! यह आप लोगों ने क्या किया? जिनकी कृपा से आप लोगों ने शस्त्रज्ञान पाया है, वे गुरु द्रोणाचार्य ही यहां पुत्र रूप में खड़े है|"

"पुत्र शोक कैसा होता है, यह मैं अनुभव कर रही हूँ| इनकी पूजनीय माताजी को यह शोक न हो, वे मेरे समान रुदन न करें. इसलिए इन्हें तुरंत मुक्त कर दीजिये|" पांडवों के लिए और कुछ करने को नहीं रह गया था| उन्होंने अश्वत्थामा को बंधनमुक्त करते हुए उसके मस्तक की मणि ले ली| अश्वत्थामा लज्जित सा वहां से अपने शिविर को ओर चला गया|

 
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