Quote :

परिवर्तन कभी आसान नहीं होता, लेकिन हमेशा संभव होता है - अज्ञात

Editor's Choice

पितृ तर्पण प्रारंभ :- श्राद्ध पक्ष से जुडी कर्ण की विशेष कहानी

Date : 18-Sep-2024

 हिन्दू धर्म में पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने का विशेष हैं पितृ पक्ष| यह समय श्राद्ध कर्म, तर्पण, और पिंडदान के लिए समर्पित है | पितृ पक्ष एक पुरानी परंपरा है जो जीवित लोगों और उनके पूर्वजों के बीच गहरे संबंधों को उजागर करती है। यह चिंतन, श्रद्धा और स्मरण का समय है |  

मान्यता है कि इस दौरान किये गए श्राद्ध कर्म से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती हैं और पितृ पक्ष के दौरान किये गए दान और कर्म से सात पीढ़ियों का पित्र दोष समाप्त होता है |  इस साल 18 सितंबर को प्रतिपदा श्राद्ध के साथ पितृ पक्ष शुरू हो गया है |

श्राद्ध को लेकर महाभारत के योद्धा कर्ण के बारे में एक कथा प्रचलित है। जिसमें कहा गया है कि जब कर्ण की मृत्यु होने के बाद उनकी आत्मा स्वर्ग लोक में पहुंची तो वहां पर उन्हें भोजन में खाने के लिए ढ़ेर सारा सोना और सोने से बने आभूषण दिए गए। तब कर्ण की आत्मा को कुछ समझ में नहीं आया। तब कर्ण की आत्मा ने देवराज इंद्र से पूछा कि उन्हें खाने में सोने की चीजें क्यों दी जा रही है |

कर्ण के सवाल के जवाब में देवराज इंद्र ने बताया कि तुमने अपने जीवन काल में सोना ही दान किया था। कभी भी अपने पूर्वजों को खाने की चीजों का दान उन्हें नहीं दिया इस कारण से तुम्हें भी सोना ही खाने को दिया गया। इस पर कर्ण ने कहा कि मुझे अपने पूर्वजों के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था इसलिए उन्हें कुछ भी दान नहीं कर पाया।


तब स्वर्ग से कर्ण को अपनी गलती सुधारने के लिए मौका दिया गया और उन्हें दोबारा 16 दिनों के लिए वापस पृथ्वी पर भेज गया। इसके बाद 16 दिनों तक कर्ण ने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उन्हें भोजन अर्पित किया। तब से इसी 16 दिनों को पितृ पक्ष कहा जाने लगा|

पितृपक्ष के दौरान पुत्र द्वारा श्राध्द करना हिन्दुओ में अनिवार्य माना जाता  ताकि यह  निश्चित किया जा सके कि पूर्वजो की आत्मा स्वर्ग जाये इस संदर्भ में  गुरुड पुराण में कहा गया है की  “पुत्र बिना मनुष्य का जीवन में कोई उद्दार नहीं है’’

जैसे-जैसे दुनिया आगे बढ़ती जा रही है, पितृ पक्ष का सार अपरिवर्तित बना हुआ है - यह मान्यता है कि परिवार और विरासत के बंधन भौतिक क्षेत्र से परे हैं, और हमारे जीवन में हमारे पूर्वजों की स्थायी उपस्थिति और प्रभाव में विश्वास है। यह एक अनुस्मारक है कि, अपने अतीत का सम्मान करने से, हम भविष्य के लिए शक्ति और मार्गदर्शन पाते हैं, जिससे पीढ़ियों के माध्यम से प्रेम, सम्मान और परंपरा का एक सतत धागा सुनिश्चित होता है।

आप सभी के पितृ पक्ष का पालन और भागवत पूजा सभी के लिए शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास लेकर आए।

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement