भारत में साँस्कृतिक और राष्ट्रीय पर्व पर हमले : अशाँति फैलाकर प्रगति अवरुद्ध करने का षड्यंत्र
Date : 13-Jan-2025
मुस्लिम कट्टरपंथियों और राष्ट्र विरोधी तत्वों का गठजोड़
भारत में कुछ वर्ष पहले तक केवल सनातन परंपरा की यात्राओं पर हमले होते थे लेकिन अब राष्ट्रीय पर्व और तिरंगा यात्रा पर भी हमले होने लगे । तिरंगा यात्रा पर हुये हमले में चंदन कुमार गुप्ता के प्राणों का बलिदान हुआ । चंदन गुप्ता राष्ट्रीय जागरण केलिये निकाली जा रही तिरंगा यात्रा में सहभागी थे और राष्ट्र गौरव के प्रतीक तिरंगा लेकर सबसे आगे चल रहे थे । उत्तर प्रदेश के कासगंज की यह घटना 26 जनवरी 2018 की है। युवाओं में राष्ट्र जागरण के लिये विद्यार्थी परिषद स्वतंत्रता की वर्षगाँठ 15 अगस्त और 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर तिरंगा यात्राओं का आयोजन करता है । इसी के अनुरूप कासगंज में यह तिरंगा यात्रा निकाली जा रही थी । इस यात्रा में युवा चंदन कुमार गुप्ता तिरंगा लेकर आगे चल रहे थे । मुस्लिम कट्टरपंथियों की एक भीड़ ने तिरंगा यात्रा पर हमला कर दिया । हमले में कयी युवा घायल हुये और चंदन गुप्ता का बलिदान हुआ । हमलावर केवल तिरंगा यात्रा पर हमला करने तक ही नहीं रुके । पूरा कासगंज हिंसा की चपेट में आ गया । इस हिंसा के आरोपियों को दंडित करने केलिये उत्तर प्रदेश सहित कयी स्थानों में शांति मार्च निकाले गये और दोषियों को दंडित करने की मांग की गई। लगभग छै वर्ष बाद एनआईए कोर्ट का निर्णय तीन जनवरी 2025 को आया जिसमें कुल 28 लोगों को दोषी पाकर अलग-अलग अवधियों के कारावास का दंड घोषित किया गया । इनमें आसिफ कुरैशी उर्फ हिटलर, असलम कुरैशी, असीम कुरैशी, शबाब, साकिब, मुनाजिर रफी, आमिर रफी, सलीम, वसीम, नसीम, बबलू, अकरम, तौफीक, मोहसिन, राहत, सलमान, आसिफ, आसिफ जिम वाला, निशु, वासिफ, इमरान, शमशाद, जफर, शाकिर, खालिद परवेज, फैजान, इमरान, शाकिर, जाहिद उर्फ जग्गा शामिल हैं।एनआईए न्यायालय ने इस प्रकरण में नसरुद्दीन और असीम कुरैशी को दोनों को सबूतों के अभाव बरी कर दिया । जबकि एक अन्य आरोपी अजीजुद्दीन की मृत्यु हो गई थी ।
भारत के साँस्कृतिक अथवा राष्ट्रीय आयोजनों पर हमला और हमलावरों को बचाने केलिये योजना पूर्वक काम करने का यह कासगंज का प्रकरण अकेला या पहला नहीं है । इससे पहले कट्टरपंथियों और आतंकवादियों को बचाने के प्रयास हुये हैं। आतंकवादी अफजल को बचाने केलिये उच्चतम न्यायालय से लेकर राष्ट्रपति भवन तक जो दौड़ लगाई गई, बड़े बड़े वकील खड़े हुये, आधी रात को न्यायालय का द्वार खटखटाया गया, यह सब पूरे देश ने देखा है । यही सब कासगंज की घटना में हुआ । कासगंज की भाँति पिछले देश के अनेक स्थानों पर तिरंगा यात्रा रोकने का प्रयास हुआ, हमले हुये और पथराव हुआ। अनेक घटनाएँ तो स्थानीय प्रशासन और वयोवृद्ध लोगों के समझाने से पुलिस के रिकार्ड में नहीं आईं। लेकिन नौ स्थानों पर ऐसी बड़ी घटनाएँ हुईं जिनमें दंगे हुये । तोड़फोड़ हुई, पुलिस और प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा। इन सभी घटनाओं के पीछे मुस्लिम कटरपंथी समूहों का ही हाथ था। देश के अन्य भागों में जो प्रमुख घटनाएँ घटीं इनमें 15 अगस्त 2024 को गुजरात के सुरेंद्र नगर क्षेत्र अंतर्गत सांगानी ग्राम में, 14 अगस्त 2024 को तमिलनाड के कोयंबटूर में, 15 एवं 18 अगस्त 2023 को गुजरात के आनंद क्षेत्र अंतर्गत समरखा में, 17 अगस्त 2023 को हरियाणा के करनाल में,10 अगस्त 2022 को उत्तर प्रदेश के हरदोई में, इस घटना में पुलिस पर भी पथराव हुआ । 15 अगस्त 2022 को उत्तर प्रदेश के बदायूँ में एक मदरसे के इमाम रिजवान पर कट्टरपंथियों ने इसलिये हमला बोला कि इमाम ने स्वतंत्रता दिवस पर मदरसे में तिरंगा फहराने का प्रयास किया था । कट्टरपंथियों ने न केवल तिरंगा उतार कर अपमान किया अपितु इमाम रिजवान की पिटाई भी की । 25 जनवरी 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन दो छात्रों के विरुद्ध कार्रवाई की जो विश्वविद्यालय परिसर में तिरंगा लेकर घूम रहे थे । इन सभी घटनाओं के आरोपियों के बचाव में जिस शीघ्रता से कुछ संगठन और व्यक्ति सामने आये उससे इस संभावना को नकारा नहीं जा कि आरोपियों ने बचाव की रणननीति बनाकर ही उपद्रव किया था।
मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा राष्ट्रीय यात्राओं पर हमले की घटनाएँ भले कम हों लेकिन सनातन परंपरा के मान विन्दुओं और शोभा यात्राओं पर लगातार हमले हुये हैं। इन हमलों में तब से और तेजी देखी जा रही है जब से प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने भारत का विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने के लिये वर्ष 2047 का लक्ष्य निर्धारित किया है । भारत में कुछ कट्टरपंथी समूह अशांति और अस्थिरता पैदा करके भारत का रूपांतरण करने का षड्यंत्र सदैव करते रहे हैं । सनातनी परंपरा के त्यौहारों पर पथराव, पाकिस्तान के झंडे लहराना, आतंकवादियों के समर्थन में जुलूस निकलना, उनकी वर्षी मनाना,भारत के टुकड़े होने के नारे लगाना इसके उदाहरण हैं। इन कट्टरपंथियों को अब भारत की प्रगति अवरुद्ध करने का कुचक्र करने वाली अंतरराष्ट्रीय शक्तियों का साथ भी मिल गया है । इससे इनका प्रभाव राजनीति में भी बढ़ा है और न्यायालयीन प्रक्रिया में भी । यदि बहुत पुरानी बात छोड़ दें और केवल तीन वर्ष के आँकड़े देखें तो सनातन परंपराओं के आयोजन कांवड़ यात्रा गणेशोत्सव, दुर्गा उत्सव और दशहरे पर पथराव की सौ से अधिक घटनाएँ घटीं हैं। ये किसी क्षेत्र विशेष की घटनाएँ नहीं हैं अपितु पूरे देश में घटीं हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर बंगाल तक और दिल्ली से लेकर केरल तक भारत के अधिकांश प्रदेशों में घटीं हैं और दर्जन भर से अधिक बलिदान हुये । लूट,हिंसा और क्रूरता की जो मानसिकता लेकर मध्य एशिया के हमलावर भारत आये थे वह मानसिकता सल्तनतकाल में भी बनी रही । सनातन धार्मिक स्थलों के विध्वंस और परंपराओं के दमन से भारत का इतिहास भरा है । स्वतंत्रता एवं भारत विभाजन के बाद भी यह क्रम कभी रुका नहीं। देश का कोई प्राँत, कोई वर्ष ऐसा नहीं बीता जब मुस्लिम कट्टरपंथियों ने कहीं मंदिर को खंडित न किया हो अथवा शोभा यात्रा पर पथराव न किया हो । सल्तनत काल में सनातनियों की हत्या करने में जिस क्रूरता का विवरण मिलता है वही क्रूरता कट्टरपंथियों के मन मस्तिष्क में आज भी देखी जा रही है । इसका उदाहरण कासगंज के चंदन गुप्ता की हत्या तो है ही इसके साथ जैसी बहराइच में रामगोपाल मिश्रा और दिल्ली दंगों में अंकित शर्मा की हत्या के बाद शवों पर चोटों के जैसे निशान देखे गये, यह विवरण रोंगटे खड़े कर देने वाले है। इतने युग बीत जाने के बाद भी न तो क्रूरता में कोई अंतर आया, और न गिरोहबंद हिंसा में। और जिस प्रकार एनजीओ और प्रभावी चेहरों की सक्रियता कासगंज के बलिदानी चंदन गुप्ता प्रकरण में देखी गई वैसे ही सक्रियता बहराइच के राम गोपाल मिश्रा की हत्या के आरोपियों को बचाने में देखी गई। बहराइच की घटना अक्टूबर 2024 की है । दुर्गा विसर्जन शोभा यात्रा निकल रही थी । महराजगंज कस्बे में इस यात्रा को रोकने का प्रयास हुआ। घटना के बाद जाँच में जो परिस्थिति सामने आई उससे संकेत मिलता है कि दंगे की तैयारी पहले से कर ली गई थी । जैसे ही विसर्जन यात्रा महराजगंज पहुँची, उसे अब्दुल हमीद, सबलू, सरफराज व फहीम आदि ने रोकने का प्रयास किया। लेकिन यात्रा नहीं रुकी, यात्रा आगे बढ़ने लगी । सबसे आगे भगवा ध्वज लाये युवा राम गोपाल मिश्रा चल रहे थे । आसपास की छतों से पथराव होने लगा । पलक झपकते ही सैकड़ों कट्टरपंथी मुसलमानों की भी॓ड़ एकत्र हो गई । युवक राम गोपाल को पकड़कर एक मकान में ले जाया गया वहाँ क्रूरता पूर्वक हत्या की गई। मीडिया में आये विवरण के अनुसार शरीर का ऐसा कोई अंग नहीं जहाँ चोट न लगी हो । इसके साथ पूरे क्षेत्र में मारपीट और तोड़ फोड़ आरंभ हुई जो अगले दिन तक जारी रही । उपद्रव पूरी तैयारी से था, छतों पर पत्थर पहले से एकत्र थे । बहराइच की हिंसा भी कितनी योजना पूर्वक थी इसकी झलक इस दंगे के बाद की घटनाओं में दिख रही है । आरोपियों को बचाने केलिये जिला न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक सक्रियता देखी गई। शनिवार के अवकाश के दिन भी अदालत को दस्तक दी गई। कुछ ऐसे एनजीओ भी सक्रिय हुये जिन्होने यह प्रचारित करने का प्रयास किया कि उपद्रव डीजे को लेकर हुआ और राम गोपाल स्वयं मकान में घुसा था । भला कोई विचार कर सकता है कि शोभा यात्रा में भगवा ध्वज लेकर आगे चल रहा युवक अपनी यात्रा छोड़कर किसी मकान में घुसेगा? इस प्रकरण में भी अब 31 गिरफ्तारियाँ हो चुकीं हैं। लेकिन उनके बचाव केलिये सक्रियता से जो चेहरे सामने आये हैं इनके तार दिल्ली के दंगों और भारत माता के टुकड़े होने का नारा लगाने वालों जाते दिख रहे हैं।