चला लक्ष्मीश्चला: प्राणाश्चले जीवितमन्दिरे |
चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चल: ||
यहां आचार्य चाणक्य धर्म-चर्चा करते हुए कहते हैं कि लक्ष्मी चंचल है, प्राण, जीवन, शरीर सब कुछ चंचल और नाशवान है | संसार में केवल धर्म ही निश्चल है |
अभिप्राय यह है कि लक्ष्मी-धन-संपत्ति सब चंचल हैं, ये कभी एक के पास रहती हैं, तो कभी दूसरे के पास चली जाती हैं | इनका विश्वास नहीं करना चाहिए और न ही इन पर घमंड करना चाहिये | प्राण, जीवन, शरीर और यह सारा संसार भी सदा नहीं रहता | ये सब एक-न-एक दिन अवश्य नष्ट हो जाते हैं | संसार में केवल अकेला धर्म ही ऐसी चीज है, जो कभी नष्ट नहीं होता | यही व्यक्ति का सच्चा साथी हैं , सबसे बड़ी सम्पत्ति हैं, जो जीवन में भी काम आता है तथा जीवन के के बाद भी | अत: इसका सदा संचय करना चाहिए | धन-संपत्ति, प्राण, शरीर आदि का मोह अधिक नहीं करना चाहिए |