चमोली. भगवान विष्णु के पांचवे अवतार हैं भगवान नृसिंह. विष्णु के आधे सिंह और आधे विष्णु अवतार की कहानी विष्णु के अनन्य भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है. जोशीमठ में स्थित भगवान नृसिंह का मंदिर गंधमादन पर्वत पर स्थित है. भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार को उग्र माना जाता है और दुख, दर्द, शत्रु बाधा के नाश के लिए भगवान विष्णु के इस अवतार की पूजा की जाती है.
उत्तराखंड के चमोली जनपद के जोशीमठ क्षेत्र में भगवान विष्णु नृसिंह अवतार में विराजमान हैं. नृसिंह अवतार में विष्णु के शरीर का आधा भाग सिंह यानि शेर रूप में और आधा मानव रूप में है, भगवान विष्णु के यही चौथे अवतार हैं. इसी मंदिर में भगवान बद्रीनारायण नृसिंह के साथ उद्धव और कुबेर के विग्रह भी स्थापित हैं.
क्या है भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की वजह
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने यह अवतार हिरण्यकश्यप के संहार और भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए धारण किया था, लेकिन इनके इस अवतार की कथा केवल इतनी नहीं है. कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था. अपने पुत्र की विष्णु के प्रति आस्था देख हिरण्यकश्यप बड़ा क्रोधित हुआ उसने प्रहलाद को मारने के अनेक प्रयत्न किए कभी प्रह्लाद को बांधकर नदी में फेंका तो, कभी अपनी बहन होलिका के साथ जलती आग में बिठाया. मगर प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ. इस बात से अत्यंत क्रोधित हिरण्यकश्यप ने जब अपने हाथों प्रह्लाद का वध करना चाहा तो, भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लिया और अन्य कश्यप का वध कर दिया. कहते हैं कि जोशीमठ में स्थित नरसिंह मंदिर का संबंध ललितादित्य मुक्तापीड़ा से जुड़ा है, वहीं कुछ लोग इस मंदिर के निर्माण के पीछे आदि गुरु शंकराचार्य को भी मानते हैं.
मंदिर की कब हुई स्थापना?
बारह हजार वर्षों से भी पुराने नरसिंह मंदिर की स्थापना के संदर्भ में कई मत हैं कुछ लोगों का मानना है कि यहां पर मूर्ति स्वयंभू यानी स्वयं प्रकट हुई थी, जिसे बाद में स्थापित किया गया था. एक और मत के अनुसार आठवीं शताब्दी में राज तरंगिणी के अनुसार राजा ललित आदित्य मुक्तापीड़ा द्वारा अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान नरसिंह मंदिर का निर्माण उम्र सिंह की पूजा के लिए किया था. तीसरे मत के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य जी ने स्वयं भगवान विष्णु के शालिग्राम की स्थापना की थी. मंदिर में स्थापित भगवान नरसिंह की मूर्ति शालिग्राम पत्थर पर आज भी निर्मित दिखाई देती है. किंतु इन सबके बीच एक प्रश्न यह भी सोचने योग्य हो जाता है कि क्या अगम्य हो जायेगा बद्री विशाल का स्थान?
क्या होगा अगर नरसिंह भगवान की पूजा खंडित हो जाएगी?
मंदिर के पुजारी के अनुसार भगवान नरसिंह की मूर्ति 10 इंच की है, इसमें वह एक कमल पर विराजे हैं, भगवान नरसिंह की बाईं भुजा हर बीते वक्त के साथ घिस रही है. भुजा के घिसने की गति को संसार में निहित पाप से भी जोड़ा जाता है. केदारखंड के सनत कुमार संहिता के अनुसार जिस दिन भुजा खंडित हो जाएगी , उस दिन विष्णुप्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर नर और नारायण पर्वत जिन्हें जय और विजय पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, ढहकर एक हो जाएंगे और बद्रीनाथ का मार्ग सदा के लिए अगम्य हो जाएगा. तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बद्री मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के दर्शन होंगे.
बद्रीनाथ और नृसिंह मंदिर का संबंध
जब सर्दियों में मुख्य बद्रीनाथ मंदिर बंद हो जाता है तो बद्रीनाथ के पुजारी नरसिंह मंदिर में चले आते हैं और यहां बद्रीनाथ की पूजा जारी रखते हैं केंद्रीय नरसिम्हा मूर्ति के साथ मंदिर में बद्रीनाथ की एक मूर्ति भी है अतः यह बद्रीनाथ का शीतकालीन प्रवास भी है.
नृसिंह मंदिर कैसे पहुंचे
नजदीकी रेलवे स्टेशन – ऋषिकेश (156 किमी)
नजदीकी एयरपोर्ट – जोलीग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून (272 किमी)
जोशीमठ में स्थित भगवान विष्णु के नृसिंह मंदिर तक का रास्ता बहुत सरल है. आप देहरादून, ऋषिकेश या हरिद्वार से कैब लेकर जोशीमठ पहुंचकर इस मंदिर के दर्शन कर सकते हैं. इसके अलावा आप यदि रेल अथवा हवाई सफर कर पहुंचना चाहते हैं, तो रेल से आप देहरादून या ऋषिकेश तक ही यात्रा कर पाएंगे वहीँ हवाई सफर देहरादून जोलीग्रांट हवाई अड्डे तक ही सिमित है. यहाँ से आपको आराम से कैब या बस सुविधा उपलब्ध हो जाएगी.
