श्रीरंगम, 20 दिसंबर: तमिलनाडु के श्रीरंगम स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर में शनिवार से 21 दिवसीय 'तिरुपावैयाध्यायन उत्सव' (वैकुंठ एकादशी महोत्सव) का विधि-विधान से शुभारंभ हो गया। मार्गशीर्ष माह के इस पावन अवसर पर मंदिर परिसर भगवान विष्णु के जयकारों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की ध्वनि से गूंज उठा है।
उत्सव का मुख्य आकर्षण और कार्यक्रम
यह भव्य उत्सव दो चरणों— 'पगलपट्ट' और 'रप्पपट्ट' के रूप में मनाया जा रहा है। उत्सव के पहले दिन भगवान नामपेरुमाल ने अत्यंत दुर्लभ आभूषणों (पांडियन कोन्डई, मुथु चरं आदि) से सुसज्जित होकर भक्तों को दर्शन दिए।
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स्वर्ग द्वार (परमपथवासल) उद्घाटन: इस महोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण क्षण 30 दिसंबर की सुबह लगभग 4:30 बजे आएगा, जब 'स्वर्ग द्वार' खोला जाएगा। मान्यता है कि इस दिन द्वार से गुजरने वाले भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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मुथंगी सेवा: उत्सव के दौरान लगातार 20 दिनों तक मूलवर रंगनाथर भक्तों को विशेष 'मुथंगी सेवा' (मोतियों की पोशाक) में दर्शन देंगे।
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प्रमुख आयोजन: * 5 जनवरी: कैताल सेवा
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6 जनवरी: तिरुमंगल मंजन वेदुपरी (भगवान स्वर्ण घोड़े पर विराजमान होंगे)
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9 जनवरी: नाम्मालवार मोक्ष के साथ उत्सव का समापन।
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18 प्रकार के वाद्य यंत्र और दिव्य गायन
उत्सव की दिव्यता को बढ़ाने के लिए मंदिर में 18 प्रकार के पारंपरिक वाद्य यंत्र जैसे नागासुरम, मृदंगम, शंख और वीरवंडी का प्रयोग किया जा रहा है। साथ ही, प्रसिद्ध 'चार हजार दिव्यप्रबंध' गीतों का सस्वर गायन भी किया जा रहा है, जो वातावरण को पूरी तरह आध्यात्मिक बना रहा है।
सुरक्षा और भव्य सजावट
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने कड़े इंतजाम किए हैं:
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सजावट: मंदिर के भव्य राजगोपुर सहित सभी 21 गोपुरमों और सात प्राकारों को आकर्षक विद्युत रोशनी से सजाया गया है।
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सुरक्षा: तमिलनाडु पुलिस के हजारों जवान तैनात हैं और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अतिरिक्त बसें चलाई जा रही हैं।
मान्यता है कि श्रीरंगम का यह मंदिर साक्षात वैकुंठ के समान है, यही कारण है कि यहाँ देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु इस 'मोक्ष उत्सव' का हिस्सा बनने पहुँच रहे हैं।
