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जीवन रंग और उत्सव से भरा हुआ राजस्थान की कला और संस्कृति

Date : 27-Jan-2023

 राजस्थान का इतिहास

राजस्थान का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से प्रारंभ होता है जो की आज से इसा पूर्व 3000 से 1000 के बीच माना जाता है जब सिंधु घाटी सभ्यता अस्तित्व में थी 12वीं सदी तक राजस्थान के ज्यादातर भाग पर गुर्जरों का अधिपत्य रहा है। गुजरात तथा राजस्थान का अधिकांश भाग को गुर्जरो से रक्षित राज्य के नाम से जाना जाता था।गुर्जर आदिवासी ने 300 सालों तक पूरे उत्तरी-भारत को अरब के लोगो से बचाया था।]बाद में जब राजपूतों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना आधिपत्य जमा लिया तो यह क्षेत्र ब्रिटिशकाल में राजपूताना के नाम से जाना जाने लगा |उसके बाद 12वीं शताब्दी में मेवाड़ पर गहलोतों ने शासन किया। मेवाड़ के अलावा जो अन्य प्रमुख रियासतेंभरतपुर, जयपुर, बूँदी, मारवाड़, कोटा, और अलवर है। इन सभी रियासतों ने 1818 मे अंग्रेजो की संधि स्वीकार कर ली जिसमें राजाओं के हितों की रक्षा की बात की गयी थी लेकिन आम जनता इसको सहमत नहीं थी |

 राजस्थान की कला और संस्कृति 

 

त्यौहार राजस्थान की कला और संस्कृति  की समृद्धि को सुशोभित करते हैं, जिससे राजस्थानियों का जीवन रंग और उत्सव से भरा हुआ दिखाई पड़ता है। भारत के सभी मुख्य त्योहारों जैसे दिवाली, होली, और जन्माष्टमी को राजस्थान में भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता हैं। सभी राजस्थानी मेलों और त्योहारों में राज्य की पारंपरिक परिधान, लोक गीत, लोक नृत्य और विभिन्न आकर्षक प्रतियोगिताएं प्रमुखता से दिखाई जाती हैं।विशेषकर अगर रेगिस्तानी त्यौहार जो राजस्थानी संस्कृति के लिए बहुत अहम् हैं जिसमे राजस्थानी संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती है। त्योहार समाप्त होने के बाद राजस्थान में कई पारंपरिक मेलों का आयोजन किया जाता है। राज्य के त्योहार पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं और बड़ी संख्या में देसी और विदेशी पर्यटक यहाँ की संस्कृति को जानने आते है |

मेले का आयोजन भी मस्ती के साथ और मस्ती के लिए किया जाता है। सपेरों, कठपुतलियों, कलाबाजों और कलाकारों मेले में पर्यटकों का मनोरंजन करते है | ऊंट राजस्थान में देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होते है क्युकी मेले में कुछ अद्भुत गेम ऊंटों द्वारा ही किए जाते हैं अन्य प्रमुख आयोजनों में मूंछें और पगड़ी बांधने की प्रतियोगिताएं होती हैं |

 राजस्थान के लोकनृत्य

राजस्थान में विभिन्न प्रकार के लोकनृत्य देखने को मिलते है जो राजस्थान की कला और संस्कृति को दर्शाते है |यहाँ पर अलग अलग जगहों अलग अलग नृत्य प्रचलित है यह नृत्य मानवीय अभिव्यक्ति का अद्भुत प्र्दशन है राजस्थान के लोकनृत्यों में शास्त्रीय नृत्यों के जैसे ताल , लय, व्याकरण ने नियमो का सख्ती से पालन नहीं किया जाता है इनको हम देसी नृत्य भी बोल सकते है | राजस्थान के लोकनृत्यों में यहाँ के प्रकृतिक वातावरण , नदिया यहाँ के वनो , मरुस्थलों , एवं जलवायु से प्रभावित मानव जीवन का चित्रण दिखाई पड़ता है एवं प्रदेश की भौगोलिक परिस्तिथि एवं सामाजिक बंधनो का भी असर दिखाई देता है |

राजस्थान के लोकनृत्यों की काफी लम्बी लिस्ट है जिसमे छेत्रीय नृत्य इस प्रकार है घूमर नृत्य , ढोल नृत्य , झूमर नृत्य ,चंग नृत्य , घुड़ला नृत्य , अग्नि नृत्य,गरबा नृत्य,सूकर नृत्य ,बिंदौरी नृत्य,नाहर नृत्य , खारी नृत्य, गैर नृत्य ,नाहर नृत्य , खारी नृत्य ,भैरव नृत्य ,चरकूला नृत्य ,हिंडोला नृत्य, आदि प्रमुख है | इसके अलावा व्यवसायिक लोकनृत्यों में भवाई नृत्य, तेरहताली नृत्य,कच्छी घोड़ी नृत्य आदि है | इसके अलावा भी राजस्थान के जातीय और जनजातीय नृत्यों की भी काफी लम्बी लिस्ट है |
राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध नृत्य घूमर नृत्य है जो मारवाड़ छेत्र में स्त्रियो द्वारा किया जाता है यह राजस्थान का राजकीय लोकनृत्य नृत्य है |

राजस्थान का संगीत

राजस्थान की कला और संस्कृति में संगीत भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्युकी राजस्थान में लोकसंगीत की एक पुरानी एवं लम्बी परम्परा रही है यहाँ के ज्यादातर लोकगीत धार्मिक रीति-रिवाजों, त्योहारों, मेलों और देवताओं को समर्पित होते है
राजस्थान में संगीत अलग-अलग जातियों के हिसाब से अलग अलग होता है ,राजस्थान लोकसंगीत में जातियां की बात करे तो इसमें लांगा ,सपेरा , मांगणीयरभोपा और जोगी आदि आती है | यहां संगीत की दो परम्परागत कक्षाएं आती है जिसमे एक लांगा और और दूसरी मांगणीयर है | राजस्थानी पारम्परिक संगीत में महिलाओं का गाना भी काफी प्रसिद्ध है जिसको (पणीहारी) के नाम से जाना जाता है। इनके अतिरिक्त अलग अलग जातियों द्वारा अलग-अलग तरीकों से गायन किया जाता हैं।

जिसमे सपेरा बीन बजाकर सांप को नचाता दिखाई देता है तो भोपा फड़ में गायन करता नजर आता है। राजस्थान के संगीत लोकदेवाताओ पर भी काफी केंद्रित होते है जिसमें प्रमुख रूप से पाबूजी ,बाबा रामदेव जी ,तेजाजी जैसे लोकदेवाताओं पर भजन गाये जाते है।राजस्थान के प्रमुख संगीत क्षेत्र की बात करे तो जोधपुर ,जयपुर ,जैसलमेर तथा उदयपुर आदि हैं।

राजस्थानी लोगो की वेशभूसा

राजस्थानी लोग अपने विशेष पहनावे के लिए जाने जाते है | यहाँ के पारम्परिक लोगो को रंगीन कपड़े, पगड़ी और साड़ियों जो पत्थरों और घृंगुओं से सुशोभित होती है पहनना पसंद होता है | राजस्थान में कई प्रकार की जाति एवं जनजातीया निवास करती है इसलिए छेत्र के अनुसार इनका पहनावा भी थोड़ा अलग होता है राजस्थान के ग्रामीण छेत्रो में रहने वाले लोगो में औरतें-घाघरा कुर्ती तथा पुरुष- धोती,कुर्ता पेंट एवं जोधपुरी सफायाजयपुरी पगड़ीके रूप में जाने वाली पगड़ी पहनते हैं। जो उनकी वेशभूसा एवं पहचान प्रतीक है। अनग्रक्ष, कपास से बने एक फ्रॉक प्रकार परिधान ऊपर के शरीर को कवर करता है और निचला हिस्सा धोती या पजामा के साथ लिपटा जाता है। राजस्थानी महिलाएं आभूषण की शौकीन होती हैं और वे अपने कपड़े को चंकी चांदी और लाख के गेहने के साथ पहनती है |

 राजस्थान का खाना

 

राजस्थान की कला और संस्कृति में अगर बात खाने की करे तो यह एक विशेष स्थान रखता है |
राजस्थानी खाना मुख्य रूप से शाकाहारी भोजन होता है क्युकी राजस्थान में शाकहारी लोगो की संख्या सबसे अधिक है | राजस्थानी खाना पूरी दुनिया में अपने सवाद के लिए जाना जाता है |अगर देखा जाए तो राजस्थान के लोग मसालेदार खाना ज्यादा खाते हैं इसका कारण है राजस्थानी पारम्परिक खाने में उस समय हरी सब्जियों की कम उपलव्धता के कारण इनका प्रयोग कम ही हुआ है राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितयो की वजह से राजस्थानी खाने में बेसन, दाल, मठा, दही, सूखे मसाले, सूखे मेवे, घी, दूध का अधिक से अधिक प्रयोग होता है। हालाँकि राजस्थानी मिठाईयां भी काफी अलग तरह से बनायीं जाती है |

राजस्थानी लोकप्रिय खानो में बाजरे की रोटी और लहसुन की चटनी , दाल-बाटी चूरमा, भुजिया और केर ,सान्गरी की सब्जी ,हल्दी का साग ,गट्टे की सब्जी, पंचकूट, आदि शामिल है |
राजस्थानी मिठाइयों की बात करे तो बीकानेरी रसगुल्ला, मावा मालपुआ ,घेवर, फीणी, तिल के लढू, लापसी
बालूशाही आदि प्रमुख है |

 राजस्थान की प्रमुख जनजातीया

 

 

ऐसे देखा जाये तो राजस्थान में जनजातियों की संख्या ज्यादा नहीं है राजस्थान की कुल जनसंख्या का 12 % हिस्सा ही जनजातियों का है इसमें भी राजस्थान की दो प्रमुख आदिवसीय समुदाय भील और मीणा राजस्थान में बड़ी संख्या में निवास करते है | भील और मीणा की जनसंख्या राजस्थान के विंध्य, अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बड़ी संख्या में है। राजस्थान की जनजातीया अपने आप में एक दूसरे से काफी अलग होती है | अपनी आजीविका चलाने के लिए राजस्थान की जनजातीय मुख्य रूप से खेती पर निर्भर होती है | राजस्थान की जनजातियों में भील ,मीणा , सहारिया, गरासिया ,गादिया लोहार ,सांसी ,डामोर , कथोरी ,कंजर आदि प्रमुख है |
राजस्थान की अनुसूचित जनजाति में भील और गादिया लोहार मुख्य रूप से आती है | मीणा जनजाति को सिंधु घाटी सभ्यता के लिए भी जाना जाता है |

ऐसे देखा जाये तो राजस्थान में जनजातियों की संख्या ज्यादा नहीं है राजस्थान की कुल जनसंख्या का 12 % हिस्सा ही जनजातियों का है इसमें भी राजस्थान की दो प्रमुख आदिवसीय समुदाय भील और मीणा राजस्थान में बड़ी संख्या में निवास करते है | भील और मीणा की जनसंख्या राजस्थान के विंध्य, अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बड़ी संख्या में है। राजस्थान की जनजातीया अपने आप में एक दूसरे से काफी अलग होती है | अपनी आजीविका चलाने के लिए राजस्थान की जनजातीय मुख्य रूप से खेती पर निर्भर होती है | राजस्थान की जनजातियों में भील ,मीणा , सहारिया, गरासिया ,गादिया लोहार ,सांसी ,डामोर , कथोरी ,कंजर आदि प्रमुख है |

 

 

 

 
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