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महामाया मंदिर का इतिहास

Date : 30-Jan-2023

यहां आज भी प्राचीन पद्धति से जलती है ज्योति कलश

पुरानी बस्ती स्थित मां महामाया मंदिर का इतिहास 1400 साल पुराना माना जाता है। इसलिए इस मंदिर में आज भी प्राचीन परंपरा जीवंत है। इस मंदिर की परंपरा है कि यहां की प्रधान ज्योत वैदिक मंत्रोत्चार के बीच चकमक पत्थर के टूकड़ों को रगड़ने से उठी चिंगारी से प्रज्जवलित की जाती है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की प्राचीन महामाया मंदिर बेहद ही चमत्कारिक मंदिर माना जाता है। तांत्रिक पद्धति से बने इस मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी भक्त पहुंचते हैं। वहीं, नवरात्र में सच्चे मन से मांगी गई मन्नत तत्काल पूरी हो जाती है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार हैहयवंशी राजाओं ने छत्तीसगढ़ में छत्तीस किले बनवाए और हर किले की शुरुआत में मां महामाया के मंदिर बनवाए। मां के इन छत्तीसगढ़ों में एक गढ़ हैं, रायपुर का महामाया मंदिर, जहां महालक्ष्मी के रुप में दर्शन देती हैं मां महामाया और

मां ने खुद बताई थी मंदिर की जगह, राजा की भूल से बदल गया मूर्ति का स्थान

रायपुरपुरानी बस्ती महामाया मंदिर में मां महामाया का दरबार कई मायनों में खास है। एक तो इस बात को लेकर कि गर्भगृह में मां की प्रतिमा दरवाजे की सीध में नहीं दिखती। इसे लेकर कई किवदंतियां हैं। ऐसी ही एक किंवदंती के मुताबिक एक बार राजा मोरध्वज अपनी रानी कुमुद्धती देवी के साथ राज्य भ्रमण पर निकले शाम होने पर राजा अपनी सेना के साथ खारून नदी के तट पर रूक गए.जब रानी अपनी दासियों के साथ स्नान करने नदी पहुंची तो उन्होने देखा कि एक पत्थर का टिला पानी में तैर रही है तीन विशालकाय सांप फन काढ़े उस टिले की रक्षा कर रहे थे..ये देखकर रानी और दासियां डर गई और चिल्लाते हुए पड़ाव में लौट आईं..जब राजा मोरध्वज को ये बात पता चली तो उन्होने अपने राज ज्योतिषों से विचार करवाया.ज्योतिषों ने उन्हे बताया कि ये कोई टिला नहीं बल्कि देवी की मूर्ति है।

राजा ने पूरे विधि विधान से पूजा-पाठ कर मूर्ति को बाहर निकाला.जब मूर्ति नदी से बाहर निकली तो लोग ये देखकर आश्चर्य हो गए कि ये कोई साधारण मूर्ति नहीं बल्कि सिंह पर खड़ी हुई मां महिषासुरमर्दिनी की अष्टभुजी भगवती की मूर्ति है।इसके बारे में यह भी कहा जाता है कि स्वयं मां महामाया ने ही राजा से कहा कि मुझे कंधे पर उठाकर मंदिर तक ले जाया जाए और मंदिर में मेरी स्थापना कराई जाए.राजा ने अपने पंडितों, आचार्यों व ज्योतिषियों से विचार विमर्श किया। सभी ने सलाह दी कि भगवती माँ महामाया की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए। रास्ते में प्रतिमा को कहीं रखें नहीं। अगर प्रतिमा को कहीं रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगी। राजा ने मंदिर पहुंचने तक प्रतिमा को कहीं नहीं रखा लेकिन मंदिर के गर्भगृह में पहुंचने के बाद वे मां की बात भूल गए और जहां स्थापित किया जाना था, उसके पहले ही एक चबूतरे पर रख दिया। प्रतिमा वहीं स्थापित हो गई। राजा ने प्रतिमा को उठाकर निर्धारित जगह पर रखने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। प्रतिमा को रखने के लिए जो जगह बनाई गई थी वह कुछ ऊंचा स्थान था। इसी वजह से मां की प्रतिमा चौखट से तिरछी दिखाई पड़ती है। मंदिर को तैयार करवाकर देवी की भी स्थापना करवाई | शक्तिपीठ महामाया मंदिर की दैवीय शक्ति का अहसास आपको मंदिर में जाते ही हो जाता है. मंदिर के समृद्ध पौराणिक इतिहास और मान्यताओं के साथ ही इसकी बनावट की भव्यता और कारीगरी भी बेजोड़ है. तंत्र-मंत्र साधना के लिए भी राजधानी के इस मंदिर का प्रदेश के शक्तिपीठों में विशेष स्थान है। मंदिर प्रांगण में एक यज्ञ कुंड है. मंदिर के दूसरे हिस्से की तरह ही इस कुंड का भी अपना इतिहास है. ऐसी मान्यता है कि कई साल पहले इस कुंड की जगह पर ही मंदिर के पुजारी के ऊपर बिजली गिर गई थी |लेकिन पुजारी को कुछ नहीं हुआ. लोग इसे मां महामाया की कृपा मानते है।

देश के दूसरे जागृत देवी स्थलों की तरह महामाया मंदिर के साथ भी चमत्कारों की कई बातें जुड़ी हुई हैं । यहां विशेष मौकों पर कई बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जिन्हें सामान्य अर्थों में अलौकिक कहा जा सकता है ।

 

 

 

 

 

एक खिड़की से मां दिखती हैं दूसरी से नहीं

 


जानकारों के मुताबिक मंदिर का निर्माण राजा मोरध्वज ने तांत्रिक विधि से करवाया था। इसकी बनावट से भी कई रहस्य जुड़े हुए हैं। मंदिर के गर्भगृह के बाहरी हिस्से में दो खिड़कियां एक सीध पर हैं। सामान्यतः दोनों खिड़कियों से मां की प्रतिमा की झलक नजर आनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता। दाईं तरफ की खिड़की से मां की प्रतिमा का कुछ हिस्सा नजर आता है परंतु बाईं तरफ नहीं।

 

प्रमाणिक है मंदिर से जुड़ा इतिहास

मंदिर से जुड़ा इतिहास प्रमाणिक है। इस पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने कई रिसर्च किए हैं। शासन के पुरातत्व विभाग ने मंदिर के इतिहास को प्रमाणिक किया है। मंदिर के इतिहास पर सबसे पहले 1977 में महामाया महत्तम नामक किताब लिखी गई। इसके बाद मंदिर ट्रस्ट ने 1996 में इसका संशोधिक अंक प्रकाशित करवाया। 2012 में मंदिर की ओर से प्रकाशित की गई रायपुर का वैभव श्री महामाया देवी मंदिर को इतिहासकारों ने प्रमाणिक किया है। सभी किवदंतियों और जनश्रुति का उल्लेख प्रमाणिक किताबों में मिलता है।

 

 

 

 

 

मुस्लिम परिवारों की जुड़ी आस्था

 


मंदिर में हर साल नवरात्र पर आस्था के ज्योत जगमगाते हैं। कई ज्योत मुस्लिम परिवारों के भी हैं। मंदिर के पुजारी पं. शुक्ला बताते हैं कि मंदिर से मुस्लिम परिवारों की आस्था भी जुड़ी हुई हैं। मंदिर में इस साल 9403 मनोकामना ज्योत प्रज्जवलित किए गए हैं। ज्योत जलवाने वालों में देश-प्रदेश के साथ ही अमेरिका, लंदन, जापान और चीन के लोग भी शामिल हैं।

 

गर्भगृह तक पहुंचती हैं सूर्य की किरणें

 


माता के मंदिर के बाहरी हिस्से में सम्लेश्वरी देवी का भी मंदिर है। मंदिर के पुजारी पं. मनोज शुक्ला ने बताया कि सूर्योदय के समय किरणें सम्लेश्वरी माता के गर्भगृह तक पहुंचती हैं। सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें मां महामाया के गर्भगृह में उनके चरणों को स्पर्श करती हैं। मंदिर की डिजाइन से यह अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है कि प्रतिमा तक सूर्य की किरणें पहुंचती कैसे होंगी। उन्होंने बताया कि मंदिर के गुंबद के आकार में श्री यंत्र है। ऐसे में पौराणिक मान्यता है कि मंदिर के साथ दिव्य शक्तियां जुड़ी हुई हैं। तांत्रिकीय पद्धति से बनने वाले मंदिरों में इस तरह की विशेषता पाई जाती है।

 

 
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