ये अक्टूबर 2018 की बात है जब काम से थककर मन कर रहा था कि एक रोड ट्रिप किया जाये जिससे कि आत्मा को भी खुराक मिल सके जैसी कि शरीर को भोजन के रूप में हम रोज देते हैं । समस्या ये भी थी कि केवल वीकेंड का समय था यानि बमुश्किल दो दिन का और इसमें दो मित्र भी साथ थे । पहले हमारा प्लान बाइक राइड का था लेकिन बाइक से हम केवल रिषीकेश तक ही आना जाना कर सकते थे दो दिन में क्योंकि रात को बाइक चलाना दिक्कत भरा होता है जबकि कार में ऐसा नही होता तो दो दिन का भरपूर सदुपयोग करने के लिये हमने गाडी से इस यात्रा को पूरा करना सोचा । गाडी से करने पर हम दो दिन के साथ दो रात का भी सदुपयोग कर सकते थे । गाडी को रात में ले जाने पर जाम और शहरी भीडभाड से बचने का भी मौका रहता है ।
मेरी अपनी गाडी को ले जाने का विचार था लेकिन इतने कसे हुए समय में दो रात गाडी यदि मै चलाता तो फिर दिन में सोना होता जिसमें घूमने का मजा ही नही आता इसलिये गाडी किराये पर लेने की सोची गयी । काफी रिसर्च करने , रिव्यूज और कुछ रेफरेंस के बाद Savaari car rentals से गाडी बुक कर दी गयी । दोनो साथी मित्र ने अपनी मोटरसाईकिल मेरे घर पर खडी कर दी और जैसा कि तय हुआ था शाम के समय करीब 5 बजे हम मुरादनगर से निकल पडे । गाडी तय समय पर आ गयी थी और जैसा कि हमने सोचा था कि हम रात में जाम से बच जायेंगें वैसा ही हुआ । रात को देहरादून शहर में भी हमें समय नही लगा और उसके बाद तो सोये हुए पहाडो के सन्नाटे को बस हमारी गाडी में बजता हुआ संगीत ही तोड रहा था । हमारा ये निर्णय बडा सटीक साबित हुआ क्योंकि मसूरी से आगे यमुना पार करने के बाद एक जगह छोटे छोटे पत्थर गिर रहे थे और जब तक ड्राइवर को पता चलता तब तक हम निकल चुके थे । कुछ पत्थर गाडी पर गिरे पर वो काफी छोटे थे । मोटरसाईकिल पर ये हमें नुकसान पहुंचा सकते थे । दूसरा जब हम उत्तरकाशी के पास पहुंचे तो वहां पर रास्ते का निर्माण कार्य चल रहा था और हमें आधा घंटा इंतजार करना पडा । दिन में यहां पर काफी देर तक एक तरफ का ट्रैफिक पार कराया जाता है तो लंबा जाम लग जाता है ।
थोडी थोडी नींद सभी ले चुके थे और एक बंदा हमेशा चालक महोदय के साथ बात करने में व्यस्त रहता था । सुबह होने लगी थी और अलसाई सी अंगडाई लेते हुए सूर्यदेव अपनी रोशनी पहाडो के पीछे से दिखाकर सिद्ध करने लगे थे कि वो आ रहे हैं । हम गंगोत्री के बहुत नजदीक थे और बहुत खुश कि हमारे दो दिन का हम पूरा आनंद उठाने वाले हैं । सुखी टाप से हरसिल घाटी का बेहद खूबसूरत नजारा दिख रहा था वहीं हरसिल पहुंचकर हमने एक चक्कर हरसिल गांव का भी लगाया । नाश्ता भी यहीं पर किया गया और करीब 11 बजे सुबह के हम गंगोत्री पहुंच गये थे । ये हमारी पहली गंगोत्री की यात्रा तो नही थी पर गंगा माता के मंदिर पर आकर हमेंशा नया सा अनुभव होता है । गंगोत्री में हमने कुछ देर तलाश करने के बाद एक कमरा ले लिया क्योंकि यहां पर अभी काफी लोग गौमुख तपोवन ट्रैक करने के लिये आये हुए थे । चूंकि अब कुछ ही दिनो में गौमुख तपोवन यात्रा बंद हो जायेगी बर्फबारी के कारण इसलिये ज्यादा से ज्यादा लोग इस वर्ष इसे कर लेना चाहते हैं । काफी बडे बडे ग्रुप आये हुए थे । एक बार को तो हमारा भी मन किया कि चलते हैं और हमने कमरे में सामान रखने के बाद यहां पर स्थित वन विभाग के कार्यालय से वर्तमान नियमो के बारे में जानकारी ली । अभी माननीय न्यायालय के निर्णय के बाद गौमुख तपोवन के लिये प्रतिदिन की संख्या सीमित कर दी गयी है । गौमुख से आगे तपोवन जाने के लिये तो परमिशन आपको उत्तरकाशी से पहले से लेनी पडती है जबकि गंगा के उदगम गौमुख तक जाने के लिये गंगोत्री में पहले दिन पंजीकरण करवाना होता है । वन विभाग के कार्यालय से आगे दो किलोमीटर के करीब एक गेट है जहां पर परमीशन चैक होती है । वहां तक जाने के लिये कोई दिक्कत नही है और इस रास्ते में गंगोत्री का बढिया नजारा दिखता है ।
आज का दिन इस छोटी सी ट्रैकिंग के नाम कर दिया और खूब मस्ती करते , हंसते गाते हम चैकपोस्ट तक गये और वापस आये । जब हम वापस आये तो शाम ढलने ही वाली थी और नीचे गंगा माता के मंदिर में से आ रही घंटियो की आवाज ने इन शांत पहाडो में एक अलग ही धुन गुंजायमान कर दी थी । आरती का दृश्य भव्य था और गंगोत्री के बाजार में काफी रौनक थी । देशी विदेशी सैलानियो से यहां चहल पहल काफी थी । अभी सेव का सीजन जाने के कगार पर था पर हरसिल के नामी सेब यहां दिखायी दे रहे थे वो भी काफी सस्ते भावो में । चूंकि गाडी में नींद कम ही ली थी इसलिये आज शाम में जल्दी ही कमरे में जाते ही सो गये और ठंड काफी थी तो रजाइयो में दुबक कर दोबारा मुंह भी निकालने की नही सोची ।
दूसरा दिन हमारा काफी व्यस्त होने वाला था क्योंकि जो रोड ट्रिप हम सोचकर आये थे वो आज ही बढिया तरीके से होने वाली थी । सुबह 7 बजे तक हम नहा धोकर गंगोत्री से निकल लिये । आज का हमारा प्लान यहां से वापस घर जाने का ही था पर रास्तो को नापते और उन्हे महसूस करते हुए । उत्तरकाशी से थोडा पहले मनेरी पडता है और मनेरी के कृत्रिम झरने जो कि सबको सडक पर दिखता है उससे भी पहले एक जगह हम नाश्ते के लिये रूक गये । यहीं पर नीचे एक पानी की धारा आती दिखायी दी जो कि नीचे नदी में जाकर मिल रही थी । पूछने पर पता चला कि मेन रोड पर ही जो पुल हमने पार किया है वहां पर झरना है । हम कौतुहूल वश उस पुल तक गये तो देखा कि वहां तो एक बहुत सुंदर झरना है और उस झरने के नीचे एक गोल जगह में नहाने लायक जगह है । ये मनेरी के कृत्रिम झरने से सुंदर जगह थी पर जाने के लिये रास्ता झाडियो से अटा हुआ था । जैसे तैसे करके हम नीचे झरने तक पहुंचे तो मन प्रसन्न हो गया और अचंभित भी कि इतनी सुंदर जगह मुख्य मार्ग पर होकर भी कैसे लोगो की नजरो से ओझल है । यहां तो पर्यटक स्थल बनाया जा सकता है जिससे गांव के कई लोगो को रोजगार भी मिल सकता है । हमने यहां खूब समय बिताया और कुछ बढिया चित्र भी लिये । ?
यहां से आगे चलकर हमने कल रात के रास्ते की बजाय एक नये रास्ते को देखने का निर्णय लिया जो कि पुराना गंगोत्री मार्ग कहलाता है । टिहरी झील का फैलाव बहुत दूर तक है और उसी जलाशय के एक ओर नया मार्ग है तो दूसरी ओर पुराना मार्ग । ये पुराना मार्ग हमें टिहरी मुख्य झील पर ले जायेगा और वहां से हम चंबा पहुंच जायेंगें । लेकिन चंबा पहुंचने या टिहरी पहुंचने से पहले इस रास्ते का भरपूर आनंद लिया गया । धरासू से लेकर टिहरी पहुंचने तक जलाशय हमारे साथ रहता है और उसकी वजह से यहां पर खेती काफी बढिया होती है । खेतो की रौनक देखने लायक है । जगह जगह हमें गाडी रोकनी होती थी फोटो लेने के लिये क्योंकि ये आम रास्ता नही था तो यहां पर पर्यटको की कोई भीड भाड भी नही थी । एक दो लोकल गाडी ही कभी कभार मिल जाया करती थी । रास्ते में दो तीन झरने और एक जगह स्पीति लददाख जैसी संरचनाऐ भी मिली जो कि इस क्षेत्र में पहली बार देखी । मिटटी के प्राकृतिक क्षरण के कारण सैकडो वर्षो में जाकर ये संरचनाऐं बनी हैं । हर मोड पर झील के पानी के साथ लगते हुए दृश्य नया चित्रआधार प्रस्तुत करते थे । टिहरी झील को पार करना हर बार रोमांचक अनुभव होता है । जल के इस विशाल संग्रह पर बनाये गये ये पुल दूर से दिखने में इतने आकर्षक होते हैं कि इनको पृष्ठभूमि में लेकर अपने साथ कैमरा में कैद कर लेना ही असली फोटोग्राफी लगती है ।
टिहरी झील को अब भल्डगांव से आगे बने पुल से पार करना था । इसे स्यासूं पुल भी कह देते हैं । यहां से हम टिहरी बांध के मुख्य स्थल पर पहुंच गये और वहां से 1 घंटा भी नही लगा चंबा पहुंचने में । इस बीच रास्ते में हमने खूब मस्ती की । चंबा सेहमने इस बार नरेन्द्रनगर और रिषीकेश वाला रास्ता लिया रात के करीब 2 बजे वापस घर पहुंचे । दिल्ली के पास रहने का एक फायदा ये भी है कि जब भी आपकी आत्मा भूखी हो तो उसे पहाडो पर जाकर उसकी मनपसंद खुराक दी जा सकती है । केवल 2 दिन की इस यात्रा में हम 2 रात को कार की वजह से शामिल करके इतनी लम्बी यात्रा को भी आराम से कर पाये । इसमें Outstation Car Rentals का मुख्य रोल था । आरामदायक और बिना किसी दिक्कत के हम सकुशल घर पहुंच गये । पहाडो से ली गयी ताजी आक्सीजन अब एक आध महीना बिना दिक्कत पूर्ण रूप से काम करने की उर्जा देती रहेगी ।
लेखक - मनु कुमार तत्यागी