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कुचिपुड़ी गाँव – आंध्र प्रदेश का प्राचीन नृत्य ग्राम

Date : 17-Oct-2022

कुचिपुड़ी गाँव – आँध्रप्रदेश का एक ऐसा गाँव जिसने भारत के ७ प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक प्रसिद्ध नृत्य शैली को अपना नाम प्रदान किया। कुछ वर्ष पूर्व एक पत्रिका पढ़ने के दौरान मुझे यह ज्ञात हुआ कि यह आँध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित एक गाँव का नाम है। हालांकि, मेरी हैदराबाद यात्रा के दौरान मुझे कई कुचिपुड़ी नृत्य प्रदर्शन देखने का अवसर मिला था। खासकर हलीम खान द्वारा प्रदर्शित नृत्य प्रदर्शन ने मेरा मन मोह लिया था। कुचिपुड़ी गाँव के बारे में पढ़ते समय मुझे इन यादगार प्रदर्शनों का ध्यान हो आया और तभी से मुझे कुचिपुड़ी गाँव की यात्रा करने की तीव्र इच्छा जागृत हुई।

मुझे इस गाँव के दर्शन करने का अवसर जल्द ही प्राप्त हुआ। हुआ ऐसा कि मुझे आँध्रप्रदेश पर्यटन द्वारा अमरावती विश्व संगीत व नृत्य महोत्सव में भाग लेने का आमंत्रण प्राप्त हुआ। ज्ञात हुआ कि कुचिपुड़ी गाँव विजयवाडा से मात्र ६० की.मी. पर है। समारोह के उपरांत ही हम अपनी अनोखी नृत्य ग्राम यात्रा के लिए निकल पड़े।

श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम, कुचिपुड़ी

कुचिपुड़ी गाँव में हम श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम के द्वार पर उतरे। यह नृत्य संस्थान हैदराबाद के तेलुगु विश्वविद्यालय के अंतर्गत है। जैसे ही हम गाडी से उतरे, हमारे समक्ष, बगीचे के बीचोंबीच, काले पत्थर से बनी एक सुरुचिपूर्ण महिला की सुन्दर प्रतिमा पर हमारी दृष्टि पड़ी। इस प्रतिमा ने एक हाथ में कमल व दूसरे हाथ में चावडी, अर्थात् चामर धारण किया हुआ है। मुझे इस प्रतिमा व इन चिन्हों के पीछे के शास्त्र का ज्ञान नहीं था और उस पर मैंने यह निष्कर्ष निकालने की चेष्टा की, कि यह प्रतिमा भारत माता का स्वरुप है। तुरंत मेरे निष्कर्ष को सुधार कर मुझे यह बताया गया कि यह तेलुगु तल्ली अर्थात् तेलुगु माता की मूर्ति है। मैंने मन ही मन सोचा, कि भारत विस्मयकारी तथ्यों का खजाना है।

कला पीठम संसथान में प्रवेश करते ही हमारी दृष्टि, इस स्थल के लिए सर्वोपयुक्त, चोल पीतल में बनी नटराज की विशाल प्रतिमा पर पड़ी। साथ ही वर्तमान कुचिपुड़ी के जनक श्री सिद्धेन्द्र योगीजी की भी प्रतिमा थी। इस कला पीठम की स्थापना हेतु भूमि, कुली क़ुतुब शाह ने इस संस्थान को दान स्वरुप प्रदान की थी। कहा जाता है कि वह इस कुचिपुड़ी नृत्य शैली पर मोहित थे। इस संस्थान की वर्तमान इमारत अपेक्षाकृत नवीन है जिसमें विद्धार्थियों के लिए छात्रावास की भी सुविधा उपलब्ध है। १०० से भी ज्यादा वर्ष प्राचीन इमारत के स्थान पर इस नवीन इमारत की संरचना की है।

श्री सिद्धेन्द्र योगीजी व उनकी कुचिपुड़ी शैली

इस संस्थान के कार्यकर्ता व विद्यार्थियों से भेंट के पश्चात्, प्रदर्शन कला में स्नातकोत्तर छात्रा सुश्री अनुपमा ने हमें कुचिपुड़ी गाँव व इस नृत्यशैली के इतिहास की जानकारी दी।

 

भामा कलापम

अनुपमा ने हमें श्री सिद्धेन्द्र योगी द्वारा रचित नृत्य नाटिका भामा कलापम के बारे में बताया। भामा अर्थात् सत्यभामा, जो भगवान् कृष्ण की ८ पत्नियों में से एक है। यह नृत्य नाटिका सत्यभामा के कृष्ण में विलीन होने की कामना पर आधारित है। सत्यभामा के हृदय में आसक्ति, मोह, इच्छाओं आदि वासनाओं का वास था। इस कारण भगवान् कृष्ण में विलीन होना उनके लिए असंभव था। इन अवगुणों का परित्याग करने के पश्चात् ही वह कृष्ण में समाहित हो सकती थी। यह कथा लाक्षणिक रूप से आत्मा व परमात्मा पर आधारित है। यह, मानव की भगवान् में विलीन होने की अभिलाषा व इसके लिए आनेवाली बाधाओं पर विजय प्राप्त करने की कथा है।

भामा कलापम, कुचिपुड़ी नृत्य नाटिका की सबसे ज्यादा प्रदर्शित नृत्य नाटिका है। हमें बताया गया कि भामा कलापम कथा अत्यंत विस्तार से रची गयी है। इसका अंदाजा इस उदाहरण से लगाया जा सकता है कि एक पूर्ण रात्रि मात्र सत्यभामा की केशसज्जा बखान करती है। दरअसल पूर्ण कुचिपुड़ी नृत्य शैली, वैष्णव संस्कृति से सराबोर है। विष्णु के अवतारों में से कृष्ण भगवान्, भक्ति मार्ग के अनुगामियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। यहाँ तक की इस जिले को ‘कृष्णा’ नाम दिया है। कृष्णा नदी भी यहीं से बहती हुई समुद्र में विलीन होती है।

श्री योगीजी का यहाँ १७ वीं शताब्दी में वास था जब भक्ति आन्दोलन व कृष्ण भक्ति भाव अपनी चरम सीमा पर था।

कुचिपुड़ी गाँव का इतिहास

कुचिपुड़ी गाँव, कुचेलापुरम या कुचिलापुरी के नाम से भी जाना जाता है। इसका प्राचीन संस्कृत नाम कुशिलावापुरम अर्थात् बंजारे संगीतज्ञ व नर्तकों का गाँव है। कुचिपुड़ी की शब्द व्युत्पत्ती भी इस प्राचीन नृत्य शैली की कथा कहती है।

कुचिपुड़ी के वर्तमान इतिहास के सर्व साहित्य मध्य कालीन युग से उपलब्ध हैं। परन्तु हमें बताया गया कि पुरातत्ववेत्ताओं ने कई प्राचीन बुद्ध प्रतिमाएं खोज निकालीं जिन पर नृत्य मुद्राएं प्रत्यक्ष दिखाई देतीं हैं। हालांकि, नृत्य मुद्राएं दर्शाती बुद्ध की प्रतिमाएं सामान्यतः दिखती नहीं है, पर शायद इस भूमि की महिमा इतनी अपरंपार है कि बौद्ध भिक्षु भी यहां नृत्य करने में सक्षम थे।

ऐसा कहा जाता है कि इस गाँव के हर एक परिवार में कुचिपुड़ी नृत्य कलाकार हैं। हर एक गांववासी इस नृत्य शैली में निपुण है। ज्यादातर नर्तकों ने अपने पिता से इस नृत्य की शिक्षा हासिल की। जी हाँ! कुचिपुड़ी नृत्य का प्रसार पितृप्रधान वंशानुगत रीति द्वारा हुआ था। परन्तु वर्तमान काल में इस रीत में बदलाव देखा गया है। अनुपमा ने हमें बताया कि कुचिपुड़ी गाँव कुल १३ ब्राम्हण परिवारों से बना है जिसका प्रत्येक सदस्य इस नृत्य शैली की दीक्षा हासिल करता है।

पारंपरिक रीति अनुसार केवल पुरुष नर्तक ही इस नृत्य शैली का अभ्यास करते थे। वे अकसर स्त्री वेष धर कर स्फूर्ति और उत्साह से नृत्य करते थे। ऐसे ही अनेक वरिष्ठ कुचिपुड़ी पुरुष नर्तकों के चित्र यहाँ श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम में देखे जा सकते हैं, जिन्होंने स्त्री वेष धर कर नृत्य का प्रदर्शन किया था।

श्री वेदांत लक्ष्मी नारायण शास्त्रीजी २० वीं सदी में पारंपरिक कुचिपुड़ी नृत्य शैली में हुए कई बदलाव के उत्तरदायी हैं।उन्होंने ही स्त्रियों में इस नृत्य शैली को प्रवर्तित किया। साथ ही उन्होंने इस नृत्य शैली को ब्राम्हणों के दायरे से बाहर निकला और इसे हर उस व्यक्ति को उपलब्ध कराया जो इसमें प्रशिक्षित होना चाहता था।

कुचिपुड़ी नृत्य

कुचिपुड़ी नृत्य के ४ प्रमुख अंग इस प्रकार हैं –
• वाचिका अर्थात् मौखिक
• आहार्या अर्थात् वेशभूषा
• अंगिका अर्थात् मुद्राएँ व भंगिमाएं
• सात्विका अर्थात् अभिनय व अभिव्यक्ति

कुचिपुड़ी नृत्य शैली के अंतर्गत, नर्तक गाते हैं व दर्शकों से संवाद करते हैं। यह पूर्ण नृत्य शैली कथाकथन पर आधारित है जिसमें कुछ भाग संवाद रूप में, कुछ भाग नाटक रूप में व कुछ मुख मुद्राओं से अभिव्यक्त किया जाता है। इसमें सूत्रधार का भी समावेश रहता है जो नृत्य नाटिका के दौरान समय समय पर कथाकथन प्रस्तुत करता है। अन्य नृत्य शैलियों की तुलना में, इस कुचिपुड़ी नृत्य में अभिनय व मुख मुद्राओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

नर्तकों का साथ देते संगीतवादक मृदंग, वायोलिन, हारमोनियम इत्यादि बजाते हैं व एक गायक और एक गायिका उनके लिए गायन प्रस्तुत करते हैं। मौलिक रूप से कुचिपुड़ी एक सामूहिक नृत्य प्रदर्शन है जिसमें भिन्न भिन्न कलाकार विभिन्न भाग प्रस्तुत करते हैं।

वेशभूषा इस नृत्य का एक अहम् अंग है। कुचिपुड़ी कलाकार लकड़ी से बने हल्के वजन के आभूषण धारण करते हैं। ज्यादातर कलाकार व उनका परिवार अपने गहने स्वयं गढ़तें हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुचिपुड़ी का उनकी जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान में कई कुचिपुड़ी नर्तक, पारंपरिक जौहरियों द्वारा निर्मित धातु के आभूषण धारण करने लगे हैं।

विद्यार्थियों द्वारा प्रदर्शित कुचिपुड़ी नृत्य दर्शन

श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम के प्रधानाचार्य श्री वेदांतम रामलिंग शास्त्रीजी ने हमारे लिए विद्यार्थियों द्वारा २ नृत्य प्रदर्शनों का आयोजन कराया। पहले प्रदर्शन में २ छात्रों ने प्रधानाचार्य व उनकी धर्मपत्नी द्वारा गाये गए गीत पर नृत्य किया।दूसरे प्रदर्शन में नर्तक ने शिव अष्टकम पर नृत्य प्रस्तुत किया। हम नर्तकों के स्फूर्तिपूर्ण व फुर्तीले नृत्य में खो से गए। चूंकि यह विद्यार्थी अल्प अवधि सूचना के तहत नृत्य प्रदर्शन कर रहे थे, वे दैनंदिक वस्त्रों में थे। इसलिए इनकी भव्य वेशभूषा के दर्शन का अवसर हमें नहीं मिला। मैं सिर्फ इन नर्तकों को, उनकी वेशभूषा धारण किये, उचित प्रकाश में नृत्य करते, अपनी कल्पना में ही देख सकती थी।

यह अत्यंत दुःख की बात है कि हमारे देश में बहुत कम लोग इस कला समृद्ध, कुचिपुड़ी गाँव के बारे में जानते हैं। जबकि हमें गर्व के साथ हमारी इस धरोहर को विश्व सम्मुख प्रस्तुत करना चाहिए। ऐसी कितनी जगहें होंगी जिन्हें इतने लम्बे अरसे से पूर्ण नृत्य ग्राम होने का गर्व होगा? आशा करती हूँ कि इस नृत्य ग्राम से पूर्ण प्रशिक्षित छात्र अपने इस गाँव की जानकारी अपनी कला द्वारा सम्पूर्ण विश्व को प्रदान करेंगे|

श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम के सभी शिक्षकगण व विद्यार्थी अत्यंत विनम्र और सरल स्वभाव के थे। उन्होंने हमें केले के पत्तों पर सादा दक्षिण भारतीय भोजन कराया। आप विश्वास नहीं करेंगे पर कई दिनों बाद मैंने इतना स्वादिष्ट भोजन का आस्वाद लिया था।

कुचिपुड़ी गाँव

श्री सिद्धेन्द्र योगी कला पीठम के दर्शन उपरांत हम कुचिपुड़ी की ग्राम देवी, बाला त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के दर्शन हेतु निकल पड़े। रास्ते में श्री सिद्धेन्द्र योगीजी को समर्पित एक छोटे से मंदिर के भी दर्शन किये। इस मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर एक वीणा की प्रतिकृति रखी हुई है।

बाल त्रिपुरा सुंदरी मंदिर भी एक छोटा पीले रंग का मंदिर है जिसमें गोपुरम व शिखर का आकार समान है। यह शिव व पार्वती के बाल सुंदरी रूप को अर्पित है। शिखर के एक तरफ नटराज की सुन्दर प्रतिमा विभूषित है। मंदिर के पिस्ता हरे रंग के स्तंभों पर विभिन्न नृत्य मुद्राएँ धारण की हुईं छोटी छोटी प्रतिमाएं गड़ी हुई हैं। कुचिपुड़ी गाँव के सभी कलाकार नृत्य से पूर्व यहाँ आकर भगवान् के चरणों में प्रार्थना अर्पित करते हैं।

मंदिर के एक ओर नाट्य पुष्करणी नामक नवीन चेरुवु अर्थात् झील निर्माणाधीन है। इस झील के मध्य श्री सिद्धेन्द्र योगीजी की प्रतिमा स्थापित करने की भी योजना है।

मुझे ज्ञात हुआ कि कुचिपुड़ी गाँव के आसपास कई दूसरे मंदिर भी हैं। आशा है इनके दर्शन हेतु पुनः आने का अवसर मुझे जल्द ही मिलेगा।

कुचिपुड़ी दर्शन हेतु कुछ सुझाव

• कुचिपुड़ी गाँव में रहने के लिए धर्मशाला इत्यादि की कोई व्यवस्था नहीं है। निकटतम स्थान विजयवाड़ा है जहाँ यात्रियों के लिए हर स्तर की आवास सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
• निकटतम विमानतल व रेल सुविधाएँ भी विजयवाड़ा में उपलब्ध हैं।
• हमने संस्थान में सादा शाकाहारी भोजन ग्रहण किया था। पूर्व सूचना देने पर वे आपके भोजन की भी व्यवस्था कर सकते हैं।
• इस गाँव व इसकी संस्कृति का अहसास करने हेतु, इस गाँव का दर्शन पैदल चल कर ही किया जा सकता है।

आँध्रप्रदेश के अन्य पर्यटन स्थलों के दर्शन पूर्व आपके लिए मेरी कुछ यात्रा संस्मरण प्रस्तुत है-
1. विशाखा पट्टनम का प्रसिद्ध रामकृष्ण समुद्रतट
2. अरकू आदिवासी संग्रहालय
3.
 अरकू घाटी की छिद्रयुक्त अरकू गुफाएं
4. रामकृष्ण समुद्रतट पर स्थित आईएनएस कुर्सुरा पनडुब्बी संग्रहालय
5. अरकू घाटी तक रेल यात्रा

 
 
 
 
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