-रानी लक्ष्मीबाई का मायका भी कहा जाता है यह मंदिर
महेश पटैरिया, झांसी, (हि.स.)। वीरांगना नगरी में शौर्य और पराक्रम के साथ-साथ अध्यात्म का भी बेजोड़ संगम है। इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अपने शौर्य गाथा को दर्ज कराने वाली महारानी लक्ष्मीबाई के मायके में स्थित मुरली मनोहर मंदिर देश और दुनिया के सबसे अनोखे मंदिरों में से एक है। मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित मूर्तियां मुरली मनोहर मंदिर को दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर बनाती हैं जहां श्रीराधा-कृष्ण के विग्रह के साथ रुक्मिणी जी की भी पूजा की जाती है। इसी विशेषता के कारण जन्माष्टमी तथा अन्य अवसरों पर दूर-दूर से भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।
250 साल पुराने इस मन्दिर में राधा-कृष्ण के साथ रुक्मणि जी की पूजा होने के विषय में मंदिर के पुजारी पं. वसंत गोलवलकर ने कहा कि इसके माध्यम से उत्तर और दक्षिण को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। उत्तर भारत में योगयोगेश्वर श्रीकृष्ण की पराशक्ति श्रीराधा रानी को अधिक पूजा जाता है जबकि दक्षिण भारत में रुक्मिणी का वर्चस्व ज्यादा है। इसी वजह से इस मंदिर में तीनों प्रतिमाओं को एक साथ स्थापित कर समानता स्थापित करने की कोशिश की गई है। यहां श्रीकृष्ण की प्रतिमा के दाएं ओर श्रीराधारानी और बाईं ओर रुक्मिणी जी की प्रतिमा स्थापित है। इसके साथ ही इस मंदिर में गुंबद भी नहीं बनाया गया है। पं. गोलवलकर के अनुसार जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
उन्होंने बताया कि इस मंदिर की नींव 1780 में डाली गई थी। पांच साल तक निर्माण कार्य चलने के बाद 1785 में इस मंदिर में मूर्तियों की स्थापना की गई। इस मंदिर को महारानी लक्ष्मीबाई की सास और महाराज गंगाधर राव की माताजी ने बनवाया था। इस मंदिर के पहले पुजारी रामचंद्र राव प्रथम थे। वह मराठा राजवंश के राजपुरोहित भी थे।
इस मंदिर को लक्ष्मी बाई की सास ने बनवाया था लेकिन इसे महारानी लक्ष्मीबाई के मायके के रूप में भी जाना जाता है। पं. गोलवलकर के अनुसार जब गंगाधर राव की आयु 27 साल की हो गई तो उनकी माता जी को उनके विवाह की चिंता होने लगी। ऐसे में राजपुरोहित रामचंद्र राव प्रथम को यह जिम्मेदारी गयी दी कि किसी मराठी परिवार में गंगाधर राव के रिश्ते की बात चलाएं। राजपुरोहित रामचंद्र राव ने अपने साढू़ भाई मोरोपंत तांबे की पुत्री मनु बाई को विवाह के लिए चुना और मनु बाई विवाह के बाद महारानी लक्ष्मी बाई हो गईं।
बेटी मनु की शादी के बाद मोरोपंत तांबे भी झांसी के इस मुरली मनोहर मंदिर में ही रहने लगे। वसंत गोलवलकर ने बताया कि मंदिर के ऊपरी तल पर बने एक बड़े से कक्ष में मोरोपंत रहते थे और महारानी लक्ष्मीबाई कई बार राधा-कृष्ण के दर्शन और अपने पिता से मुलाकात करने के लिए मंदिर में आती रहती थीं। इसी कारण इस मंदिर को महारानी लक्ष्मीबाई का मायका भी कहा जाता है।
हिन्दुस्थान समाचार/महेश
