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हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार, निबंधकार- कवि पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

Date : 27-May-2023

हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार, निबंधकार, कवि पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी। उन्होंने बी. ए. तक की शिक्षा ग्रहण की और इसके बाद हिन्दी साहित्य की सेवा में लग गये। इनकी रचनाएँ 'हितकारिणी' नामक पत्रिका में प्रकाशित होती थीं। बाद में 'सरस्वती' नामक पत्रिका में प्रकाशित होने लगी, इन्होंने कहानियाँ भी लिखीं। अंग्रेजी साहित्य का भी गहन अध्ययन किया। जिसका परिचय छायावादी काव्य की समालोचना में मिलता है आचार्य द्विवेदी जी इनके गम्भीर अध्ययन और प्रतिभा से बहुत प्रभावित थे इसी कारण उन्होंने 'सरस्वती' के सम्पादन का कार्य भार सौंप दिया।

बख्शी जी ने सरस्वती का सम्पादन सन् 1920 से 1927 तक बड़ी कुशलता के साथ किया। 'सरस्वती' के सम्पादन के बाद बख्शी जी खेरागढ़ के एक हाईस्कूल में अध्यापक का कार्य करने लगे और जीवन के अन्तिम क्षण तक अध्यापन कार्य के साथ-साथ हिन्दी साहित्य की सेवा में लीन रहे। दिसम्बर सन् 1971 को इनका देहावसान हो गया।बख्शी जी की गणना द्विवेदी-युग के प्रमुख साहित्यकारों में होती है। साहित्य जगत् मेंसाहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शीका प्रवेश सर्वप्रथम कवि के रूप में हुआ था। उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। बख्शी जी मनसा, वाचा, और कर्मणा से विशुद्ध साहित्यकार थे। मान-प्रतिष्ठा-पद या कीर्ति की लालसा से कोसों दूर निष्काम कर्मयोगी की भाँति पूरी ईमानदारी और पवित्रता से निश्छल भावों की अभिव्यक्ति को साकार रूप देने की कोशिश में निरन्तर साहित्य सृजन करते रहे। उपन्यास के प्रेमी पाठक होने पर भी अपने को असफल कहते। लेकिन इनके उपन्यासों को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता कि बख्शी जी असफल उपन्यासकार हैं।

बख्शी जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। वे भाषा में संस्कृत शब्दों का अधिक प्रयोग करते थे। उन्होंने अपने लेखन में समीक्षात्मक, भावात्मक, विवेचनात्मक, व्यंग्यात्मक शैली को अपनाया। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अध्यापन, संपादन लेखन के क्षेत्र में कार्य किए। उन्होंने कविताएँ, कहानियाँ और निबंध सभी विधाओं में लिखा हैं पर उनकी ख्याति विशेष रूप से निबंधों के लिए ही है। 1911 में जबलपुर से निकलने वालीहितकारिणीमें बख्शी की पहली कहानीतारिणीप्रकाशित हुई थी। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने राजनांदगाँव के स्टेट हाई स्कूल में सबसे पहले 1916 से 1919 तक संस्कृत शिक्षक के रूप में कार्य किया। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपने साहित्यिक जीवन कि शुरुआत कवि के रूप में की थी। 1916 से लेकर लगभग 1925 . तक उनकी स्वच्छन्दतावादी प्रकृति की फुटकर कविताएँ उस समय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। इसके बाद में ‘शतदल नाम से इनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को वास्तविक ख्याति आलोचक तथा निबन्धकार के रूप में मिली। पदुमलाल पन्नालाल बख्शी ने अध्यापन, संपादन लेखन के क्षेत्र में कार्य किए। उन्होंने कविताएँ, कहानियाँ और निबंध सभी कुछ लिखा हैं पर उनकी ख्याति विशेष रूप से निबंधों के लिए ही है। उनका पहला निबंधसोना निकालने वाली चींटियाँसरस्वती में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने राजनांदगाँव के स्टेट हाई स्कूल में सर्वप्रथम 1916 से 1919 तक संस्कृत शिक्षक के रूप में सेवा की। दूसरी बार 1929 से 1949 तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंगरेज़ी शिक्षक के रूप में नियुक्त रहे। कुछ समय तक उन्होंने कांकेर में भी शिक्षक के रूप में काम किया। सन् 1920 में सरस्वती के सहायक संपादक के रूप में नियुक्त किये गये और एक वर्ष के भीतर ही 1921 में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बनाये गये जहाँ वे अपने स्वेच्छा से त्यागपत्र देने (1925) तक उस पद पर बने रहे। 1927 में पुनः उन्हें सरस्वती के प्रधान संपादक के रूप में ससम्मान बुलाया गया। दो साल के बाद उनका साधुमन वहाँ नहीं रम सका, उन्होंने इस्तीफा दे दिया। कारण था- संपादकीय जीवन के कटुतापूर्ण तीव्र कटाक्षों से क्षुब्ध हो उठना। उन्होंने 1952 से 1956 तक महाकौशल के रविवारीय अंक का संपादन कार्य भी किया तथा 1955 से 1956 तक खैरागढ में रहकर ही सरस्वती का संपादन कार्य किया। तीसरी बार 20 अगस्त 1959 में दिग्विजय कॉलेज राजनांदगाँव में हिंदी के प्रोफेसर बने और जीवन पर्यन्त वहीं शिक्षकीय कार्य करते रहे। बख्शी जी के ढेर सारे समीक्षात्मक निबंध भी रोचक कथात्मक शैली में लिखे गये हैं। बख्शी जी ने मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त देश-विदेश के कई लेखकों की रचनाओं का सारानुवाद भी किया था। हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन् 1949 में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वे मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए। बख्शी जी ने हिन्दी साहित्य की विविध रूपों में सेवा की किन्तु बहुत कम लोग ही उनके नाम से परिचित थे। इन्होंने पाश्चात्य निबन्ध शैली और समालोचना को हिन्दी साहित्य में समाविष्ट किया और ललित निबन्धों की सुन्दर परम्परा का श्रीगणेश किया। बख्शी जी कवि, निबन्धकार, कहानीकार और सम्पादक के रूप में हमारे सामने आते हैं। इनकी प्रसिद्धि का प्रमुख कारण इनके निराले कथा-शिल्प और ललित निबन्ध हैं। 1951 में डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी की अध्यक्षता में जबलपुर में मास्टर जी का सार्वजनिक अभिनंदन किया गया। 1969 में सागर विश्वविद्यालय से द्वारिका प्रसाद मिश्र (मुख्यमंत्री) द्वारा डी-लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। संक्षेप में बख्शी जी द्विवेदी युग के एक प्रमुख साहित्यकार हैं।

 
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